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गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

यही कम नहीं है

रेलवे स्टेशन पर
टिकट के लिए
लाइन में खड़ा था
संभवतः सर्वर ख़राब था
इसलिए टिकट वितरण कुछ देर
के लिए बाधित हो गया था
निकट पास में एक
दस वर्षीय बालक एक फटा
बैग लिए निरीह नजरों से
मुझे देख रहा था
लगा शायद भीख मांगने
के लिए खड़ा था
मैंने जेब से कुछ सिक्के
निकाल कर उसे देना चाहा
उसने तत्काल लेने से
इंकार कर दिया
मुझे झुझुलावा दिया
बोला बाबू आपके जूते
गंदे हो गए है
इसे पालिश करवा लीजिये
बदले में मेरी मजदूरी के
दो रुपये ही मुझको दे दीजिये

तभी सर्वर ठीक
होने का सिग्नल आया
टिकट बाबू ने आवाज लगाया
मैंने टिकट लेते हुए
उस बच्चे से कहा बेटा
यह दो रुपये रख लो
मेरी ट्रेन आ चुकी है
जूते को बिना पालिश के
ही रहने दो
वरना ट्रेन छूट जाएगी
तुम्हारी तुम्हारी खुद्दारी हमें
बहुत महँगी पड़ जायेगी

वह मुझे छोड़ लाइन में
पीछे किसी दूसरे के पास चला गया
मै झुन्झुलाहट और आश्चर्य से
उसे देखता रहा
किसी तरह ट्रेन पर चढ़
अपने गंतव्य को चल दिया

सोचता रहा उसके बारे में
कहाँ तो एक से एक
चोर उचक्के जैसे लडको से
सदा यहाँ पाले पड़ते रहते है
जो खड़े ही खड़े हमें और आपको
बेच देने का माद्दा रखते है
ऐसे में यह लड़का कैसे
अपने स्तित्व को बचाये पड़ा है
लगा कही गलती से तो
इस सदी में नहीं जी रहा है

निकट अतीत तक मन
जहाँ अपनी संस्कृति में तेजी से
हो रहे क्षरण और संक्रमण
से व्यथित था
वही अब उसके संरक्षण कि दिशा में
इस छोटे से ही प्रयास को देख
मन एक सुखद अहसास से
गदगद हो रहा था

वस्तुतः सच है कि
ऐसे प्रयास इस दिशा में
पर्याप्त नहीं है
लेकिन यह भी सच है कि
ऐसी सोच आज भी जिन्दा है
यही कम नहीं है

भ्रष्टाचार की विषबेल

एक बार पुनः
अतीत ने अपनी श्रेष्ठता
वर्तमान पर सिद्ध की
हम काफी दिनों से बात
कर रहे थे भ्रष्टाचार पर प्रहार की

एक दूसरे का मुंह देख रहे थे
कौन करे प्रारंभ बस यही सोच रहे थे
इसी बीच उम्र को चुनौती देते हुए
एक सत्तर साल के युवा ने
हमारे बेचैनी को देखा
एक बार पुनः अतीत की अगुआई
करते हुए वर्तमान को सीख
देने की मुद्रा में मोर्चा खोला

न केवल विजयश्री का
किया वरण
वरन भ्रष्टाचार भी मांगता
दिखा शरण

हाँ इस मुद्दे पर देशव्यापी
समर्थन युवाओं ने भरपूर दिया
ऊब चुके है इस व्यवस्था से
अपनी पुरजोर उपस्थिति से
यह सिद्ध किया

काश इसका आगाज
और पहले हो गया होता
तो देश इक्कीसवी सदी में
नए जोश और जज्बातों के साथ
कब का पहुँच गया होता
निसंदेह आज की तमाम
समस्याओं की जननी है
भ्रष्टाचार की यह विषबेल
निश्चित रूप से अब
समाप्त हो जानी चाहिए
यह नूरा कुश्तियों का खेल

पर सनद रहे
अन्ना हजारे से मिली उर्जा को
हमें संजो कर रखना होगा
इस लगी हुई आग को किसी
कीमत पर बुझने देना नहीं होगा
अन्ना के त्याग ने रखी है
जिस सत्य अहिंसा पर आधारित
लड़ाई की पुनः नीव
लगभग वर्तमान परिवेश में
विलुप्त हो चुके गाँधी की
प्रासंगिकता को किया है पुनः सजीव
तभी इस आन्दोलन की
सार्थकता फलित होगी
वर्ना इन भ्रष्टाचारियों की एक
नयी व्यवस्था के साथ
पुनः विषबेल बढेगी

कर ले हम चाहे
कितनी ही ऊँची बाते
करले कितने ही दौर की मुलाकाते
पर सच्चाई यही है कि
अतीत को बिसरा कर
बनती नहीं बातें
निकट अतीत कि घटना ने
इस बात के इतिहास को
पुनः दोहराया
कि सत्य परेशान भले ही हो
पर पराजित कभी हो नहीं पाया
बेशक यह कुछ लोगो के लिए
वही होता रहा है जो
उनको है नहीं भाया
पर देर से ही सही अन्ना ने
उनको भी जमीन पर लाया

संभव है आगे भविष्य में
ऐसे और मोर्चे अवश्य ही खोलने होगे
बेशक अन्ना हमारे साथ नहीं होगे
अतः हमें तैयार और जागरूक
इस निमित्त रहना होगा
एक नूतन शंखनाद के लिए
अन्ना से मिली उर्जा को
हमें सुरक्षित रखना होगा

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

चेतना

नई चेतना


नई चेतना, नई आस है

नव बेला की सांझ नई

लोग खड़े हैं राष्ट्र सृजन को

कलुषित मानव हुए विकल

भांति-भांति के तर्क हैं गढ़ते

कहते इससे क्या हो सकता

मंजिल की है बातें करते

चलने पर बेचैनी

बेखौफ जवानी की अंगड़ाई

परिवर्तन का मार्ग प्रसस्त हुआ

प्रथम कदम है शुरूवात

नव उषा की मादकता है

इसकी सुगन्ध में नव जीवन की।

जागी है उम्मीद नई।।


अन्ना हजारे के आन्दिलन को समर्पित और उन लोगों को जिन्होंने भ्रष्टाचार से लड़ने की ठानी।

एम. अफसर खान सागर

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

अभियान

जुड़ कर संघर्ष करें...



आइए, भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करने का प्रयास करें। सहयोग सुझाव दें और साथ चलें इस मुहीम में। आज जो मुल्क के हालात हैं उन्हे आप नहीं समझेंगें तो कौन समझेगा? अब वक्त आन पडा है युवाओं को भ्रष्टाचार के इस महाभारत में कूदने का। तलाश है अर्जुन का। समय है आपका। तो बढ़ाइए हाथ, लड़ीये जंग, छेड़िये अभियान अनवरत भ्रष्टाचार के खिलाफ। आप नहीं चेतेंगे, तो कौन आयेगा आगे?
तो
शुरू करिये नया जंग....

पी जे अब्दुल कलम सर के शब्दों में...
खुद सोचो कि क्या दे सकते हो?

http://youthbrigadeac.blogspot.com

अपने विचार मेल करें...
youthbrigadeac@gmail.com

जुड़ें और इस संघर्ष में साथ दें...
join.ybac@gmail.com

गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

रिश्तों की नीव

आधुनिक
भारतीय समाज में सुदूर
विदेशों कि तमाम सोसल नेट्वोर्किंग
सैएटों को बड़े ही जोशो खारोशों से
अपनाने का उपक्रम
बड़े ही तेजी से चल रहा है
पर अपने ही नीचे की
जमीन खिसक रही है
इसका पता हमें क्या लग रहा है

विर्चुवल वर्ल्ड के स्वागत को
तत्पर दिखते है
रियल वर्ल्ड से कोसों दूर हो रहे है
अपनो की ही नेट्वोर्किंग से
अंजान और क्रमशः दूर हो गए है
एकाकी जीवन में इस कदर खो गए है
टूटते घर और छीजते परिवार
इस व्यथा को चीख कर कह रहे है

फेसबुक पर तो सिस्टर वीक को
उद्यमता से सेलेब्रेट कर रहे है
पर अपनी सगी बहनों की
खबर से अंजान हो रहे है

अपने जीवन के न जाने
कितने मूल्यवान बसंत को जिसने
अजीज भाई के लिए बड़े ही
तत्परता से बलिदान कर डाला
भाई को युवा करने के लिए
अपने यौवन का गला घोट डाला
उस भाई ने इस मर्यादा को ही
बड़े ही सिद्दत से धो डाला

रहे होंगे उन बहनों के
भी कितने अरमान
कभी कम नहीं थे सोसाइटी में
उनके भी मान सम्मान
जब एक अज्ञात अनिष्ट कि
आशंका ने उन्हें स्वयं घर में
कैद के लिए विवश कर दिया था
क्या उस दशा में उस भाई का
कोई फर्ज नहीं था

उस भाई ने अपने को
अपने सपनों कि दुनिया में ही सिमटा लिया
जिनकी बिना पर वह सपने देख रहा था
उन्ही को ठुकरा दिया

न जाने कितनी फ़िल्मी और
गैरफिल्मी गीत भाई बहन के
रिश्ते पर लिखी गयी होगी
जिन्हें पढ़ लिख कर कितनी बार
हमारी आंखे नम हो गयी होगी
पर नम क्यों नहीं होती इन
रियल भाइयों कि आंखे
क्या रह जाएँगी ये सिर्फ
किताब कि बातें
जिन्हें जब चाह पढ़ा और
आंसूं गिरा आँखों को धो लिया
दिल के बोझ को इक्छानुसार
जब चाह कम कर लिया
फिर उन भावनाओं को
पन्नो में दफ़न कर दिया

दूर करना होगा हमें
इन विसंगतियों को
गहराई से समझना होगा
इन रक्त के रिश्तो को
जीवन में एक दिन ऐसा
हर किसी के जीवन में आता है
जीवन के सबसे करीबी और कीमती
रिश्तों के रूप में
माँ बापू का साया
सर से उठ जाता है
ऐसे में मात्र एक बहन ही
रक्त के रिश्ते के रूप में शेष रहती है
बाकी रिश्ते तो बस
रिश्तों के अवशेष सी दिखती है
बहन अगर बड़ी है तो
माँ का प्यार देती है
छोटी बहन का क्या कहना
वह तो बेटियों सी होती है
आंगन का सृंगार होती है
जो कितनी भी आपदा से घिरी हो
पर पापा पर अपने जान को
बेहिचक न्योछावर करती है

आइये सुदृढ़ करे इन
रिश्तों के जीव को
सजीव करे पुनः निर्जीव हो चुके
रिश्तों की नीव को

सम्मान

अम्बेडकरवादियों का सम्मान



मैं 19 अप्रैल 2011 को लखनऊ में था। 18 अप्रैल को मुगलसरा से श्रमजीवी से लखनऊ पंहुचा। रात्रि विश्राम के बाद चारबाग के रवीन्द्रालय सभागार में 12 बजे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ हवालदार सिंह जी के साथ पहुंचा। अवसर था अम्बेडकर रत्न अवार्ड 2011 सम्मान समारोह का। रामदास आठवले ने उत्तर प्रदेश के 120 अम्बेडकरवादियों को सम्मानित किया। मुख्य रूप से अज़ीज़ इलाहाबादी, डॉ हवालदार सिंह, डॉ झूरी राम, डॉ जयराम सिंह, श्री राम शिव मूर्ति यादव, राम नगीना यादव सहित 120 लोगों को सम्मानित किया गया।


बुधवार, 13 अप्रैल 2011

आगाज़


सभी हजरात को एम अफसर खान सागर का आदाब और सलाम,
बड़े भाई और हमारे अग्रज कृष्ण कुमार यादव जी की जानिब से युवा मन ब्लॉग से जुड़ कर अपनी भावना और विचार रखने का एक सशक्त जगह मिला, इसके लिए हम शुक्रगुजार हैंआज मौका बेहतर है इसलिए मैं युवा मन में शुरुवात कवि और साहित्यकार जनाब विजय कुमार मिश्र बुद्धिहीन जी की दो रचना से कर रहा हूँ
आप सभी के दुआओं का हमेशा तलबगार....

एम अफसर खान सागर
http://afsarpathan.blogspot.com


मन की बातें


चलो प्रिये करें मन की बातें
कटते दिन नहीं कटती रातें
द्वार खड़े उसपार नदी के
खड़े-ख्रड़े क्यों हमें बंलाते।
चलो प्रिये...

बरसों पहले जहां मिले हम
सपने ढ़ेर सजाए
सपनों में खोए अब हमतुम
करें वहीं फिर से मुलाकातें।
चलो प्रिये...

हवा में झोंकों से बल खाते
नदी के लहरों पर लहराते
नाव सरीखे क्यों बहती हो
पल्लू को अपने पाल बनाके
आओ प्रिये तुम मेरे तट पर
जहां चांद हंसे तारे मुस्काते।
चलो प्रिये....

नदी की बहती कल-कल धारा
आंखों से कर रही इशारे।
चुप बैठो , पवन निगोड़े
प्रियतम हमको पास बुलाते
आओ प्रिये करें मन की बातें।।



इबादत




मंदिरों की घंटियां या
मस्जिदे सुबहो अजान
है इबादत एक ही
हिन्दू करें या मुसलमान।

फर्क क्या पड़ता है , रब
मैं करूं या वो करें
मैं पूजूं पूनम का चंदा
वो निहारे दूज के चांद।

है कहां मतभेद जब
सूरज और चंदा एक है
है कहां तकरार जब
आबो हवा सब एक है।

क्यों घिरे खौफ ये बादल
जब इरादा नेक है
आब गंगा से जुड़ा है
और जुड़ा काबे से पानी।

है नहीं खैरात की यह जिन्दगानी
सांस चलती है खुदा की मेहरबानी।
सिंध हो या हिन्द हो या पाके सरजमीं
सब खुदा के एक बन्दे हिन्दुस्तान-पाकिस्तानी
राम और रहमान में ना फर्क है
धर्म और ईमान में क्या तर्क है।।



विजय बुद्धिहीन
पेशे से अधिशासी इंजीनियर, रेलवे मुगलसराय, दिल से उच्चकोटि के मंचीय कवि। दो काव्य संग्रहदर्द की है गीत सीताऔरभावांजलिशीघ्र ही आने वाली है

अन्ना से मिली उर्जा को हमें सुरक्षित रखना होगा

एक बार पुनः
अतीत ने अपनी श्रेष्ठता
वर्तमान पर सिद्ध की
हम काफी दिनों से बात
कर रहे थे भ्रष्टाचार पर प्रहार की

एक दूसरे का मुंह देख रहे थे
कौन करे प्रारंभ बस यही सोच रहे थे
इसी बीच उम्र को चुनौती देते हुए
एक सत्तर साल के युवा ने
हमारे बेचैनी को देखा
एक बार पुनः अतीत की अगुआई
करते हुए वर्तमान को सीख
देने की मुद्रा में मोर्चा खोला

न केवल विजयश्री का
किया वरण
वरन भ्रष्टाचार भी मांगता
दिखा शरण

हाँ इस मुद्दे पर देशव्यापी
समर्थन युवाओं ने भरपूर दिया
ऊब चुके है इस व्यवस्था से
अपनी पुरजोर उपस्थिति से
यह सिद्ध किया

काश इसका आगाज
और पहले हो गया होता
तो देश इक्कीसवी सदी में
नए जोश और जज्बातों के साथ
कब का पहुँच गया होता
निसंदेह आज की तमाम
समस्याओं की जननी है
भ्रष्टाचार की यह विषबेल
निश्चित रूप से अब
समाप्त हो जानी चाहिए
यह नूरा कुश्तियों का खेल

पर सनद रहे
अन्ना हजारे से मिली उर्जा को
हमें संजो कर रखना होगा
इस लगी हुई आग को किसी
कीमत पर बुझने देना नहीं होगा
अन्ना के त्याग ने रखी है
जिस सत्य अहिंसा पर आधारित
लड़ाई की पुनः नीव
लगभग वर्तमान परिवेश में
विलुप्त हो चुके गाँधी की
प्रासंगिकता को किया है पुनः सजीव
तभी इस आन्दोलन की
सार्थकता फलित होगी
वर्ना इन भ्रष्टाचारियों की एक
नयी व्यवस्था के साथ
पुनः विषबेल बढेगी

कर ले हम चाहे
कितनी ही ऊँची बाते
करले कितने ही दौर की मुलाकाते
पर सच्चाई यही है कि
अतीत को बिसरा कर
बनती नहीं बातें
निकट अतीत कि घटना ने
इस बात के इतिहास को
पुनः दोहराया
कि सत्य परेशान भले ही हो
पर पराजित कभी हो नहीं पाया
बेशक यह कुछ लोगो के लिए
वही होता रहा है जो
उनको है नहीं भाया
पर देर से ही सही अन्ना ने
उनको भी जमीन पर लाया

संभव है आगे भविष्य में
ऐसे और मोर्चे अवश्य ही खोलने होगे
बेशक अन्ना हमारे साथ नहीं होगे
अतः हमें तैयार और जागरूक
इस निमित्त रहना होगा
एक नूतन शंखनाद के लिए
अन्ना से मिली उर्जा को
हमें सुरक्षित रखना होगा

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

छात्रावास की यादें

विश्वविद्यालय के पूर्व
छात्रो के समागम का पाकर निमंत्रण
बिह्वल हो गया आह्लादित मन
मन में अपार अकथ अव्यक्त विचार
और उदगार की संभावनाएं
लहरों की तरह उठ और गिर रही थी
किस किस से होगी मुलाकात
सोच तन मन सिहरित हो रही थी
कौन अब क्या कर रहा होगा
कौन अब कैसा दीख रहा होगा
कितनो के बाल सर पर होगे
कितनो के सर ख़ाली हो गए होगे
सभी अपने बच्चो को साथ लाये होगे
मिल कर सब मौज और मस्ती करेगे
अतीत की प्यारी बातें करेंगे
मन के किसी कोने में थी यह आस
करेंगे पुरानी यादें
जाकर अपने छात्रावास

निर्धारित तिथि पर मैं
सम्मेलन के लिए चल पड़ा
देखकर शानदार आयोजन
में हतप्रभ था खड़ा
परिसर के एक एक कोने से थी यादें जुडी
पर थी यहाँ किसको किसकी पड़ी
मित्रों से होती रही बस
औपचारिक मुलाकातें
होती रही बस कैरियर
और भविष्य की बातें
किसी को अतीत पर चिंता नहीं चर्चा की
देख सबका प्रोफेसनल व्यवहार
मैंने भी कोई परिचर्चा की नहीं
सब दावतें उड़ाने में व्यस्त
सूरज होने को था अस्त

मैं अकेले ही चल पड़ा
अपने छात्रावास की ओर
वहां भी दीख रहा था काफी शोर
थोड़ी ही देर में था मैं
अपने कमरे के पास
वह कमरा मेरे लिए था खास
बाहर पड़ रहा था पाला
कमरे पर लटक रहा था ताला
बरामदे में खड़ा मैं उसमे
रहने वाले छात्र की राह देख रहा था
खड़ा खड़ा मैं अतीत में खो गया था
इतने अन्तराल के उपरांत भी
छात्रावास परिसर को कुछ परिवर्तन के बाद
भी तक़रीबन जस का तस पा रहा था
कोने वह बरगद का पेड़ आज भी
अविचल खड़ा लहरा रहा था
उस पर आज भी पंछियों का बसेरा
स्पष्ट दिख रहा था
जब भी कभी हम उदास होते
सुकून के लिए उसकी छावं में होते
गाँव से जब माँ बापू की आती
प्यार और सीख भरी पाती
उसी के नीचे बैठ उसे पदते
साथ में भेजे गए मेवे और
आचार का वही बैठ स्वाद चखते
माँ की बार बार की सीख और प्यार देख
जब कभी उसकी याद में आंसू चलते
उसकी छाव को हम माँ का आंचल समझ
उसकी गोद गोद में लेटे होते
माँ से दूर होते हुए भी माँ के करीब होते
यहाँ आकर माँ की याद पुनः ताजी हो गयी थी
जो की अब इस दुनिया में नहीं थी
न चाहते हुए भी आँखों के कोरो से
आंसुओं की बगावत चल रही थी

स्वयं को पुनः संभाल कर देखा
दूसरी और सेमर का विशाल वृक्ष
आज भी झूम रहा था
उससे गिरते हुए नाव प्रतीको को
छात्रावास के फुहारे में चलाना याद आ रहा था
सामने पंछियाना पेडो के समूह
जिसके नीचे कभी हम खेलते थे हु तू तू
उनके लाल लाल फूलो से पूरा
परिसर भरा हुआ था
मानो मेरे स्वागत को मेरा
इंतजार कर रहा था
सामने की क्यारियों में आज भी
गेंदा और गुलाब था खिला हुआ
उसकी खुशबू से सारा
परिसर था गमका हुआ
लान में आज भी मोरो के समूह
निर्भय विचरण कर रहे थे
भौरों के झुण्ड इस समय तक भी
फूलो पर मंडरा रहे थे
पंछियों के झुण्ड भी पेडो पर
स्थित अपने बसेरे पर जा रहे थे
खेल के मैदान से पसीना पोछते हुए छात्र
अपने छात्रावासों को जा रहे थे
दूर सड़क उस पर भगवान भाष्कर भी
क्रमशः अस्त हो रहे थे
सारा दृश्य ही मुझे परिचित लग रहा था
मानो सब मुझे पहचान मेरे
स्वागत को इच्छुक हो रहे थे
लान में पड़े बेंच पर बैठकर
मै आह्लादित था पूरा परिसर देखकर
पर साथ ही सोच रहा था कि
आज के मानव का हो गया है
कितना व्यावसायिक और मशीनीकरण
इमोशन और भावनाओ का हो गया है क्षरण
वह भूल गया है अतीत की समृद्ध
आधारशिला पर खड़ा करना
अपने भविष्य का महल
येन केन करना चाहता है बस
अपनी महत्वाकांछाओं का वरण
भूल चूका है समृद्ध यादों और
छोटी छोटी बातो में करना
खुशियों की तलाश
ढूढता रहता है पागलों की तरह
तीव्र ग्रीष्म में पलाश
झरोखों से आती प्यारी शीतल
पवन को छोड़ कर
समुद्री तुफानो में उड़ना पसंद करता है
लगातार और ऊँचा उड़ने की ख्वाइश में
असमय अपनी मृत्यु को आमंत्रण देता है
इन चलते फिरते बुद्धिजीवी लोगो से
बेहतर इन मूक प्राकृत उपादानो के
स्वागत से मै निरुत्तर और
निर्जीव सा हो गया था
खोकर अतीत की यादों में
इतने सजीवो के बीच में
अपने आप के निर्जीव होने पर
भी इतर रहा था