शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

पूस का पाला

अभी कल की बात

मै था अस्सी घाट पर

मित्रो के साथ

पता चला बी एच यूं अ इ टी के

तिन छात्र डूब गए

हम सकते मै आ गए

पुरे घाट पर छात्रो और

अध्यापको की भीड़ भारी

किनारे पर बैठी उनके माएं बिचारी

रुदन से उनके वातावरण

गमगीन हो गया सारा

स्तब्ध गंगा को अपलक निहारता

पिता किस्मत का मारा

क्या क्या उम्मीदे थी उसे

की किस तरह बनेगे वे नौनिहाल

उनके बुदापे की लाठी ये लाल

पर बीच मै ही सफ़र जिंदगी का

छोड़ कर चले गए

न जाने किसके सहारे वे अपने

बूड़े माँ बाप को छोड़ गए

मन मेरा उद्वेलित हो गया

एकाएक आक्रोस से भर गया

की आखिर क्या समझते है

ये बच्चे अपने आपको

क्यों समझते नहीं

वो इस पापको

की क्या उनके माँ बाप ने

इसी दिन के लिए उन्हें पाला था

क्या अपने खाने का निवाला

इसीलिए पहले उन्ही के मुह में डाला था

तनिक भी अगर सोचे होते

बेजा मौज मस्ती से बचे होते

जिसे की होस्टल को चलते समय

बापू ने कम पर माँ ने बहुत

ज्यादा समझाया होगा

कितने अरमानो से आचार और मुरब्बे का

डब्बा थमाया होगा

और कितनी बलिया लेकर कहा होगा

बचवा जातां से रहियो

अपन ख्याल रखियो

मौज मस्ती के चक्कर मै

जीतेजी उनको मार डाला

इसके बूते वो सहेगे

अब पूस का पाला

क्या खूब ख्याल रखा उनका इन्होने

पाला था बारे अरमानो से उन्हें जिन्होंने

8 टिप्‍पणियां:

  1. सीख भी...विश्लेषण भी...शानदार प्रस्तुति.

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  2. सीख भी...विश्लेषण भी...शानदार प्रस्तुति.

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  3. बहुत सुंदर भाव |कविता अच्छी लगी |बधाई
    आशा

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  4. Achcha likha hai.....
    sare drasy ankho ke samane ho jaise

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