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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

क्या हमें भी अपने वजूद खोजने होंगे।

कार्यालयी दिवस का
अंतिम पहर
शनै शनै हो रहा था सहर
भर दिन कि व्यस्तता से थका मांदा
आज भीड़ हो गयी थी
और दिनों से कुछ ज्यादा
जम्हाई लेते हुए मै जैसे ही
काउंटर बंद करने चला
एक कातर असहाय आवाज
एकाएक कानो में पड़ा

बचवा
तनी देर और रुक जा
बीस रुपया भाडा खर्च
कई बड़ी दूर से आवत हिजा

सामने दिखा
एक कृशकाय वृद्धा का आगमन
पता चला साथ मे
उसका पुत्र भी था मदन
मैंने कहा माताजी जल्दी आकर
अपने फॅमिली पेंशन का फारम भरो
अपने पेंशन का पैसा लेकर
जल्दी से चलते बनो
वर्ना मुझे खजाना बंद करने मै
आज फिर देर हो जाएगी
त्यौहार के मद्देजनर
आज फिर मार्केटिंग नहीं हो पायेगी
पत्नी कल कि तरह आज भी
नाराज हो जाएगी

सुनते ही पुत्र मदन ने फटाफट
उसका फार्म भरा
झट से प्राप्त रुपये को फुर्ती से गिन
अपने जेब मै धरा
उसकी माँ बोली बचवा
तनी हमूं के पइसवा ता दिखैते
कम से कम दवईया वदे हमका
पांच सौ रुपया दी देते
वर्ना घर गैला पर एको रुपया
तोहार दुल्हिन से पाइब
बचवा बतावा
हमार दवईया कैसे किनैब

माई तोहरा से
पैसा कैसे गिनल जाई
तोहरा से कबहू सभल पाई
चला घर देखल जाई

वृद्धा दबी जबान से बुदबुदाने लगी
वाह रे बचवा हम तोहके बचपन मै
पैसवे से गिनती सिख्वाले रहली
नाक बहाय के जब तू घूमत रहला
तो पोछे सलीके भी हमे सिखौले रहली
आज तू हमके सलीका सिखैबा
पाथर पर दूब जमइबा

ढेर बतियाव जिन
एहिजे हमरे इज्जत कबाड़
बनाव जिन
देखत है को त्यौहार सर पे आयी बा
बब्लुआ के मम्मी के धोती कपडा और
लइकन के कपड़ा कीने के बाकि बा
तोहरा दवैये के सूझल बा
पता नहीं अब जी के का कियल जाई
चला काढ़ा पानी पी के अभही कम चली
अगले महिना कुछ देखल जाई

सरबौला हमही के मुवात हौ
देखा एके बड़े बाबू तनी
बूझत नइखे कि हमारे मुवला पर कैसे
केकरा भरोसे एहिजे नोटिया गिनी
वृद्धा अश्रुपूरित नेत्रों से कभी हमें
कभी मदन को देख रही थी
हर महिनवे मै कुछ कुछ
बहाना बनाय कुल पैसवे हड़पने की
बात हमसे कह रही थी
दमे के प्रकोप के कारण
डाक्टर के बताये कुछ जाँच को
कई महीने से कराने को सोच रही थी
एक महिना और कैसे बीती
सोंच के काप रही थी
अपनी असमर्थता पर
आंसुओं को आँख के कोरो में
रोके रो रही थी
मरते समय मदन के बाबू द्वारा
मदन को दी जाने वाली सीख के बारे मै
ही वह शायद सोच रही थी

तभी मेरे पियन पुन्वासी की आवाज ने
मेरे ध्यान को भंग किया
साहब समय होई गवा कहकर
उसने काउंटर बंद कर दिया
मै निर्विकरवत मौन
पत्नी की नाराजगी से भयमुक्त
बंद खिड़की के पल्ले को
एकाग्र देख रहा था
चाह कर भी मदन को उसके इस
कुकृत्य को रोक पाने का
दंश झेल रहा था
सोंच रहा था की क्या
ऐसे दिन हमें भी देखने होगे
तेजी से विलुप्त हो रहे
मानवीय मूल्यों के बीच
क्या हमें भी अपने वजूद
खोजने होंगे

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

राष्ट्र को एकसूत्र में पिरोती है हिन्दी

नांदेड, महाराष्ट्र। दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी एवं अहिन्दी भाषी हिन्दी लेखक संघ के संयुक्त तत्त्वावधान में महान साहित्यकार, चिंतक, समाज सुधारक गुरु गोविंद सिंह महाराज की कर्मभूमि नांदेड में आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय लेखक सम्मेलन में देशभर से पधारे विद्वानों ने हिन्दी को एकता के सूत्र में बांधने वाली शक्ति बताते हुए इसके अधिकाधिक प्रयोग पर बल दिया गया। स्वामी रामानंद तीर्थ विश्वविद्यालय के सायन्स कॉलेज के भव्य सभागार में विभिन्न सत्रों में चर्चा, कवि सम्मेलन, कार्टून प्रदर्शनी, तथा सम्मान समारोह के दौरान बहुत बड़ी संख्या में स्थानीय लेखक, पत्रकार, अध्यापक, शोध छात्र तथा हिन्दीप्रेमी लगातार उपस्थित रहे।

प्रथम दिवस के उद्घाटन सत्र में गुरुद्वारा हजूर साहिब सचखंड के मुख्यग्रन्थी प्रतापसिंह की उपस्थिति में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य एवं पूर्व सांसद लेखक स. हरविंदर सिंह हंसपाल, कालेज अध्यक्ष डा. व्यंकटेश काब्दे, हिन्दी अकादमी के उपसचिव डा. हरिसुमन बिष्ट, प्राचार्य डा. जी.एम.कलमसे तथा संस्था के अध्यक्ष डॉ. हरमहेन्दर सिंह बेदी ने दीप प्रज्वलित कर सम्मेलन का शुभारम्भ किया। स्थानीय संयोजिका सायन्स कालेज हिन्दी विभागाध्यक्ष डा. अरुणा राजेन्द्र शुक्ल ने गुरु गोविंद सिंह के साथ निजाम के अत्याचारी शासन के विरूद्ध संघर्ष करने वाले, क्षेत्र के मुक्तिदाता के रूप में स्थापित स्वामी रामानंद तीर्थ को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया। हजूर साहिब सचखंड के मुख्यग्रन्थी ने गुरुजी की अंतिम कर्मभूमि नांदेड़ के विषय में अनेक ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी दी वहीं स. हंसपाल एवं अन्य सभी वक्ताओं ने हिन्दी और गुरुगोविंद सिंह के साहित्य दर्शन को राष्ट्रीय एकता का पर्याय बताया। संयोजक सुरजीत सिंह जोबन ने देश के विभिन्न भागों से पधारे साहित्यकारों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।

चायकाल के बाद जानेमाने कवि महेन्द्र शर्मा द्वारा संचालित कवि सम्मेलन का आगाज देवबंद के डा. महेन्द्रपाल काम्बोज के ओजस्वी स्वर में गुरुजी की यशोगान से हुआ। देर रात तक चले कवि सम्मेलन में सर्वश्री हर्षकुमार, नरेन्द्रसिंह होशियार पुरी, मनोहर देहलवी, किशोर श्रीवास्तव, विनोद बब्बर, डा. रामनिवास मानव, डा.कीर्तिवर्द्धन, अतुल त्रिपाठी, ओमप्रकाश हयारण दर्द, डा.अहिल्या मिश्र, डा. अरुणा शुक्ल, संतोष टेलवीकर, ज्योति मुंगल, संगमलाल भंवर, डा. हरिसुमन बिष्ट ने राष्ट्रीय एकता के विभिन्न रंगं बिखेरे।

द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र में हजूर साहिब के मुख्य कथाकार ज्ञानी अमरसिंह की उपस्थिति में ‘गुरु गोविंदसिंह और उनका साहित्य साहित्य’ विषय पर परिचर्चा के दौरान अमृतसर के नानकदेव विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष रहे डॉ. हरमहेन्दर सिंह बेदी ने गुरुजी रचित ‘विचित्र नाटक’ को प्रथम आत्मकथा बताया। डा. बेदी के अनुसार गुरुजी ने अपने जन्म स्थान पटना से आनंदपुर और फिर दक्षिण भारत तक के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपना कर्मक्षेत्र बनाया। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए तलवार उठाई वहीं साहित्यिक समृद्धि के लिए कलम का सहारा भी लिया। अपने अल्प जीवन में ही महान कार्य करने वाले गुरुजी जुझारू योद्धा ही नहीं अनेक भाषाओं के विद्वान भी थे। अन्य वक्ताओं में अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी शिक्षण केन्द्र शिमला की अध्यक्षा प्रो.जोगेश कौर, इन्दौर के डॉ. प्रताप सिंह सोढ़ी, हैदराबाद की अहिल्या मिश्र, नांदेड़ की एम.ए. की छात्रा श्रीमती पूनम शुक्ल तथा डा. परमेन्दर कौर भी शामिल थे। इसी सत्र में स. सुरजीत सिंह जोबन के अभिनंदन ग्रन्थ ‘खुश्बु बन कर जिऊंगा’ की प्रथम प्रति संपादक डा. रामनिवास मानव ने मंच पर विराजमान अतिथियों को भेंट कर लोकार्पण करने का आग्रह किया। तत्पश्चात डा. अरुणा राजेन्द्र शुक्ल के शोधग्रन्थ ‘नरेश मेहता के उपन्यासों में व्यक्त अवदान’ का लोकार्पण किया गया। इस सत्र का संचालन राष्ट्र-किंकर के संपादक श्री विनोद बब्बर ने किया।

भोजनोपरान्त द्वितीय सत्र में ‘अहिन्दीभाषी प्रदेशों का हिन्दी लेखन’ विषय पर परिचर्चा में मुख्य वक्ता विनोद बब्बर ने हिन्दुस्तान की आजादी के 65 वर्ष बाद भी यहाँ अहिन्दीभाषी शब्द के प्रयोग को अपमानजनक और दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसके लिए सरकारों की ढुलमुल नीति को जिम्मेवार ठहराया। उन्होंने मातृभाषा और राष्ट्रभाषा को दोनों आंखें बताते हुए इनमें संतुलन की आवश्यकता बताई लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इन दोनों आँखों पर पट्टी बांधने तथा तीसरी आँख (अंग्रेजी) को प्रभावी बनाने केे प्रयास हो रहे हैं जबकि तीसरा नेत्र विनाश का सूचक है। इस सत्र में डा.हरि सिंह पाल, डा.शहाबुद्दीन शेख, डा.रेखा मोरे, डा.ज्योति टेलवेकर ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये। चायपान के बाद के सत्र में कवि सम्मेलन में विभिन्न राज्यों से आये कवियों ने अपनी श्रेष्ठ रचनाओं से वातावरण को हिन्दी कवितामय बनाया।

तीसरे दिन के प्रथम सत्र में क्षेत्र के लोकप्रिय विधायक श्री ओमप्रकाश पोकार्णा ने नांदेड की पवित्र भूमि पर सभी का स्वागत करते हुए सम्मेलन को राष्ट्रीय एकता का महाकुम्भ घोषित किया। विधायक महोदय ने हिन्दी के प्रति समर्पण के लिए स. सुरजीत सिंह जोबन तथा विनोद बब्बर को सम्मानित करते हुए उनके साहित्यिक अवदान की प्रशंसा की। इसी सत्र में ‘अंतर्राज्यीय भाषायी संवाद’ विषय पर हिन्दी अकादमी के उपसचिव डा. हरिसुमन बिष्ट ने मुख्य वक्ता के रूप में आदिकाल से आधुनिक काल तक के इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम व बाद में राष्ट्रभाषा बनने तक हिन्दी की राष्ट्रीय पहचान को रेखांकित करते हुए आज के वैश्वीकरण के दौर में हिन्दी को सम्पूर्ण राष्ट्र की आवश्यकता बताया। डा. बिष्ट के अनुसार राष्ट्रभाषा, सम्पर्क भाषा, आम बोलचाल की भाषा हिन्दी ही है इसीलिए यह हम सभी को एकसूत्रता में पिरोती है। डा. रामनिवास मानव की अध्यक्षता एवं डा. अरूणा के संचालन में डॉ. बेदी, आकाशवाणी दिल्ली के पुर्व राजभाषा निदेशक डा.कृष्ण नारायण पाण्डेय, डा. मान, डा. रमा येवले प्रमुख वक्ता थे।

अंतिम सत्र में स. हंसपाल, डा. बेदी नांदेड़ एजुकेशन सो. के उपाध्यक्ष श्र सदाशिवराव पाटिल, प्राचार्य डा. कलमसे ने विद्वानों को ‘भाषा रत्न’ सम्मान प्रदान कर उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। समारोह की समाप्ति के पश्चात स्थानीय संयोजिका डा. अरुणा राजेन्द्र शुक्ल द्वारा आयोजित प्रीतिभोज में सभी प्रतिभागियों के अतिरिक्त स्थानीय अधिकारियों, गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे। इस विदाई समारोह मंे सभी ने सुंदर आयोजन, श्रेष्ठ आतिथ्य एवं स्नेहिल व्यवहार से सभी का दिल जीतने वाली डा. अरुणा राजेन्द्र शुक्ल तथा उनके प्राचार्य डा. कलमसे की कण्ठमुक्त प्रशंसा की।
नांदेड़ से दिल्ली लौटते हुए सचखंड एक्सप्रेस के वातानुकुलित डिब्बे में कविगोष्ठी तथा डा. हरिसुमन विष्ट के उपन्यास अछनी-बछनी के कुछ अंशों का वाचन तथा समीक्षा संवाद आयोजित किये गये। इस नवप्रयोग की संकल्पना डा. रामनिवास मानव ने प्रस्तुत की जिसमें 25 से अधिक साहित्यकारों ने भाग लिया।

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

कृष्ण कुमार यादव की अंडमान से इलाहाबाद के लिए भावभीनी विदाई

चर्चित साहित्यकार, लेखक और ब्लागर कृष्ण कुमार यादव के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह से इलाहाबाद में निदेशक डाक सेवाएँ पद पर स्थानांतरित होकर जाने से पूर्व 6 फरवरी, 2012 को पोर्टब्लेयर में भव्य अभिनन्दन और विदाई समारोह आयोजित किया गया. टैगोर राजकीय शिक्षा महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में तमाम विद्वतजनों, साहित्यकारों, शिक्षाविदों, पत्रकारों और प्रशासनिक सेवाओं से जुड़े लोगों ने श्री यादव के कार्यकाल को सराहा और एक साहित्यकार के रूप में उनके प्रखर योगदान को रेखांकित किया. 'चेतना' सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक संस्था द्वारा श्री यादव को संस्था की मानद सदस्यता से विभूषित कर आशा की गई कि वे जहाँ भी रहेंगें, अंडमान-निकोबार से अपना लगाव बनाये रखेंगें.

कार्यक्रम कि अध्यक्षता करते हुए जवाहर लाल नेहरु राजकीय महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर में राजनीति शास्त्र विभागाध्यक्ष डा. आर. एन. रथ ने कहा कि प्रशासन के साथ-साथ साहित्यिक दायित्वों का निर्वहन बेहद जटिल कार्य है पर श्री कृष्ण कुमार यादव ने अल्प समय में ही अंडमान में अपने कार्य-कलापों से विशिष्ट पहचान बनाई है. उन्होंने अपने रचनात्मक अवदान से द्वीपों में चल रही गतिविधियों को मुख्य भूमि से जोड़ा और यहाँ के ऐतिहासिक व प्राकृतिक परिवेश, सेलुलर जेल, आदिवासी, द्वीपों में समृद्ध होती हिंदी इत्यादि तमाम विषयों पर न सिर्फ प्रखरता से लेखनी चलाई बल्कि उसे तमाम राष्ट्रीय-अन्तराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं और इंटरनेट पर प्रसारित कर यहाँ के सम्बन्ध में लोगों को रु-ब-रु कराया. श्री यादव के साथ-साथ जिस तरह से इनकी पत्नी श्रीमती आकांक्षा यादव ने नारी-विमर्श को लेकर कलम चलाई है, ऐसा युगल विरले ही देखने को मिलता है. आकाशवाणी के पूर्व निदेशक श्री एम्.एच. खान ने अपने संबोधन में कहा कि जिस प्रकार से बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री यादव अपनी प्रशासनिक व्यस्तताओं के मध्य साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं, वह नई पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है. आकाशवाणी, पोर्टब्लेयर के उप निदेशक (समाचार) श्री दुर्गा विजय सिंह 'दीप' ने उन तमाम गतिविधियों को रेखांकित किया, जो श्री यादव ने द्वीपों में निदेशक के पद पर अधीन रहने के दौरान किया. डाकघरों का कम्प्यूटरीकरण और उन्हें प्रोजेक्ट एरो के अधीन लाना, डाक-कर्मियों हेतु प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना, डाकघर से 'आधार' के तहत नामांकन, अंडमान के साथ-साथ सुदूर निकोबार में आदिवासियों के बीच जाकर उन्हें बचत और बीमा सेवाओं के प्रति जागरूक करना और उनके खाते खुलवाना, स्कूली बच्चों को पत्र-लेखन से जोड़ने के लिए तमाम रचनात्मक पहल और उन्हें डाक-टिकटों के प्रति आकर्षित करने के लिए तमाम कार्यशालों का आयोजन इत्यादि ऐसे तमाम पहलू रहे, जहाँ निदेशक के रूप में श्री यादव के प्रयास को न सिर्फ आम-जन ने सराहा बल्कि मीडिया ने भी नोटिस लिया. उन्होंने श्री यादव के सपरिवार साहित्यिक जगत में सक्रिय होने और आकाशवाणी पर निरंतर कार्यक्रमों की प्रस्तुति देने के लिए भी सराहा. 'चेतना' संस्था के महासचिव श्री घनश्याम सिंह ने श्री कृष्ण कुमार यादव के 'चेतना' सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था से लगाव पर सुखद हर्ष व्यक्त किया और कहा कि उनके प्रगतिशील दृष्टिकोण से हमारे कार्यक्रमों को नई दिशा मिली. चर्चित कवयित्री और प्रशासन में सहायक निदेशक श्रीमती डी. एम. सावित्री ने श्री कृष्ण कुमार यादव को एक संवेदनशील व्यक्तित्व बताते हुए कहा कि वे अधिकारी से पहले एक अच्छे व्यक्ति हैं और यही उन्हें विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और प्रशासन के साथ-साथ सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु प्रेरित भी करती है. यह एक सुखद संयोग है कि उनके पीछे विदुषी पत्नी आकांक्षा यादव जी का सहयोग सदा बना रहता है. पोर्टब्लेयर नगर पालिका परिषद् के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री के. गणेशन ने कहा कि अपने निष्पक्ष, स्पष्टवादी, साहसी व निर्भीक स्वभाव के कारण प्रसिद्ध श्री यादव जहाँ कर्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार अधिकारी की भूमिका अदा कर रहे हैं, वहीं एक साहित्य साधक एवं सशक्त रचनाधर्मी के रूप में भी अपने दायित्वों का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। अंडमान-निकोबार द्वीप समाचार के प्रधान संपादक श्री राम प्रसाद ने श्री यादव को भावभीनी विदाई देते हुए कहा कि कम समय में ज्यादा उपलब्धियों को समेटे श्री यादव न सिर्फ एक चर्चित अधिकारी हैं बल्कि साहित्य-कला को समाज में उचित स्थान दिलाने के लिए कटिबद्ध भी दिखते हैं। यह देखकर सुखद अनुभूति होती है कि कृष्ण कुमार यादव जी का पूरा परिवार ही साहित्य और संस्कृति के संवर्धन में तल्लीन है. श्रीमती आकांक्षा यादव जहाँ साहित्य और ब्लागिंग में भी उनकी संगिनी हैं, वहीँ इनकी सुपुत्री अक्षिता (पाखी) ने सबसे कम उम्र में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार-2011 प्राप्त कर अंडमान-निकोबार का नाम राष्ट्रीय स्तर पर भी गौरवान्वित किया है. अंडमान चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री के पूर्व अध्यक्ष श्री हरि नारायण अरोड़ा ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर किया कि श्री यादव आम जनता के लिए सदैव सुलभ रहते हैं और यही उन्हें एक लोकप्रिय अधिकारी भी बनाती है. प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इण्डिया के राजेंद्र प्रसाद शर्मा ने आशा व्यक्त की कि श्री यादव जैसे कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों के चलते लोगों का साहित्य प्रेम बना रहेगा। अनिड्को के प्रबंधक हेमंत ने कहा कि प्रशासन में अभिनव प्रयोग करने में सिद्धस्त श्री यादव बाधाओं को भी चुनौतियों के रूप में स्वीकारते हैं और यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है.

अपने भावभीनी विदाई समारोह से अभिभूत श्री कृष्ण कुमार यादव ने इस अवसर पर कहा कि अंडमान में उनका यह कार्यकाल बहुत खूबसूरत रहा, इसके बहाने ऐसी तमाम बातों और पहलुओं से रु-ब-रु होने का अवसर मिला, जिनके बारे में मात्र पढ़ा ही था. इस दौरान यहाँ से बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। श्री यादव ने कहा कि यहाँ के परिवेश में न सिर्फ मेरी सृजनात्मकता में वृद्धि की बल्कि उन्नति की राह भी दिखाई। उन्होंने अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में अपने अनुभवों और यहाँ के जन-जीवन पर एक पुस्तक लिखने की भी इच्छा जताई. श्री यादव ने कहा कि वे विभागीय रूप में भले ही यहाँ से जा रहे हैं पर यहाँ के लोगों और अंडमान से उनका भावनात्मक संबंध हमेशा बना रहेगा।

इस अवसर पर एक काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया, जिसमें सर्वश्री घनश्याम सिंह, मकसूद आलम, अनिरुद्ध पांडे, अरविंद त्रिपाठी, श्रीमती डी.एम. सावित्री, श्री दुर्ग विजय सिंह ‘दीप’ इत्यादि ने अपनी अपनी कविताएं पढ़ी। श्री कृष्ण कुमार यादव ने भी अपनी कविताओं और हाइकु से लोगों का मन मोहा. अंडमान के आदिवासियों पर आधारित उनकी कविता ने लोगों को बड़ा प्रभावित किया ।

कार्यक्रम का सञ्चालन श्री अशोक सिंह और आभार-ज्ञापन श्री नीरज बैद्य द्वारा किया गया.

- दुर्ग विजय सिंह 'दीप'
उप निदेशक- आकाशवाणी (समाचार)
पोर्टब्लेयर, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह.

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

बेटे का कफ़न

चल हट बुढ़िया
देखती नहीं पुलिस केस है
कल से हम राजनवा के बारे में
तुमसे पूछ रहे है
अभी तक तो कहती रही कि
तुम्हे उसका पता नहीं
आज जब उसका डकैती के दौरान
इनकौन्टर हो गया
तो क्यों चिल्ला रही

अभी तक तो डकैती का
मॉल दकारती रही
अब मुंह देख कर क्या करोगी
उसे अब देखने से क्या फायदा
क्या तुम अब उसे जिन्दा करोगी

नाही भईया हमार बबुआ
अइसन कबहू ना रहा
जरूर तू सभे के कौनो
ग़लतफ़हमी होई रहा
हाँ एका संगत बीच में
कछु गलत होई गवा रहा
स्कूल से भाग के
सनेमा वनेमा देखन लगा रहा
पर हमरी समझ से इतना भी नाही
कि ओके साथ हमका भी
ई दिन देखे के पड़ा
अब बाबू केकरा उम्मीद पर
बाकि जिनगी कटी
एक बबुआ का त हम
बचपन्वे मा खो दी रही
अनहि पर सगरो उम्मीद रही
कहते बुधिया विलाप करते हुए
दहाड़ मार कर गिर पड़ी
ओंठों के बीच अनवरत बुदबुदाती रही
बाबू फिर से विनती करत तानी
तनी हमरे बाबू क चेहरवा त दिखा दिहित
होई सकित है अभी जिन्दा होखब
हे भगवन अब हम का करब
दीना भगत उसको
संभालने में लग गया
अपने कलेजे पर पत्थर रख कर
गमछे के एक कोर से कभी
अपने आंसुओं को पोछता
कभी राजन की माँ को संभालता
उसके बेहोश चेहरे पर कभी
पास के सरकारी नल में
गमछे को भिगोकर जल डालता
अतीत में चला गया
कितनी मनौतियों के उपरांत
पहले बेटे के चेचक में गुजरने के बाद
राजन का जन्म हुआ था
याद नहीं न जाने कितनी बार
रिक्शा चला कर आने पर
थके होने के उपरांत भी
अपने बबुआ के लिए वह
कितनी बार घोडा बना था
अपने पसीने की एक एक बूँद से
उसने उसे बड़े ही हसरतो से पाला था
बुधिया और उसके जीवन का
वही तो एकमात्र सहारा था
उसे पूर विश्वास था कि
ऐसा राजन के साथ कुछ भी नहीं था
कि उसका इस तरह
इनकौन्टर किया जाता
हाँ रसूखवालों की चमचागिरी ने
अपना कोटा पूरा करने के लिए
उसे असमय समाप्त कर डाला था

बीती रात से ही रोते रोते
उसके आँखों के आंसू तो
लगभग सूख ही चले थे
पर पत्नी के साथ बेटे के पहचान
और अंतिम दर्शन की लालसा में
वे दोनों सुबह से वहा
बिना खाए पिए पड़े थे

बेटे से हाथ धो चुके रामदीन को
अब बुधिया की चिंता सता रही थी
तभी उसके दिमाक में
एक बात आ गयी थी
उसने अपने फटे कमीज से
एक बीस का मुड़ा मैला नोट निकला
उसे पुलिसवाले के जेब में डाला
तब उसने पसीजते हुए कहा
बड़े देर से तुम लोग समझते हो
जाओ उधर जाकर उसका मुंह देख लो

ससंकित मन व कापते पैरो से
बुधिया को लेकर वह आगे बढा
भगवन करे वह राजन न हो सोचता रहा
जैसे ही उसने कफ़न को हटाया
उसे देखने को बुधिया आगे बढ़ी
दहाड़ मार कर उसके लाश पर गिर पड़ी
रामदीन उसको उठाने के लिए
तेजी से आगे बढ़ा
तभी एक और मौत से
उसका पाला पड़ा
बुधिया भी उसे छोड़ अपनी
अंतिम यात्रा पर जा चुकी थी
रामदीन की झरझर अवसादग्रस्त आंखे
किंकर्तव्य विमूढ़
असहाय शून्य में ताकती रही