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रविवार, 23 अगस्त 2009

|| ॐ गं गणपतये नमो नमः ||



|| ॐ गं गणपतये नमो नमः |||| श्री सिद्धिविनायक नमो नमः ||
|| अष्टविनायक नमो नमः |||| वक्रतुंडाय नमो नमः ||

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

चिंतन से पहले चिंता में बी जे पी



जी हाँ ,आख़िर बी जे पी में वह तूफ़ान आ ही गया जो लोकसभा चुनावों ऐ हार के बाद आना था!लेकिन उस समय पार्टी सदमे में थी सो सभी नेता अपना अपना चेहरा छुपाने में जुट गए!किसी ने हार के कारणों पर मनन या चिंतन करना उचित नहीं समझा!सब एक दूसरे पर दोषारोपण में व्यस्त हो गए!और देखिये एक बड़ी राष्ट्रीय ..पार्टी की क्या हालत हो गई!लेकिन बड़े नेताओं ने फ़िर भी कोई सबक नहीं लिया!सबसे पहले तो आडवानी जी जिन्हें पूरी तरह से नकार दिया गया,इस्तीफा देते!फ़िर नई टीम बने जाती जो युवा हो ,उर्जावान हो और सबसे बड़ी बात जिन पर जनता भरोसा कर सके!क्योंकि पुराने नेता तो अपना भरोसा खो ही चुकें है!जनता ने पार्टी को नहीं इसके आपस में लड़ते नेताओं को नकारा है,जो देश को ..स्थिर सरकार का विशवास नहीं दिला पाए...!ये नेताओं की असफलता थी,नेताओं की नहीं...!लेकिन देखिये हुआ क्या.......!जिन्ना मुद्दे पर .आडवानी जी इस्तीफा नहीं देते,लेकिन जसवंत सिंह से इस्तीफा माँगा जाता है..!हार पर आडवानी जी इस्तीफा नहीं देते ,लेकिन वसुंधरा से इस्तीफा माँगा जाता है..!कांग्रेस पर आरोप लगाने वाली पार्टी ख़ुद इतनी कमजोर हो गई की क्या कहें..!देश को कुशल .सरकार देने का .वादा करने वाली पार्टी ख़ुद कुशल सेनापति नहीं दे पाई...!सारे के सारे नेता जनता के प्रति अपने कर्तव्य को भूल आपस में लड़ते रहे!और अब जब चिंतन का समय आया तो चिंता में डूब गए....!जिन लोगों ने बी जे पी को वोट दिया वो उससे क्या अपेक्षा करे?हार जीत चलती रहती है लेकिन पार्टी ख़तम होने के कगार पर पहुँच जाए,ये चिंतनीय बात है!क्या बी जे पी का अंत निकट है ?क्या पार्टी आपसी कलह से उबार पायेगी?क्या पार्टी पुराने समय को फ़िर दोहरा पाएगी?इन्ही सवालों के जवाब में ही पार्टी का भविष्य टिका है....

शनिवार, 15 अगस्त 2009

नेहरू ने 17 बार लहराया तिरंगा

देश में बीते छह दशक से जारी जश्न-ए-आजादी के सिलसिले में लाल किले की प्राचीर से सबसे ज्यादा 17 बार तिरंगा लहराने का मौका प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को मिला। वहीं उनकी पुत्री इंदिरा गांधी ने भी राष्ट्रीय राजधानी स्थित सत्रहवीं शताब्दी की इस धरोहर पर 16 बार राष्ट्रध्वज फहराया।

नेहरू ने आजादी के बाद सबसे पहले 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर झंडा फहराया और अपना बहुचर्चित संबोधन 'नियति से एक पूर्वनिश्चित भेंट' दिया। नेहरू 27 मई 1964 तक प्रधानमंत्री पद पर रहे। इस अवधि के दौरान उन्होंने लगातार 17 स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण किया। आजाद भारत के इतिहास में गुलजारी लाल नंदा और चंद्रशेखर ऐसे नेता रहे जो प्रधानमंत्री तो बने लेकिन उन्हें स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने का एक भी बार मौका नहीं मिल सका।

नेहरू के निधन के बाद 27 मई 1964 को नंदा प्रधानमंत्री बने लेकिन उस वर्ष 15 अगस्त आने से पहले ही नौ जून 1964 को वह पद से हट गए और उनकी जगह लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने। नंदा 11 से 24 जनवरी 1966 के बीच भी प्रधानमंत्री पद पर रहे। इसी तरह चंद्रशेखर 10 नवंबर 1990 को प्रधानमंत्री बने लेकिन 1991 के स्वतंत्रता दिवस से पहले ही उस वर्ष 21 जून को पद से हट गए।

लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद नंदा कुछ दिन प्रधानमंत्री पद पर रहे लेकिन बाद में 24 जनवरी 1966 को नेहरू की पुत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता की बागडोर संभाली। नेहरू के बाद सबसे अधिक बार जिस प्रधानमंत्री ने लाल किले पर तिरंगा फहराया, वह इंदिरा ही रहीं।

इंदिरा 1966 से लेकर 24 मार्च 1977 तक और फिर 14 जनवरी 1980 से लेकर 31 अक्टूबर 1984 तक प्रधानमंत्री पद पर रहीं। बतौर प्रधानमंत्री अपने पहले कार्यकालमें उन्होंने 11 बार और दूसरे कार्यकाल में पांच बार लाल किले पर झंडा फहराया। स्वतंत्रता दिवस पर सबसे कम बार राष्ट्रध्वज फहराने का मौका चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980, विश्वनाथ प्रताप सिंह दो दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990, एच डी. देवेगौड़ा, एक जून 1996 से 21 अप्रैल 1997, और इंद्र कुमार गुजराल 21 अप्रैल 1997 से लेकर 28 नवंबर 1997, को मिला। इन सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों ने एक-एक बार 15 अगस्त को लाल किले से राष्ट्रध्वज फहराया।

नौ जून 1964 से लेकर 11 जनवरी 1966 तक प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री और 24 मार्च 1977 से लेकर 28 जुलाई 1979 तक प्रधानमंत्री रहे मोरारजी देसाई को दो-दो बार यह सम्मान हासिल हुआ। स्वतंत्रता दिवस पर पांच या उससे अधिक बार तिरंगा फहराने का मौका नेहरू और इंदिरा गांधी के अलावा राजीव गांधी, पी. वी. नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेई और मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मिला है।

राजीव 31 अक्तूबर 1984 से लेकर एक दिसंबर 1989 तक और नरसिंह राव 21 जून 1991 से 10 मई 1996 तक प्रधानमंत्री रहे। दोनों को पांच-पांच बार ध्वज फहराने का मौका मिला। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर चुके अटल बिहारी वाजपेई जब 19 मार्च 1998 से लेकर 22 मई 2004 के बीच प्रधानमंत्री रहे तो उन्होंने कुल छह बार लाल किले की प्राचीर से तिरंगा फहराया। इससे पहले वह एक जून 1996 को भी प्रधानमंत्री बने लेकिन 21 अप्रैल 1997 को ही उन्हें पद से हटना पड़ा था।

वर्ष 2004 के आम चुनाव में राजग की हार के बाद संप्रग सत्ता में आया और मनमोहन ने 22 मई 2004 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। तब से अब तक वह पांच बार स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले पर राष्ट्रध्वज फहरा चुके हैं। इस बार 63वें स्वतंत्रता दिवस पर वह छठी बार तिरंगा लहराएंगे और राष्ट्र को संबोधित करेंगे।
(साभार: जागरण)
(स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें )

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान हैं कृष्ण (कृष्ण-जन्माष्टमी की बधाई )

विगत पांच हजार वर्षों में श्रीकृष्ण जैसा अद्भुत व्यक्तित्व भारत क्या, विश्व मंच पर नहीं हुआ और न होने की संभावना है। यह सौभाग्य व पुण्य भारत भूमि को ही मिला है कि यहाँ एक से बढकर एक दिव्य पुरूषों ने जन्म लिया। इनमें श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व अनूठा, अपूर्व और अनुपमेय है। हजारों वर्ष बीत जाने पर भी भारत वर्ष के कोने-कोने में श्रीकृष्ण का पावन जन्मदिन अपार श्रद्धा, उल्लास व प्रेम से मनाया जाता है। श्रीकृष्ण अतीत के होते हुए भी भविष्य की अमूल्य धरोहर हैं। उनका व्यक्तित्व इतना बहुआयामी है कि उन्हें पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। मुमकिन है कि भविष्य में उन्हें समझा जा सकेगा। हमारे अध्यात्म के विराट आकाश में श्रीकृष्ण ही अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की परम गहराइयों व ऊंचाइयों पर जाकर भी गंभीर या उदास नहीं हैं। श्रीकृष्ण उस ज्योतिर्मयी लपट का नाम है जिसमें नृत्य है, गीत है, प्रीति है, समर्पण है, हास्य है, रास है, और है जरूरत पड़ने पर युद्ध का महास्वीकार। धर्म व सत्य के रक्षार्थ महायुद्ध का उद्घोष। एक हाथ में वेणु और दूसरे में सुदर्शन चक्र लेकर महाइतिहास रचने वाला दूसरा व्यक्तित्व नहीं हुआ संसार में।

कृष्ण ने कभी कोई निषेध नहीं किया। उन्होंने पूरे जीवन को समग्रता के साथ स्वीकारा है। प्रेम भी किया तो पूरी शिद्दत के साथ, मैत्री की तो सौ प्रतिशत निष्ठा के साथ और युद्ध के मैदान में उतरे तो पूरी स्वीकृति के साथ। हाथ में हथियार न लेकर भी विजयश्री प्राप्त की। भले ही वो साइड में रहे। सारथी की जिम्मेदारी संभाली पर कौन नहीं जानता कि अर्जुन के पल-पल के प्रेरणा स्त्रोत और दिशा निर्देशक कृष्ण थे।

अल्बर्ट श्वाइत्जर ने भारतीय धर्म की आलोचना में एक बात बड़ी मूल्यवान कही। वह यह कि भारत का धर्म जीवन निषेधक है। यह बात एकदम सत्य है, यदि कृष्ण का नाम भुला दिया जाए तो ओशो के शब्दों में कृष्ण अकेले दुख के महासागर में नाचते हुए एक छोटे से द्वीप हैं। यानी कि उदासी, दमन, नकारात्मकता और निंदा के मरूस्थल में नाचते-गाते मरू-उद्यान हैं।

कुछ लोग कहते हैं कि कृष्ण केवल रास रचैया भर थे। इन लोगों ने रास का अर्थ व मर्म ही नहीं समझा है। कृष्ण का गोपियों के साथ नाचना साधारण नृत्य नहीं है। संपूर्ण ब्राह्मांड में जो विराट नृत्य चल रहा है प्रकृति और पुरूष (परमात्मा) का, श्रीकृष्ण का गोपियों के साथ नृत्य उस विराट नृत्य की एक झलक मात्र है। उस रास का कोई सामान्य या सेक्सुअल मीनिंग नहीं है। कृष्ण पुरूष तत्व है और गोपिकाएं प्रकृति। प्रकृति और पुरूष का महानृत्य है यह। विराट प्रकृति और विराट पुरूष का महारस है यह, तभी तो हर गोपी को महसूस होता है कि कृष्ण उसी के साथ नृत्यलीन हैं। यह कोई मनोरंजन नहीं, पारमार्थिक है।

कृष्ण एक महासागर हैं। वे कोई एक नदी या लहर नहीं, जिसे पकड़ा जा सके। कोई उन्हें बाल रूप से मानता है, कोई सखा रूप में तो कोई आराध्य के रूप में। किसी को उनका मोर मुकुट, पीतांबर भूषा, कदंब वृक्ष तले, यमुना के तट पर भुवनमोहिनी वंशी बजाने वाला, प्राण वल्लभा राधा के संग साथ वाला प्रेम रूप प्रिय है, तो किसी को उनका महाभारत का महापराक्रमी रणनीति विशारद योद्धा का रूप प्रिय है। एक ओर हैं-
वंशीविभूषित करान्नवनीरदाभात्,
पीताम्बरादरूण बिम्बफला धरोष्ठात्,
पूर्णेंदु संुदर मुखादरविंदनेत्रात्,
कृष्णात्परं किमपि तत्वमहं न जाने।।

तो दूसरी ओर-
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।।

वस्तुतः श्रीकृष्ण पूर्ण पुरूष हैं। पूर्णावतार सोलह कलाओं से युक्त उनको योगयोगेश्वर कहा जाता है और हरि हजार नाम वाला भी।

आज देश के युवाओं को श्रीकृष्ण के विराट चरित्र के बृहद अध्ययन की जरूरत है। राजनेताओं को उनकी विलक्षण राजनीति समझने की दरकार है और धर्म के प्रणेताओं, उपदेशकों को यह समझने की आवश्यकता है कि श्रीकृष्ण ने जीवन से भागने या पलायन करने या निषेध का संदेश कभी नहीं दिया। वे महान योगी थे तो ऋषि शिरोमणि भी। उन्होंने वासना को नहीं, जीवन रस को महत्व दिया। वे मीरा के गोपाल हैं तो राधा के प्राण बल्लभ और द्रोपदी के उदात्त सखा मित्र। वे सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान और सर्व का कल्याण व शुभ चाहने वाले हैं। अति रूपवान, असीम यशस्वी और सत् असत् के ज्ञाता हैं। जिसने भी श्रीकृष्ण को प्रेम किया या उनकी भक्ति में लीन हो गया, उसका जन्म सफल हो गया। धर्म, शौय और प्रेम के दैदीप्यमान चंद्रमा श्रीकृष्ण को कोटि कोटि नमन।
यतो सत्यं यतो धर्मों यतो हीरार्जव यतः !
ततो भवति गोविंदो यतः श्रीकृष्णस्ततो जयः !!

सत्या सक्सेना

बुधवार, 12 अगस्त 2009

भारत और इंडिया में बंटता देश



पिछले कुछ वर्षों में इस विभाजन को सपष्ट देखा जा सकता है!हमारा देश बहुत तेजी से बदल रहा है...लेकिन इसके दोनों चेहरे बहुत साफ़ साफ़ देखे जा सकते है!.पहला तो वह आधुनिक इंडिया है..जिसमे आसमान छूती इमारते है,साफ़ सड़कें और बिजली से जगमगाते शहर है..!सड़क पर दौड़ती महँगी गाडियाँ विदेश का सा भ्रम पैदा करती है!यहाँ लोग सूट बूट पहने शिक्षित है जो आम बोलचाल में भी अंग्रेज़ी बोलते है...!बड़े बड़े होटल ,माल और .मल्टी प्लेक्स किसी सपने जैसे लगते है..!यहाँ के लोग इंडियन कहलवाना पसंद करते है...!ये हमारे देश का आधुनिक रूप है जो एक सीमित क्षेत्र में दिखाई .देता है...!और इस चका चौंध से दूर कहीं एक भारत बसा है जो अभी भी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहा है..!यहाँ अभी सड़कें,होटल मॉल नहीं है..बिजली भी कभी कभार आती है...!यहाँ के लोग सीधे सादे है जो बहुत ज्यादा शिक्षित नहीं है,इसलिए इन्हे अपने अधिकारों के लिए अक्सर लड़ना पड़ता है..!इस भारत और इंडिया को देख कर भी अनदेखा करने वाले नेता है जो हमेशा अपना हित साधते रहते है !लेकिन अफ़सोस इस बात का है की हमारी ७० %आबादी गाँवों में रहती है लेकिन इन भारत वासियों के लिए न फिल्में बनती है ना .कार्यक्रम ...!सभी लोग बाकि ३०% आबादी को खुश करने में लगे है....!तभी तो देखिये वर्षा न होने पर जहाँ लोग रो रहे है,सूखे खेतों को देख कर किसान तड़प उठते है...दाने दाने को मोहताज़ हो जाते है ..!वहीं ये इंडियन रैन डांस करने जाते है ..इनके लिए .कृतिम बरसात भी हो जाती है...!क्या कभी पिज्जा खाने वाले लोग उन भारतवासियों के बारे में सोचेंगे जो एक समय आज भी भूखे सोते है????क्या कभी हमारे नेता इन ऊंची इमारतों .के पीछे अंधेरे में सिसकती उन झोपड़ पट्टियों को देख पाएंगे जो इंडिया पर एक पाबन्द की भांति है....!इन में रहने वालों और गाँवों में रहने वालों में कोई अन्तर नहीं है.....!यहाँ बसने वाला ही सही भारत है जिसे कोई इंडियन देखना पसंद नहीं करता,लेकिन जब ये सुखी होंगे तभी इंडियन सुखी रह पंगे..पाएंगे...इस इंडिया और भारत की दूरी को पाटना बहुत जरूरी है....!ये दोनों मिल कर ही देश को विकसित बना सकते है....!

सोमवार, 10 अगस्त 2009

तुम जियो हजारों साल...








आप जिओ हज़ारों साल,
साल के दिन हों पचास हज़ार
ये दिन आये बारम्बार,
आये आपके जीवन में बहार !
"युवा" टीम के सक्रिय ब्लागर और हिन्दी साहित्य के चमकते सितारे कृष्ण कुमार यादव जी को जन्म-दिवस की ढेरों बधाइयाँ.
















प्रशासन-साहित्य में सुदृढ़ पकड़ किये
मनस्वी की विनम्रता का भी मान है
ऐसे कर्मवीर ही प्रेरणा बनते हैं
कलम लिख गाथा बांटती सम्मान है

साहित्य और प्रशासन की दुनिया में
जिनका जन-जन में है आदर-सम्मान
ऐसे श्री कृष्ण कुमार यादव जी का
विद्वान्-मनीषी भी करते हैं मान

भारतीय डाक सेवा के अधिकारी बन
अपने कृतित्व-मान को और बढ़ाया
प्रशासन और साहित्य का हुआ समन्वय
इस बेजोड़ संतुलन ने सबको चैंकाया

कई विधाओं में उनकी रचनायें
यत्र-तत्र होती रहतीं सतत प्रकाशित
श्री कृष्ण कुमार की साहित्यधर्मिता से
राष्ट्रभाषा हिन्दी हो रही सुवासित

लगभग दो सौ पत्र-पत्रिकाओं में
रचनाएं अब छपती हैं बारम्बार
कविता, कहानियाँ, व्यंग्य, निबंध और
समीक्षाएं, संस्मरण एवं साहित्य-सार

गद्य-पद्य शैली में सिद्धहस्त हैं आप
और लिखते हैं अतिशय व्यंग्य सटीक
काव्य में उभारें आप मृदुल अभिव्यक्ति
कहानियां हैं समाज की स्पष्ट प्रतीक

शब्द-शब्द की अपार सम्पदा से
लेख और निबंध रचते वह विशेष
विद्वत जनों को कर रहे प्रभावित
कुछ भी नहीं रहा यहाँ अवशेष

आकाशवाणी से सुन सरस कविता
श्रोताजन होते खूब भाव-विभोर
शब्द-कथ्य और भाव की सुभग त्रिवेणी
कलकल बहती है जो चारों ओर

संचार क्रान्ति के इस नये दौर में
इण्टरनेट का आया ऐसा जमाना
अंतरजाल पर पत्रिकायें खूब चलें
कृष्ण कुमार जी का भी गायें तराना

राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के संयोजक
बद्रीनारायण तिवारी जी सस्नेह
साथ मिल बैठें तो देखें चकित सब
फैले चारों तरफ बस ज्ञान का मेह

प्रथम काव्य संकलन ‘अभिलाषा‘ रच
विद्वत जनों का खूब स्नेहाशीष पाया
‘नीरज‘ जी ने की भूरि-भूरि प्रशंसा
सूर्यप्रसाद दीक्षित ने मनोबल बढ़ाया

‘अभिव्यक्तियों के बहाने‘ निबन्ध संग्रह
फिर ‘अनुभूतियाँ और विमर्श‘ भी आया
गिरिराज किशोर जी ने किया विमोचन
पत्र-पत्रिकाओं में जमकर चर्चा पाया

‘साहित्य सम्पर्क‘ पत्रिका से जुड़े
बने ‘कादम्बिनी क्लब‘ के संरक्षक
अल्पायु में ही खूब नाम कमाकर
श्री कृष्ण कुमार बने हिन्दी के रक्षक

आपकी अप्रतिम प्रतिभा का आकलन
करते सुविज्ञ-जन हो करके हर्षित मन
संस्थायें देकर उपाधियां व अलंकरण
करती हैं सहर्ष स्वागत एवं अभिनन्दन

प्रशासन की अतिव्यस्तताओं के बीच
करते हैं निरन्तर सारस्वत-साधना
हर क्षेत्र में खूब यश-कीर्ति कमायें
होती रहें पूर्ण सब मनोकामना

ज्ञानवान, सुयशी, सराहनीय रहें सदा
प्रगति के मान् विश्व में बनायें आप
प्रशासन-साहित्य में रहें वंदनीय
अभिनन्दनीय मनीषी कहायें आप

वाणी के वरद पुत्र! तुम बनो मनस्वी
निज प्रबुद्ध रचनाओं से बनो यशस्वी
जगदीश्वर से है प्रार्थना हमारी
नित्य फूले-फले आपकी फुलवारी।
(कृष्ण कुमार जी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर प्रकाशित पुस्तक "बढ़ते चरण शिखर की ओर" से साभार)

(कृष्ण कुमार जी पर राष्ट्रभाषा प्रचार समिति-उत्तर प्रदेश के संयोजक एवं पूर्व अध्यक्ष-उ0प्र0 हिन्दी साहित्य सम्मेलन डा0 बद्री नारायण तिवारी जी द्वारा रचित लेख "प्रशासन और साहित्य के ध्वजवाहक : कृष्ण कुमार यादव" युवा ब्लाग पर देख सकते हैं)

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

आज का सच !!

प्रथम रश्मि का आना
अब किसने है जाना?
पक्षी तो गुम हैं ,
जो हैं,उन्हें आभास नहीं,
दिन चढ़ आया है !
कमरे के अन्दर सुबह खर्राटे लेती है,
१२ बजे आँखें खोलती है,
आधी रात को गुड नाईट करती है!
सारे जोड़-घटाव ,
उल्टे बहाव में हैं ,
जीवन की भागदौड़ में,
सबकुछ उल्टा हो चला है !!

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

अंतर

सारी रात

आँखों की बारिश में

दर्द के ओले गिरते गए ...

उन्हें फोटोग्राफी का जूनून है

लेते गए तस्वीर.....

तस्वीर की बेबस मुस्कान

शर्मीली मुस्कान बनी

लाल आँखें हया का आइना बनी

सब्ज़ ओले बर्फ हो गए.............

हकीकत और चित्र में कितना अंतर होता है

सोमवार, 3 अगस्त 2009

इन सीरियल्स से हमें बचाओ



आज के समय में जितने टी वी .चैनल बढे है उतने ही विवाद भी !हर चैनल हर रोज ये नए शो लेकर आ रहा है जिनका मकसद हमारे मनोरंजन से ज्यादा अपनी टी आर पी को बढ़ाना होता है!हर कोई नई चीज़ पेश करने के चक्कर में हमें घनचक्कर बना रहा है जैसे की हमने अपनी फरमाइश पर इन्हे बनवाया हो..!ये बार कहते है आपकी भारी मांग पर इसे पुनः टेलीकास्ट कर रहे है जबकि हम तो इन्हे एक बार भी नहीं देखना चाहते...!एक सीरीयल आता है ...."इस जंगल से मुझे बचाओ"...भाई हमने कब कहा था की जंगल में जाओ,जो अब हम सब काम छोड़ कर आपको बचाएं...!!इसी तरह "सच का सामना"में तथाकथित सच बोलने वाले हमें बिना मतलब बच्चों के सामने शर्मिंदा कर रहे है....सच बोल कर..!अगर ये सच इतना ही बोझ बना हुआ था तो .मन्दिर...,मस्जिद या गुरूद्वारे में जाकर गलती मानो,स्वीकार करो या अपने घर वालों के सामने आँख उठा कर बात करो ...हमें नाहक ही क्यूँ परेशान करते हो ?इधर राखी सावंत अपना अलग ड्रामा चला के बैठी है.....सब को पता है ..ये शादी नहीं करेगी...पर कईयों की करवा जरूर देगी ..!कुछ लोग कहते है की आप देखते क्यूँ हो ?टी वी बंद कर दो ?अरे .भाई...पहली बात तो बच्चे रिमोट को छोड़ते नही और ..दूसरे आप इतनी इतनी बार रीपीट काहे करते हो भाई?इधर नयूज वाले सारे दिन कहते है देखिये क्या होगा राखी का?कौन बनेगा दूल्हा?एक चैनल ने तो ख़बर चला दी ...राखी के सवयम्बर .का रिजल्ट आउट!!!!!और ऊपर से .सारे दिन आते ये ........ऐड...!!!क्या करे दर्शक????मैं पूछना चाहता हूँ की इन से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?ये समाज को क्या देना चाहते है...?विदेश में परिवेश अलग है ..वहां के हिट शो यहाँ भी हिट होंगे .....ये जरूरी तो नहीं?फ़िर इनकी भोंडी नक़ल करने का क्या तुक?????हमारे अपने देश में ऐसे अनेक विषय है जिन पर हजारों शो बन सकते है...फ़िर ये बेतुका प्रदर्शन क्यूँ????मुझे याद है दूरदर्शन के वो दिन ..जब एक पत्र के लिखने से कार्यकर्म बदल जाता था.....!उन दिनों आन्मे वाला सुरभि नामक सीरीयल तो लोग आज भी याद करते है .......!और एक ये सीरीयल है जिनसे हर कोई बचना चाहता है....!.केवल हल्ला करने से कोई सीरीयल हिट नहीं होता है और ना ही ये लोकप्रियता का कोई पैमाना है !आख़िर समाज के प्रति कोई जवाब देही भी होनी चाहिए?? [फोटो-गूगल से .साभार ]

शनिवार, 1 अगस्त 2009

फ्रेण्डशिप-डे: ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे

मित्रता किसे नहीं भाती। यह अनोखा रिश्ता ही ऐसा है जो जाति, धर्म, लिंग, हैसियत कुछ नहीं देखता, बस देखता है तो आपसी समझदारी और भावों का अटूट बन्धन। कृष्ण-सुदामा की मित्रता को कौन नहीं जानता। ऐसे ही तमाम उदाहरण हमारे सामने हैं जहाँ मित्रता ने हार जीत के अर्थ तक बदल दिये। सिकन्दर-पोरस का संवाद इसका जीवंत उदाहरण है। मित्रता या दोस्ती का दायरा इतना व्यापक है कि इसे शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। दोस्ती वह प्यारा सा रिश्ता है जिसे हम अपने विवेक से बनाते हैं। अगर दो दोस्तों के बीच इस जिम्मेदारी को निभाने में जरा सी चूक हो जाए तो दोस्ती में दरार आने में भी ज्यादा देर नहीं लगती। सच्चा दोस्त जीवन की अमूल्य निधि होता है। दोस्ती को लेकर तमाम फिल्में भी बनी और कई गाने भी मशहूर हुए-ये तेरी मेरी यारी/ये दोस्ती हमारी/भगवान को पसन्द है/अल्लाह को है प्यारी। ऐसे ही एक अन्य गीत है-ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे/छोड़ेंगे दम मगर/तेरा साथ न छोड़ेंगे। हाल ही में रिलीज हुई एक अन्य फिल्म के गीतों पर गौर करें- आजा मैं हवाओं में बिठा के ले चलूँ/ तू ही-तू ही मेरा दोस्त है।

दोस्ती की बात पर याद आया कि 2 अगस्त को ‘फ्रेण्डशिप-डे‘ है। यद्यपि मैं इस बात से इत्तफाक नहीं रखती कि किसी संबंध को दिन विशेष के लिए बांध दिया जाय, पर उस दिन को इन्ज्वाय करने में कोई हर्ज भी नहीं दिखता। फ्रेण्डशिप कार्ड, क्यूट गिफ्ट्स और फ्रेण्डशिप बैण्ड से इस समय सारा बाजार पटा पड़ा है। हर कोई एक अदद अच्छे दोस्त की तलाश में है, जिससे वह अपने दिल की बातें शेयर कर सके। पर अच्छा दोस्त मिलना वाकई एक मुश्किल कार्य है। दोस्ती की कस्में खाना तो आसान है पर निभाना उतना ही कठिन। आजकल तो लोग दोस्ती में भी गिरगिटों की तरह रंग बदलते रहते हैं। पर किसी शायर ने भी खूब लिखा है-दुश्मनी जमकर करो/लेकिन ये गुंजाइश रहे/कि जब कभी हम दोस्त बनें/तो शर्मिन्दा न हों।


फिलहाल, फ्रेण्डशिप-डे की बात करें तो यह अगस्त माह के प्रथम रविवार को सेलीबे्रट किया जाता है। अमेरिकी कांग्रेस द्वारा 1935 में अगस्त माह के प्रथम रविवार को दोस्तों के सम्मान में ‘राष्ट्रीय मित्रता दिवस‘ के रूप में मनाने का फैसला लिया गया था। इस अहम दिन की शुरूआत का उद्देश्य प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उपजी कटुता को खत्म कर सबके साथ मैत्रीपूर्ण भाव कायम करना था। पर कालान्तर में यह सर्वव्यापक होता चला गया। दोस्ती का दायरा समाज और राष्ट्रों के बीच ज्यादा से ज्यादा बढ़े, इसके मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र संघ ने बकायदा 1997 में लोकप्रिय कार्टून कैरेक्टर विन्नी और पूह को पूरी दुनिया के लिए दोस्ती के राजदूत के रूप में पेश किया।

इस फ्रेण्डशिप-डे पर बस यही कहूंगी कि सच्चा दोस्त वही होता है जो अपने दोस्त का सही मायनों में विश्वासपात्र होता है। अगर आप सच्चे दोस्त बनना चाहते हैं तो अपने दोस्त की तमाम छोटी-बड़ी, अच्छी-बुरी बातों को उसके साथ तो शेयर करो लेकिन लोगों के सामने उसकी कमजोरी या कमी का बखान कभी न करो। नही तो आपके दोस्त का विश्वास उठ जाएगा क्योंकि दोस्ती की सबसे पहली शर्त होती है विश्वास। हाँ, एक बात और। उन पुराने दोस्तों को विश करना न भूलें जो हमारे दिलों के तो करीब हैं, पर रहते दूरियों पर हैं।
आकांक्षा यादव