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सोमवार, 25 नवंबर 2013

कउने दिशा में

कउने दिशा में 
लेके चला रे बटोहिआ 
गाते गाते आठवर्षिया 
बच्ची का गला 
रह रह कर फॅस रहा था
उसका दसवर्षीय भाई 
साथ में बैठा ढोलक 
बजा रहा था  

यह दृश्य रामनगर की  
कोट विदाई रामलीला के दौरान 
सजे बाज़ार के एक
कोने का था 

लोगो का हुज़ूम 
सतत आ जा रहा था 
उनकी संवेदनाओ का 
किसी पर कोई प्रभाव 
नहीं पड़ रहा था 

ठण्ड भी आहिस्ता से 
दस्तक दे चुकी थी 
कृशकाय 
एक फटे  बनियान और एक फ्रॉक में 
उन दोनों कि दुकान
सजी थी 

कोई दयालू 
आते जाते जैसे ही 
कुछ सिक्के उनके 
कटोरे में डालता 
उनके सुरों में एकाएक 
कुछ पलों  के लिए 
तेजी आ जाता 
पुनः किसी दूसरे दयावान 
की प्रतीक्षा में उनका स्वर 
क्रमशः मद्धम हो जाता 

उधर रामलीला को ओर 
भगवान राम सबको 
एक एक वस्त्र देकर 
अश्रु पूरित नेत्रों से 
कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए 
विदा कर रहे थे 
वो दोनों भी टकटकी लगाये 
उस दृश्य को अनवरत 
देख रहे थे 
साथ ही भोर कि ठण्ड से 
चिहुक भी रहे थे 
सम्भवतः वे सोच रहे थे 
कि काश  भगवान कि नजर 
उनकी तरफ भी 
पड़ जाय 
तो शायद वे भी 
तर जाये 

निर्मेष 

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

मन्नू क बालदिवस

मन्नू क  बालदिवस

मन्नू के दोनों हाथ 
चाक पर तेजी से चल रहे थे 
एक एक कुल्हड़ अपने 
आकार ले रहे थे 
मन्नू को आज अपना 
कम समाप्त करने की कुछ 
ज्यादा ही जल्दी थी 
स्कूल के बल दिवस में 
शिरकत करने  की उसकी 
तीव्र मंशा थी 

सुना था कुछ लोग 
तमाम उपहार लेकर आयेंगे 
उसे उसके जैसे गरीब बच्चो के बीच 
वितरित कर जायेगे 

मन्नू के बापू 
पिछले साल टी बी से 
पीड़ित ईलाज के अभाव में 
असमय ही चल बसे 
मन्नू के साथ पूरे परिवार को 
बेसहारा छोड़ गए 

माँ के प्रयास से मन्नू ने 
कुल्हड़ गढ़ना सीख लिया 
किसी तरह रोजी रोटी का 
एक जरिया निकाल लिया 
साथ ही पढ़ लिख कर 
कुछ करने की तीव्र चाह ने 
मन्नू पर बारह की उम्र में ही 
दोहरी जिम्मेदारियो को 
असमय ही लाद  दिया था 
उसे समय से पूर्व ही 
समझदार बना दिया था 

जल्दी से कम समाप्त कर 
मन्नू तैयार होकर 
स्कूल की ओर  भागा 
पर उपहारों की लाइन से 
तुरत निकाला गया वह अभागा 
कि स्कूल ड्रेस में नहीं 
आया था 
जिसके लिए पिछले कई दिनों से 
माँ से वह लगातार मिन्नतें 
कर रहा था 
पर माँ ने कभी पानी के टैक्स 
कभी मकान टैक्स 
तो कभी बिजली के बिल का 
देकर हवाला 
हर बार उसके  ड्रेस की 
मांग को टाला 

लाइन से दूर खड़ा 
मन्नू स्कूटी और कार से 
आये  स्कूल ड्रेस में सजे 
बच्चों को  तमाम 
सुन्दर सुन्दर उपहार लेकर 
जाते हुए 
हसरत भरी निगाहों से 
अनवरत देख रहा था 
उन उपहारों की सार्थकता के साथ 
बालदिवस के निहितार्थ को 
तलाश रहा था 
साथ ही अपनी किस्मत  और 
भाविष्य के बारे में आशंकित 
कुछ सोच रहा था 

निर्मेष 


बुधवार, 6 नवंबर 2013

गमछा

पिछले 
एकमाह से 
रामेदव जी तोड़ 
मेहनत  कर रहा था 
दीपावली के रंग रोगन के 
बाजार का भरपूर 
फायदा  उठाने में 
लगा था 

दिन में मजदूरी 
रात में डिस्टेंपर पेन्ट का काम 
कर रहा था एक के बाद 
एक का काम तमाम 
कमाए गए पैसो को 
गमछे में बाध  कर 
कमर के फेटे में रखता जाता
साथ ही गाँव में अपने सपने को 
सजोता जाता 

इस बार तो वह 
पत्नी के गहने छोड़वा कर ही रहेगा 
जिसे बापू कि तेरहवी के लिये 
मजबूरन गिरवी रखा था 
बच्चो के किस्म किस्म के 
पटाखों कि मांग को 
याद  करता जाता  
पत्नी व बच्चो के लिए 
कपड़ो एके बारे में भी सोचता जाता 
तल्लीनता से अपने काम को 
अंजाम दे रहा था 
हालाकि घर से कई बार 
बुलावा आता  रहा 
सेहत को ध्यान में रख 
काम करने का सुझाव 
माँ और पत्नी से 
लगातार पाता रहा 
वह अपने काम में मगन 
खुद को समझाता 
दीपावली के एक दिन पूर्व  तक 
काम करने का मन बनाता रहा 

दीपावली के एक दिन पहले 
आरिफ मियां के घर 
बालू गिर रहा था 
वह घर जाने  के लिए तैयार 
लगभग मुझसे मिलने आया था 
सहसा कह बैठा कि 
भैया एका भी ठीका दिला  दो 
तो हमरा घर जाये का भाड़ा 
भी निकल जाइये 
भले ही शाम कि गाड़ी से 
हम घर चला जइबे 

हमने उसे 
झिड़कते हुए समझाया 
पर उसके कोमल तर्कों पर विवश 
आरिफ से कह उसे उस बालू को 
ढोने का ठीका दिलवाया 

सर पर गमछा बांध 
उसने शाम तक उस काम को 
फुर्ती से निपटाया 
अपनी मजदूरीको पुनः 
गमछे के साथ फेटे में बांध 
स्टेशन को ओर ख़ुशी से 
चल दिया 

गाड़ी के चार घंटे 
लेट का एलान हुआ 
उसने पास कि बेंच पर 
आराम करने का सहसा 
मन बना लिया 
चाय और बिस्कुट का डिनर ले 
थका रामेदव 
स्टेशन की बेंच पर लेट गया 
थोड़ी ही देर में 
बेसुध सपने देखते 
नीद के आगोश में हो गया 

तभी चारो और 
चोर चोर पकड़ो पकड़ो  की 
तेज आवाज सुन 
वह अधकचरी नीद से जागा 
अपनी जगह से उठकर 
भयवश वह तेजी से भागा 
वर्दीधारियों में से एक ने 
उसे ही दौड़ कर पकड़ा 
वह कुछ कहता 
उसके पूर्व हे एक 
जोर का तमाचा जड़ा 
साले  चोरी कर 
कहा है भागता 

वह लाख समझाता रहा 
पर उनके तर्कों को 
दरकिनार कर 
तलाशी के नाम पर 
उसके फेटे का सब 
रकम जाता रहा 
ऊपर से चाँद थप्पड़ो के साथ 
गाली घेलुए में पाता रहा 

अंत में सुबह की 
समाचार का वह न्यूज बना 
चोर सिपाही का वास्तविक 
खेल खेलते हुए रामदेव  
अपने गमच्छे से ही 
स्टेशन कि रेलिंग पर 
सदा के लिए लटक कर 
खामोश होगया 

साथ ही वर्त्तमान 
व्यवस्था पर 
एक ओर जहाँ वह एक 
प्रश्नचिह्न छोड़ गया 
वही अपनी पत्नी और बच्चो को 
व्यवस्था से प्रतिशोध लेते हुए 
अनाथ कर गया 

निर्मेष