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शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

वैलेंटाइन डे की बधाई !!

प्रकृति ने हमें केवल प्रेम के लिए यहाँ भेजा है. इसे किसी दायरे में नहीं बाधा जा सकता है. बस इसे सही तरीके से परिभाषित करने की आवश्यकता है. हम २४ घंटे केवल प्रेम करना चाहते हैं, ज्यादा से ज्यादा सोना, अच्छा खाना, सुन्दरता को देखना और उसे अपना बनाना, दोस्तों के साथ रहना, परिवार का लुफ्त उठाना, खेलना और अच्छा पहनना और बहुत कुछ ...... लेकिन हम केवल दिन के कुछ सीमित हिस्से को ही प्रेम क्यों समझते हैं? जब हम हर समय प्रेम ही करना चाहते हैं तो फिर प्रकृति को क्यों नाराज करना !!
इसलिए यहाँ कायम रहने लिए हमें केवल प्रेम करना प्रेम करना प्रेम करना और प्रेम करना होगा !
***वैलेंटाइन डे की आप सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ***

रविवार, 8 फ़रवरी 2009

ऋतुराज वसंत का आगमन

ऋतुराज वसंत के आगमन के साथ ही सब कुछ बदला-बदला नज़र आता है. फिजा में रोमांस का जुनून छाने लगता है. मात्र मानव ही नहीं पूरी प्रकृति वसंत के आगोश में समा जानी चाहती है. प्रेमी अपनी प्रेमिका को रिझाने लगता है, कवि की अभिव्यक्ति परवान चढ़ने लगती है, पेडों पर नए पत्ते दिखने लगते हैं,रंग-बिरंगे फूल खिलने लगते हैं, तितलियाँ उन पर मंडराने लगती हैं, हमारी संवेदनाएं ताजगी से भर उठती हैं. वसंत-पंचमी का आगाज़ सरस्वती जी की आराधना से आरम्भ होता है तो निराला जी की जयंती भी अब इस मस्तमौले वसंत के आगाज़ के साथ ही मनाये जानी लगी है. आज के सबसे प्रसिद्द गीतकार गोपाल दास 'नीरज'' जी की जन्म-तिथि भी इसी दौरान पड़ती है. पाश्चात्य देशों से तैरता-तैरता आया वैलेंटाइन डे की खुमारी भी इन दिनों अपने शवाब पर होती है. यूँ ही वसंत को ऋतुराज नहीं कहा गया है. फ़िलहाल यह मेरा सबसे पसंदीदा मौसम है और शायद आपका भी. तो आइये इसे जी भर कर जी लेते हैं. पता नहीं कब यह ख़त्म हो जाय. जिस तरह से पारिस्थितिक असंतुलन पैदा हो रहा है, उसमें सदैव यह भय बना रहता है कि ऋतुराज कितने दिन के मेहमान हैं !!!

शनिवार, 7 फ़रवरी 2009

आओ इश्क की बातें कर ले…….


आओ इश्क की बातें कर ले , आओ खुदा की इबादत कर ले ,
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!

लबो पर कोई लफ्ज़ न रह जाए, खामोशी जहाँ खामोश हो जाए ;
सारे तूफ़ान जहाँ थम जाये , जहाँ समंदर आकाश बन जाए......!
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!

तुम अपनी आंखो में मुझे समां लेना , मैं अपनी साँसों में तुम्हे भर लूँ ,
ऐसी बस्ती में चले चलो , जहाँ हमारे दरमियाँ कोई वजूद न रह जाए !
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!

कोई क्या दीवारे बनायेंगा , हमने अपनी दुनिया बसा ली है ,
जहाँ हम और खुदा हो, उसे हमने मोहब्बत का आशियाँ नाम दिया है.!
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!

मैं दरवेश हूँ तेरी जन्नत का ,रिश्तो की क्या कोई बातें करे.
किसी ने हमारा रिश्ता पूछा ,मैंने दुनिया के रंगों से तेरी मांग भर दी !
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!

मोहब्बत और क्या किया जाये किसे से , ये तो मोहब्बत की इन्तेहाँ हो गई
किसी ने मुझसे खुदा का नाम पूछा और मैंने तेरा नाम ले लिया.................!
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!

आओ इश्क की बातें कर ले , आओ खुदा की इबादत कर ले ,
तुम मुझे ले चलो कहीं पर , जहाँ हम खामोशी से बातें कर ले.......!!!


vijay kumar sappatti
M: 09849746500
E: vksappatti@gmail.com
B: www.poemsofvijay.blogspot.com

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

अभी से चढ़ने लगा वेलेण्टाइन-डे का खुमार


वसंत का मौसम आ गया है। मौसम में रूमानियत छाने लगी है। हर कोई चाहता है कि अपने प्यार के इजहार के लिए उसे अगले वसंत का इंतजार न करना पड़े। सारी तैयारियां आरम्भ हो गई हैं। प्यार में खलल डालने वाले भी डंडा लेकर तैयार बैठे हैं। भारतीय संस्कृति में ऋतुराज वसंत की अपनी महिमा है। वेदों में भी प्रेम की महिमा गाई गई है। यह अलग बात है कि हम जब तक किसी चीज पर पश्चिमी सभ्यता का ओढ़ावा नहीं ओढ़ा लेते, उसे मानने को तैयार ही नहीं होते। ‘योग‘ की महिमा हमने तभी जानी जब वह ‘योगा‘ होकर आयातित हुआ। ऋतुराज वसंत और इनकी मादकता की महिमा हमने तभी जानी जब वह ‘वेलेण्टाइन‘ के पंखों पर सवार होकर अपनी खुमारी फैलाने लगे।

प्रेम एक बेहद मासूम अभिव्यक्ति है। मशहूर दार्शनिक ख़लील जिब्रान एक जगह लिखते हैं-‘‘जब पहली बार प्रेम ने अपनी जादुई किरणों से मेरी आंखें खोली थीं और अपनी जोशीली अंगुलियों से मेरी रूह को छुआ था, तब दिन सपनों की तरह और रातें विवाह के उत्सव की तरह बीतीं।‘‘ अथर्ववेद में समाहित प्रेम गीत भला किसको न बांध पायेंगे। जो लोग प्रेम को पश्चिमी चश्मे से देखने का प्रयास करते हैं, वे इन प्रेम गीतों को महसूस करें और फिर सोचें कि भारतीय प्रेम और पाश्चात्य प्रेम का फर्क क्या है?

फिलहाल वेलेण्टाइन-डे का खुमार युवाओं पर चढ़कर बोल रहा है। कोई इसी दिन पण्डित से कहकर अपना विवाह-मुहूर्त निकलवा रहा है तो कोई इसे अपने जीवन का यादगार लम्हा बनाने का दूसरा बहाना ढूंढ रहा है। एक तरफ नैतिकता की झंडाबरदार सेनायें वेलेण्टाइन-डे का विरोध करने और इसी बहाने चर्चा में आने का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं-‘ करोगे डेटिंग तो करायेंगे वेडिंग।‘ यही नहीं इस सेना के लोग अपने साथ पण्डितों को लेकर भी चलेंगे, जिनके पास ‘मंगलसूत्र‘ और ‘हल्दी‘ होगी। तो अब वेलेण्टाइन डे के बहाने पण्डित जी की भी बल्ले-बल्ले है। जब सबकी बल्ले-बल्ले हो तो भला बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कैसे पीछे रह सकती हैं। आर्थिक मंदी के इस दौर में ‘प्रेम‘ रूपी बाजार को भुनाने के लिए उन्होंने ‘वेलेण्टाइन-उत्सव‘ को बकायदा 11 दिन तक मनाने की घोषणा कर दी है। हर दिन को अलग-अलग नाम दिया है और उसी अनुरूप लोगों की जेब के अनुरूप गिट भी तय कर लिये हैं। यह उत्सव 5 फरवरी को ‘फ्रैगरेंस डे‘ से आरम्भ होगा तो 15 फरवरी को ‘फारगिव थैंक्स फारेवर योर्स डे‘ के रूप में खत्म होगा। यह भी अजूबा ही लगता है कि शाश्वत प्रेम को हमने दिनों की चहरदीवारी में कैद कर दिया है। खैर इस वर्ष ज्वैलरी पसंद लड़कियों के लिये बुरी खबर है कि मंहगाई के इस दौर में पिछले वर्ष का 12 फरवरी का ‘ज्वैलरी डे‘ और 13 फरवरी का ‘लविंग हार्टस डे‘ इस बार हटा दिया गया है। वेलेण्टाइन-डे के बहाने वसंत की मदमदाती फिजा में अभी से ‘फगुआ‘ खेलने की तैयारियां आरम्भ हो चुकी हैं।

5 फरवरी - फ्रैगरेंस डे
6 फरवरी - टैडीबियर डे
7 फरवरी - प्रपोज एण्ड स्माइल डे
8 फरवरी - रोज स्माइल प्रपोज डे
9 फरवरी - वेदर चॉकलेट डे
10 फरवरी - चॉकलेट मेक ए फ्रेंड टैडी डे
11 फरवरी - स्लैप कार्ड प्रामिस डे
12 फरवरी - हग चॉकलेट किस डे
13 फरवरी - किस स्वीट हर्ट हग डे
14 फरवरी - वैलेण्टाइन डे
15 फरवरी - फारगिव थैंक्स फारेवर योर्स डे

सोमवार, 2 फ़रवरी 2009

रात भर यूं ही.........


कुछ भी कहो, पर....
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......

चाहता हूँ कि तुम प्यार ही जताते रहो,
अपनी आंखो से तुम मुझे पुकारते रहो,
कुछ भी कहो, पर....
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......

चुपके से हवा ने कुछ कहा शायाद ..
या तुम्हारे आँचल ने कि कुछ आवाज़..
पता नही पर तुम गीत सुनाते रहो...
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......

ये क्या हुआ , यादों ने दी कुछ हवा ,
कि आलाव के शोले भड़कने लगे ,
पता नही , पर तुम दिल को सुलगाते रहो
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......

ये कैसी सनसनाहट है मेरे आसपास ,
या तुमने छेडा है मेरी जुल्फों को ,
पता नही पर तुम भभकते रहो..
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......

किसने की ये सरगोशी मेरे कानो में ,
या थी ये सरसराहट इन सूखे हुए पत्तों की,
पता नही ,पर तुम गुनगुनाते रहो ;
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......

ये कैसी चमक उभरी मेरे आसपास ,
या तुमने ली है ,एक खामोश अंगढाईं
पता नही पर तुम मुस्कराते रहो;
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......

कुछ भी कहो, पर....
रात भर यूं ही आलाव जलाते रहो.......

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

युवा शक्ति को नमन की जरुरत: BHU में चरण छूने पर प्रतिबन्ध

बनारस अपनी वैदिक परम्पराओं, पांडित्य एवं कर्मकाण्डों के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यही कारण है कि महात्मा बुद्ध ने भी वैदिक कर्मकांडो के विरूद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तन से पहले बनारस में अवस्थित सारनाथ में अपना प्रथम उपदेश दिया। बनारस में स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एवं संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में शिष्यों द्वारा गुरू के चरण छूने की लम्बी परंपरा है। वैसे भी पूर्वांचल में नया अनाज पैदा होने पर जब उसका नेवान किया जाता है तो लोग मुहल्ले भर में घूम कर बड़ों का चरण छूते हैं। इसी प्रकार कभी दान देते समय दाता दान स्वीकार करने वाले का चरण छूता था। इसके पीछे मकसद था कि लेने वाले के मन में याचक का भाव न जगे। पहली नजर में यह अटपटा भी नहीं लगता, पर बदलते दौर में किसी के प्रति आदर प्रकट करने के और भी तरीके हो सकते हैं। चरण छूना आदर का सूचक हो सकता है लेकिन यह दूसरों के अहं को ठेस भी पहुंचाता है। समाजशास्त्रियों की नजर में आज चरण छूना कई मायनों में अच्छा नहीं है क्योंकि चरण छूने की प्रथा छद्म व्यवहार का परिचायक हो रही है। इसके पीछे कुछ लोग दूसरों को भी भ्रम में रखने की कोशिश करते हैं। इसी के मद्देनजर काशी हिंदू विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग ने चरण छूने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके लिए बकायदा विभाग में नोटिस तक जारी की गई है।

वस्तुतः इस सोच के पीछे काशी हिंदू विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. एम0के0 चतुर्वेदी एक संस्मरण भी बताते हैं। प्रयाग में कविवर रवीन्द्र नाथ टैगोर आए थे। सब उनका चरण छू रहे थे। एक दृढ़ व्यक्तित्व का धनी सुदर्शन युवक आया। उसने नमस्ते किया और भीतर चला गया। इस घटना ने विश्वकवि को झकझोर कर रख दिया था। वह बहुत देर तक संयत नहीं हो पाए। युवक भी कोई नहीं बल्कि हिंदी साहित्य के मूर्धन्य रचनाकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय थे। प्रो. एम0के0 चतुर्वेदी जे0पी0 आंदोलन के दौरान अज्ञेय से मिलने दिल्ली गए। जैसे ही वह आए, उनके साथ गए लोग अज्ञेय के चरण की ओर लपके। पर अज्ञेय ने कहा कि- ‘‘नहीं! चरण छूने की जरूरत नहीं। युवा शक्ति को नमस्कार करने की जरूरत है। इसलिए मैं आपको नमस्कार करता हूँ।‘‘ यह बात प्रो0 एम0के0 चतुर्वेदी के मन को अन्दर तक छू गई। अब उन्होंने इससे प्रेरणा लेते हुए अपने समाजशास्त्र विभाग में चरण छूने पर प्रतिबंध लगा दिया है। उनका तर्क है कि दिल की भाषा को दिल समझ लेता है। आदरणीय को अपने मन के भाव को समझाने के लिए चरण छूना जरूरी नहीं है।