शनिवार, 23 मई 2009
लोकसभा में अपराधियों व करोड़पतियों की बहार
नवनिर्वाचित 15वीं लोकसभा में करोड़पतियों की भी कोई कमी नहीं दिखती। हर दूसरा सांसद करोड़पति और तीसरा आपराधिक पृष्ठभूमि वाला है। 300 सौ सांसदों की संपत्ति करोड़ों में हैं। जहाँ आपराधिक पृष्ठभूमि में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है वहीं करोड़पतियों की फेहरिस्त में भी उत्तर प्रदेश के ही प्रत्याशी छाये हुए हैं।
तो ये हैं नई संसद की तस्वीर। जिस संसद से हम देश को प्रतिष्ठा एवं सामाजिक न्याय दिलाने की आशा करते हैं, दुर्भाग्यवश वही संसद अपने निर्वाचित सदस्यो ंके चलते कटघरे में खड़ी होती नजर आती है। धनबल-बाहुबल के बीच जनता की इच्छााओं का कितना सम्मान होगा, यह तो वक्त ही बतायेगा। फिलहाल हम तो प्रधानमंत्री जी से इतनी अपेक्षा अवश्य कर सकते हैं कि मंत्रिपरिषद से दागियों को बाहर रखकर एक नजीर प्रस्तुत करें।
राम शिव मूर्ति यादव
सोमवार, 18 मई 2009
1 सेकेंड में 20 करोड़ फोटो
गौरतलब है कि अभी तक इस प्रौद्योगिकी संस्थान में 500 फोटो प्रति सेकेंड कैद करने वाला कैमरा उपलब्ध था। वाहन निर्माण कंपनियों में वाहनों जैसे कारों, बसों व हवाई जहाज की डिजाइनिंग के परीक्षण के लिए वाहन को तेज गति से किसी ठोस वस्तु से टकराया जाता है। इस टकराव को द्रुतगति वाले कैमरे ही कैद कर पाते हैं। टकराहट से वाहन की धातु में हुई क्रैक्स का अध्ययन कर उसकी प्रक्रिया को समझा जाता है। तेज गति से हवा को चीर कर चलने वाले वाहनों के डिजाइन माॅडल को अधिक मजबूत, गुणवत्तापूर्ण एवं विशिष्ट बनाने के लिए परीक्षण में यह हाई स्पीड कैमरा महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। वैसे आई0आई0टी0 कानपुर ने स्वयं इससे पूर्व 1990-91 में एक हाई स्पीड कैमरा बनाया था, जो एक सेकेंड में दो लाख चित्र कैद कर सकता है।
कृष्ण कुमार यादवhttp://www.kkyadav.blogspot.com/
रविवार, 17 मई 2009
एक सबक है लोकसभा का यह जनादेश
राम शिव मूर्ति यादव
http://www.yadukul.blogspot.com/
शुक्रवार, 15 मई 2009
एक स्वस्थ जनमत की आस में...
चुनावों से पहले हर राजनैतिक दल अपराध मुक्त समाज एवं शुचिता की दुहाई देता है, पर राजनैतिक अखाड़े में उतरते समय ये सब बाते गर्त में ढकेल दी जाती हैं। किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत मिलना तो अब दूर रहा, ऐसे में जोड़तोड़ कर गठबन्धन बनाने और सरकार गठन के लिए सभी दल माफियाओं, ब्लैकमनी और हार्स ट्रेडिंग का सहारा लेते हैं। बैलेट (मतपत्र) और बुलेट (बन्दूक की गोली) का नापाक गठबन्धन तमाम विकासशील देशों सहित भारतीय लोकतंत्र की भी अजीब नियति बन चुका है।
बैलेट (मतपत्र) और बुलेट (बन्दूक की गोली)-ये दोनों शब्द भले ही विरोधाभासी हों पर इन दोनों शब्दों की उत्पत्ति अंग्रेजी के एक ही शब्द ’बाल’ (गंेद) से हुई है। ग्रीकवासियों को जब किसी प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करना होता था, तो वे उसके खाते में सफेद बाल छोड़ते थे, और विपक्ष में होने पर काली गेंद। ’ब्लैकबाल्ड’ टर्म की उत्पत्ति भी इसी से हुई है। सफेद गेंद यानी ’बैलेट’ और काली गेंद यानी ’बुलेट’, है न यह है हैरान करने वाली अनोखी बात!
‘कैंडिडेट्‘ (प्रत्याशी) शब्द की उत्पत्ति भी अजूबा उत्पन्न करती है। इसकी उत्पत्ति लैटिन के शब्द ‘कैडीडेट्स‘ से हुई है। कैंडीडेट्स का मतलब होता है सफेद पोशाक या सफेद पहनावा। कालांतर में यह सफेद पोशाक ही नेताओं की पहचान बन गई। यह पहचान कैंडीडेट को चिन्हित करने के लिए था, जो बाद में नेताओं की पोशाक बना। विशेषकर भारतीय नेताओं ने तो इसे हूबहू अपना लिया। पहले खादी का सफेद कुर्ता-पायजाना चलन में था, लेकिन अब सफेद पैंट-शर्ट भी नई पीढ़ी के नेताओं द्वारा इस्तेमाल में लाया जा रहा है।
फिलहाल ‘कैडीडेट्स‘ का ई0वी0एम0 और बैलेट (मतपत्र) में कैद भाग्य कल 16 मई 2009 को खुलेगा। आशा की जानी चाहिए कि भारतीय लोकतंत्र एक स्वस्थ जनमत की ओर अग्रसर होगा एवं तद्नुसार निर्मित सरकार संकीर्ण हितों की बजाय राष्ट्र के विकास एवं उन्नति की ओर अग्रसर होगी और एक राष्ट्र के रूप में भारत मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा इत्यादि समस्याओं से दूर एक समृद्विशाली राष्ट्र के रूप में नई ऊँचाइयों को छुए।
राम शिव मूर्ति यादव
http://www.yadukul.blogspot.com/
मंगलवार, 12 मई 2009
फूलों की सुन्दरता को महसूस तो करें !!
खिला हुआ फूल प्रकाशित कविता है जिसके रचियता भगवान है,यह एैसी रचना है जिसकी समीक्षा तो की जा सकती है लेकिन आलोचना नही । बनावट ,आकार , रंग , सुगंध इन सब का मि़श्रण फूल में इतना ज़बरदस्त होता है कि कला प्रेमियो को चाहिये कि वे सामूहिक रूप से पौधो के सामने खड़े होकर भगवान के सम्मान में ताली बजाये । फूल कुदरत के कारखाने का अदभुद प्रोड़क्ट है, लेकिन बाज़ार का आयटम नही । इसे मन के गमले मंे उगाया जाता है पैसे देकर खरीदा नही जाता । उगाया गया फूल प्रेमिका है और खरीदा गया फूल वैश्या । बनावट ,आकार,रंग और सुगंध के आगे भी फूल की और बहुत से विशेषताए है जो उसके फूलपन को बरकरार रखती है । फूल पाठशाला है, जहां सुगंध फैलाने का पाठ पढ़ाया जाता है । फूल को देखने का सुख , सब सुखो में श्रेष्ठतम सुख है । जिस समय हम फूल को देखते है उस समय हम भगवान का ध्यान कर रहे होते है । जब हम कोई अच्छी फिल्म देख रहे होते है तब हमारे ज़हन में उसके निर्देशक का विचार भी आता रहता है । कविता पढ़ते समय उससे कवि को अलग नही किया जा सकता । फूल को देखना एक सुंदर अहसास है और फूल को देखते हुए आदमी को देखना सुंदरतम । फूल लघु पत्रिका है ,कला फिल्म है । ज़ाकिर हुर्सन का तबला है ,बिसमिल्ला खां की शहनाई है फूल । समय के जिस क्षण में हम फूल को देख रहे होते है वह क्षण जीवन के तमाम क्षणो में सबसे महत्वपूर्ण और कीमती क्षण होता है क्योकि उस क्षण हम ज़रा रूमानी हो जाते है ,लचीले हो जाते है ,भावुक हो जाते है,उस समय हमारा दंभ मर चुका होता है हमारी लालच मिट चुकी होती है,आंखो से गुस्सा गुम हो चुका होता है और हाठो पर मुस्कान विराज चुकी होती है । यही तो वो भाव है जो हमारे इंसान होने को सार्थक करते है । बगीचे में टाईम पास करने के लिये आते है वे आदमी है लेकिन उन में से फूल से जुड़ जाते है वे इंसान है । हम पैदा भले आदमी के रूप में हो पर मरना इंसान बन कर चाहिये ।
उपर चांद और नीचे फूल । भगवान की ये दो अनुपम कृति आस्था के संेसेक्स में ज़बरदस्त उछाल दर्ज कराती है। अरबो खरबो की लागत से भी एैसा कारखाना स्थापित नही किया जा सकता जिसमें फूलो का उत्पादन हो सकता हो । फूल हमंे आस्तिक बनाते है उससे बड़ी बात ये है कि फूल हमें बेहतर इंसान बनाते है । फूल प्रेम को जगाते है ,प्रेम का अहसास कराते है ,दो हृदय को जोड़ते है ं। रिश्तो की नदी पर पुल बन जाते है फूल । फूल खिल खिल कर कह रहे है - कोमल बनिये , सुगंध बिखेरिये । फूलो की इस अपील पर गंभीरता पूर्वक विचार किया जाना चाहिये, उनके आव्हान पर चल पड़ना चाहिये । कोमलता फूल की वाणी है,सुगंध उसकी भाषा । फूलो की भाषा सीखना होगा क्योकि इसमें रस है । मंच पर किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का सम्मान उसे फूल देकर किया जाता है । गांव की लड़की सज संवर कर एक फूल अपने बालो मे लगा लेती है ये फूल का सम्मान है । फूल की व्याख्या उतनी आसान नही है जितनी उसकी उपलब्धता है ं। फूलो की अपनी दुनियाॅ है ,अपना इतिहास है,अपना अनुशासन है,अपना संविधान है । फूलो की संसद कभी प्रस्ताव पारित कर खुश्बू के संविधान में संशोधन नही करती । ये फूलो का चरित्र ही है जिसने गुलशन को शोहरत दिलाई है । नफ़रत के अनेको कारणो का जवाब है फूल। फूल लयात्मक गीत है, तुकान्त कविता है, मौसम के पन्ने पर लिखा नवगीत है । गुलशन के दफ्तर में फूल की नियुक्ति ने सुगंध को अंतराष्ट्र्ीय पहचान दिलाई है । अगर आपने कभी फूल को फूल के अंदाज़ में नही देखा होगा तो आज ही यह सौभाग्य प्राप्त करिये,समय का कोई भरोसा नही । इससे पहले की लोग आप पर फूल ड़ाले आप फूल पर न्योछावर हो जाईये । उठिये और बिना समय गंवाए नज़दीक के बाग में जाईये,और अनेको बार देखे हुए उन फूलो को मेरी नज़र से देखिये आपको फूल मंगल गीत गाते हुए दिखाई देगे । फूल बोलते हुए , झूमते हुए ,नाचते हुए दिखाई देगे । उस समय आपको सब बदला बदला दिखाई देगा । दरअसल यह परिवर्तन उस समय आपके अंदर हो रहा होगा । कुछ ही क्षण में आपको एैसा लगेगा कि आप स्वयं एक फूल हो गये है।
जिस समय आप फूल को देख रहे होते है उस समय आप वो नही रहते है जो आप है, बल्कि उस समय आप जो नही है वो हो जाते हो । नही होने का हो जाना ही क्रंाति है और ये क्रांति एक क्षण मंे हो जाती है । एकाएक आपको पूरी दुनियाॅ सुंदर महसूस होने लगती है ,सब से प्रेम करने का मन करने लगता है । लालच आस पास भी नही फटकती । भाषा एक दम शालीन हो जाती है । बच्चो और नौकरो पर चीखने वाला व्यक्ति गाने लगता है । जीवन के चित्र में फूल रंग भर देते है । फूलो में सिर्फ शिल्प ही नही है उनका कथ्य भी है । फूल जीवन की सार्थकता समझा जाते है । आप महसूस करिये ये समूचा विश्व एक बगीचा है इसमें रंग रंग के फूल खिले है और आप इसके माली है । आप उन पौधो को सीचो जिसमें फूल खिलते है,एक दिन आप महसूस करोगे कि आपके अंदर एक उपवन आकार ले रहा है । आपकी सोच बदल जायेगी ,आपके शब्द नये अर्थ देने लगेगे , आप जहां भी जाओगे वातावरण को सुगंधित कर दोगे । आप एैसे मुकाम पर पहुच जाओेगे जहा फूलो की भाषा समझ में आने लगेगी । तब आप आंख बंद किये बैठे रहोगे और फूल आपको संबोधित करेगे । फूलो का व्याख्यान आपको एैसा इंसान बना देगा जिसकी दुनियाॅ को बहुत जरूरत है । आप अपना सब कुछ औरो को दे दो और उसके बदले कोई कामना मत करो, आप देखोगे कि देने के बाद भी आपका खज़ाना भरा का भरा रहेगा , ये मानव के लिये फूलो का पैग़ाम है । ये मात्र उपदेश नही बल्कि फूलो का भोगा हुआ यथार्थ है । फूलो का तो बस यही काम है कि जहां रहो उस जगह को महका दो । फूलो की कोई पार्टी नही होती ,कोई घोषणा पत्र नही होता ,कोई प्रशिक्षण शिविर नही होता । इन्हे सिर्फ देना आता है,इनके पास जो भी होता है वह उसे औरो पर उंड़ेल देते है और खाली होते ही पुनः भर जाते है । वही भरायेगा जो खाली है । खाली होकर भर जाने का यह फार्मूला हर क्षेत्र मं लागू होता है ।
फूलो की सफलता उनके स्वभाव में छिपी है । फूलो के स्वभाव में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इनमंे नरमी बहुत सख्ती के साथ शामिल है । अपने इस स्वभाव को फूल कभी नही छोड़ते चाहे जो हो जाये और दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सिर्फ देना जानते है ,औरो के काम आना जानते है उसके बदले में ये कोई आशा नही करते । ड़ाल पर खिला फूल सिर्फ फूल नही है बल्कि वह मंच पर बैठा संत है जो प्रवचन दे रहा है । हमें उससे लौ लगानी होगी ,उसको आत्मसात करना होगा, उसकी खुश्बू में सराबोर हो जाना होगा,उसके रंग में रंग जाना होगा, खुद को उसके स्वभाव में ढ़ालना होगा, दूसरे के काम आने के लिये अपनी ड़ाल से बिछड़ जाना होगा । साथियो स्वयं कों फूलमय कर दो , ज़िन्दगी के बाग़ में अच्छाई के फूल बन कर खिल जाओ , दुनिया को प्रेम के रंग में रंग दो ,सहयोग और त्याग की सुगंध बनकर समूची पृथ्वी में फैल जाओ । तुम अपने को टटोलो तुम्हारे अंदर अनंत संभावनाये है । तुम क्या नही कर सकते ? तुम सब कुछ कर सकते हो क्योकि तुम भगवान की अनुपम कृति हो । चित्रकार ,कथाकार ,संगीतकार , फिल्मकार सबको अपनी कृति प्रिय होती है तो क्या भगवान को अपनी इस कृति से प्रेम नही होगा ? ज़रा सोचिये जिसे भगवान प्रेम करे उसकी जिम्मेदारी कितनी बढ़ जाती है ? दोस्तो बहुत देर हो चुकी है अब और बैठना ठीक नही, फूलो की दिखाई राह पर चल पड़ो । तुम दुनियाॅ में नही - तुम में दुनिया होनी चाहिये । तुम्हारे अंदर मानवीय स्वभाव है इस स्वभाव को छोड़ना नही । इसी के दम पर तुम्हे साबित करना होगा कि ज़िंदगी के बाग़ में तुम्ही गंेदा हो ,चमेली हो , गुलाब हो ।
अख्तर अली फ़ज़ली अपार्टमेन्ट, आमानाका कुकुरबेड़ा,रायपुर (छ॰ग॰)मो॰ 9826126781 / akhterspritwala@yahoo.co.in
रविवार, 10 मई 2009
माँ तुझे सलाम !!

शनिवार, 9 मई 2009
‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ का पद्मश्री गिरिराज किशोर ने किया लोकार्पण
उक्त उदगार सुविख्यात साहित्यकार पद्मश्री अलंकृत गिरिराज किशोर जी ने युवा प्रशासक एवं साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर उमेश प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित एवं पं0 दुर्गा चरण मिश्र द्वारा सम्पादित ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ नामक पुस्तक के 9 मई 2009 को ब्रह्मानन्द डिग्री कालेज, कानपुर के प्रेक्षागार में आयोजित लोकार्पण समारोह को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। श्री किशोर ने कहा कि अल्पायु में ही श्री कुष्ण कुमार यादव ने उच्च प्रशासनिक पद की तमाम व्यस्तताओं के बीच जिस तरह साहित्य की ऊँचाइयों को भी स्पर्श किया है वह समाज और विशेषकर युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। ऐसे युवा व्यक्तित्व पर इतनी कम उम्र में पुस्तक का प्रकाशन स्वागत योग्य है।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रभाषा प्रचार समिति उ0प्र0 के संयोजक एवं मानस संगम के प्रणेता डा0 बद्री नारायण तिवारी ने अपने सम्बोधन में कृष्ण कुमार यादव की रचनाधर्मिता को सराहा और कहा कि ‘क्लब कल्चर‘ एवं अपसंस्कृति के इस दौर में जब अधिसंख्य प्रशासनिक अधिकारी बिना प्रभावित हुए नहीं रह पाते तो ऐसे में हिन्दी-साहित्य के प्रति अटूट निष्ठा व समर्पण शुभ एवं स्वागत योग्य है। उन्होंने कहा कि यह साहित्य जगत का सौभाग्य है कि उसे श्री यादव के रूप में एक और हीरा मिल गया है। उसे सहेज कर रखना और आगे बढ़ाना हमारी सबकी जिम्मेदारी है। डा0 तिवारी ने कहा कि जो लोग अच्छा कार्य कर रहे हैं उन्हें आगे बढ़ाना ही होगा यह चापसूसी नहीं बल्कि हम सबका दायित्व है।
समारोह में उपस्थिति लब्धप्रतिष्ठित विद्धतजनों ने कृष्ण कुमार यादव के कृतित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। डा0 सूर्य प्रसाद शुक्ल ने कहा कि श्री यादव भाव, विचार और संवेदना के कवि हैं। उनके भाव बोध में विभिन्न तन्तु परस्पर इस प्रकार संगुम्फित हैं कि इन्सानी जज्बातों की, जिन्दगी के सत्यों की पहचान हर पंक्ति-पंक्ति और शब्द-शब्द में अर्थ से भरी हुई अनुभूति की अभिव्यक्ति से अनुप्राणित हो उठी है। वरिष्ठ साहित्यकार डा0 यतीन्द्र तिवारी ने कहा कि आज के संक्रमणशील समाज में जब बाजार हमें नियमित कर रहा हो और वैश्विक बाजार हावी हो रहा हो ऐसे में कृष्ण कुमार जी की कहानियाँ प्रेम, संवेदना, मर्यादा का अहसास करा कर अपनी सांस्कृतिक चेतना के निकट ला देती है। अपने सम्बोधन में डा0 राम कृष्ण शर्मा ने कहा कि श्री यादव की सेवा आत्मज्ञापन के लिए नहीं बल्कि जन-जन के आत्मस्वरूप के सत्यापन के लिए है। इसी क्रम में भारतीय बाल कल्याण संस्थान के अध्यक्ष श्री रामनाथ महेन्द्र ने श्री यादव को बाल साहित्य का चितेरा बताया। प्रसिद्व बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर की कि श्री यादव ने साहित्य के आदिस्रोत और प्राथमिक महत्व के बाल साहित्य के प्रति लेखन निष्ठा दिखाई है। उन्होंने कहा कि अब से 20-25 साल पहले पुस्तक पूर्ण कर लेना ही बड़ी बात होती थी तब विमोचन या लोकार्पण जैसे समारोह यदा-कदा ही होते थे, आज श्री यादव की पुस्तक का लोकार्पण समारोह इस बात का प्रतीक है कि टीवी व इण्टरनेट के युग में भी हिन्दी साहित्य को एक बार फिर से सम्मान और समाज की स्वीकार्यता मिल रही है। गाजीपुर से पधारे समाजसेवी श्री राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि कृष्ण कुमार यादव में जो असीम उत्साह, ऊर्जा, सक्रियता और आकर्षक व्यक्तित्व का चुम्बकत्व गुण है उसे देखकर मन उल्लसित हो उठता है। इतनी कम उम्र में उन्होंने जितनी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं वो माँ सरस्वती एवं माँ शारदा की कृपा का ही प्रतिफल हैं। बी0एन0डी0 कालेज के प्राचार्य डा0 विवेक द्विवेदी ने श्री यादव के कृतित्व को अनुकरणीय बताते हुए युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत माना। पूर्व उपसूचना निदेशक शम्भू नाथ टण्डन ने एक युवा प्रशासक और साहित्यकार पर जारी इस पुस्तक में व्यक्त विचारों के प्रसार की बात कही। इस अवसर पर संस्कृत के उद्भट विद्वान पं0 पीयूष ने श्री यादव को उनकी साहित्यिक सफलता पर बधाई व आर्शीवचन देते हुए कहा कि जब किसी कृतिकार की कृति को विद्वानों का आशीर्वाद मिल जाए स्वीकृत मिल जाए तो समझो वो निःसंदेह सफल कृतिकार है। आज श्री यादव उसी कोटि में आ खड़ हुये हैं।
समारोह के अन्त में अपने कृतित्व पर जारी पुस्तक व लब्ध प्रतिष्ठित महानुभावों के आशीर्वचनों से अभिभूत कृष्ण कुमार यादव ने आज के दिन को अपने जीवन का स्वर्णिम दिन बताया। उन्होंने कहा कि साहित्य साधक की भूमिका इसलिए भी बढ़ जाती है कि संगीत, नृत्य, शिल्प, चित्रकला, स्थापत्य इत्यादि रचनात्मक व्यापारों का संयोजन भी साहित्य में उसे करना होता है। उन्होने कहा कि पद तो जीवन में आते जाते हैं, मनुष्य का व्यक्तित्व ही उसकी विराटता का परिचायक है।
समारोह के दौरान कृष्ण कुमार यादव की साहित्यिक सेवाओं का सम्मान करते हुए विभिन्न संस्थाओं द्वारा उनका अभिनंदन एवं सम्मान किया गया। इन संस्थाओं में भारतीय बाल कल्याण संस्थान, मानस संगम, साहित्य संगम, उत्कर्ष अकादमी, मानस मण्डल, वीरांगना, मेधाश्रम, सेवा स्तम्भ, पं0 प्रताप नारायण मिश्र स्मारक समिति एवं एकेडमिक रिसर्च सोसाइटी प्रमुख हैं।
समारोह का शुभारम्भ मुख्य अतिथिगणों द्वारा माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन से हुआ। तत्पश्चात पुस्तक के सम्पादक श्री दुर्गा चरण मिश्र द्वारा सभी का स्वागत किया गया। इस अवसर पर कृष्ण कुमार यादव की कविता ‘‘माँ‘‘ को संगीत में ढालकर प्रवीण सिंह द्वारा अनुपम प्रस्तुति की गई तो 6 सगी अनवरी बहनों द्वारा प्रस्तुत ‘वन्दे मातरम्‘ ने सद्भाव की मिसाल पेश की। कार्यक्रम का संचालन उत्कर्ष अकादमी के निदेशक डा0 प्रदीप दीक्षित द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अन्त में दुर्गा चरण मिश्र द्वारा उमेश प्रकाशन, इलाहाबाद की ओर से सभी को स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। कार्यक्रम में श्रीमती आकांक्षा यादव, डा0 गीता चैहान, डा0 प्रेम कुमारी, डा0 हरीतिमा कुमार, सत्यकाम पहारिया, कमलेश द्विवेदी, आजाद कानपुरी, डा0 ओमेन्द्र कुमार, सुरेन्द्र प्रताप सिंह, अनिल खेतान, श्री एस0एस0 त्रिपाठी, सहित तमाम साहित्यकार, बुद्विजीवी, पत्रकारगण एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
आलोक चतुर्वेदी,
उमेश प्रकाशन, 100-लूकरगंज, इलाहाबाद
बुधवार, 6 मई 2009
‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ का लोकार्पण - आमंत्रण

इस कार्यक्रम में आप सादर आमंत्रित हैं।
निवेदक-
आलोक चतुर्वेदी,
संयोजक- साहित्य संगम एवं उमेश प्रकाशन,
100, लूकरगंज, इलाहाबाद
मंगलवार, 5 मई 2009
आई0ए0एस0 टॉपर्स में लड़कियाँ काबिज
आकांक्षा
सोमवार, 4 मई 2009
युवा धडकनों के लिए अब ‘किस फोन‘
इस फोन में प्रेमी अपने मुँह के दबाव से ‘लव बाइट‘ देता है, तो वह दूसरी तरफ वाले व्यक्ति के पास ट्रांसमिट हो जाती है। हालांकि इसके लिए दोनों व्यक्तियों के पास यह ‘किस फोन‘ होना चाहिए। यह फोन ऐसे लोगों के लिए ‘लव गिट‘ से कम नहीं है, जो एक-दूसरे से दूर रहते हैं और जिन्हें अपने साथी को आलिंगन करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। ‘किस फोन‘ के फायदे तो हैं पर उस स्थिति की भी सोचिए जब यह रांग नंबर पर लग जाए। फिलहाल इंतजार कीजिए इस फोन के बाजार में उतरने का.........।
रविवार, 3 मई 2009
खुशबू बिखेरती बेटियाँ
अपनी तब्बुसम से इसे सजाती है बेटियाँ
पिघलती है अश्क बनके,माँ के दर्द से
रोते हुए भी बाबुल को हंसाती है बेटियाँ
सुबह की अजान सी प्यारी लगे
मन्दिर के दिए की बाती है बेटियाँ
सहती है दुनिया के सारे ग़म
फ़िर भी सभी रिश्ते निभाती है बेटियाँ
बेटे देते है माँ बाप को आंसू
उन आंसुओं को सह्जेती है बेटियाँ
फूल सी बिखेरती है चारों और खुशबू
फ़िर भी न जाने क्यूँ जलाई जाती है बेटियाँ !!
शनिवार, 2 मई 2009
बेलगाम नेता जी...
शुक्रवार, 1 मई 2009
मताधिकार

कृष्ण कुमार यादव
भारत सरकार की सिविल सेवा में अधिकारी होने के साथ-साथ हिंदी साहित्य में भी जबरदस्त दखलंदाजी रखने वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी कृष्ण कुमार यादव का जन्म १० अगस्त १९७७ को तहबरपुर आज़मगढ़ (उ. प्र.) में हुआ. जवाहर नवोदय विद्यालय जीयनपुर-आज़मगढ़ एवं तत्पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय से १९९९ में आप राजनीति-शास्त्र में परास्नातक उपाधि प्राप्त हैं. समकालीन हिंदी साहित्य में नया ज्ञानोदय, कादम्बिनी, सरिता, नवनीत, आजकल, वर्तमान साहित्य, उत्तर प्रदेश, अकार, लोकायत, गोलकोण्डा दर्पण, उन्नयन, दैनिक जागरण, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, आज, द सण्डे इण्डियन, इण्डिया न्यूज, अक्षर पर्व, युग तेवर इत्यादि सहित 200 से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं व सृजनगाथा, अनुभूति, अभिव्यक्ति, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, रचनाकार, लिटरेचर इंडिया, हिंदीनेस्ट, कलायन इत्यादि वेब-पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में रचनाओं का प्रकाशन. अब तक एक काव्य-संकलन "अभिलाषा" सहित दो निबंध-संकलन "अभिव्यक्तियों के बहाने" तथा "अनुभूतियाँ और विमर्श" एवं एक संपादित कृति "क्रांति-यज्ञ" का प्रकाशन. बाल कविताओं एवं कहानियों के संकलन प्रकाशन हेतु प्रेस में. व्यक्तित्व-कृतित्व पर "बाल साहित्य समीक्षा" व "गुफ्तगू" पत्रिकाओं द्वारा विशेषांक जारी. शोधार्थियों हेतु आपके व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक "बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव" शीघ्र प्रकाश्य. आकाशवाणी पर कविताओं के प्रसारण के साथ दो दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित काव्य-संकलनों में कवितायेँ प्रकाशित. विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित. अभिरुचियों में रचनात्मक लेखन-अध्ययन-चिंतन के साथ-साथ फिलाटेली, पर्यटन व नेट-सर्फिंग भी शामिल. बकौल साहित्य मर्मज्ञ एवं पद्मभूषण गोपाल दास 'नीरज'- " कृष्ण कुमार यादव यद्यपि एक उच्चपदस्थ सरकारी अधिकारी हैं, किन्तु फिर भी उनके भीतर जो एक सहज कवि है वह उन्हें एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए निरंतर बेचैन रहता है. उनमें बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व संतुलन है. वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ साहित्यकार हैं जो वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों, षड्यंत्रों और पाखंडों का बड़ी मार्मिकता के साथ उदघाटन करते हैं."
सम्प्रति/सम्पर्क: कृष्ण कुमार यादव, भारतीय डाक सेवा, वरिष्ठ डाक अधीक्षक, कानपुर मण्डल, कानपुर
ई-मेल: kkyadav.y@rediffmail.com ब्लॉग: http://www.kkyadav.blogspot.com/