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शनिवार, 23 मई 2009

लोकसभा में अपराधियों व करोड़पतियों की बहार

15वीं लोकसभा के नतीजे आ चुके हैं। तमाम दावों के बावजूद जहां मत प्रतिशत काफी कम रहा, वहीं राजनैतिक पंडितों एवं विश्लेषकों के पूर्वानुमान को धता बताते हुए जनता ने अपने वोट द्वारा एक बार फिर से सिद्ध कर दिया कि उसे स्थायित्व एवं शालीनता की राजनीति चाहिए न कि आरोप-प्रत्यारोप, ग्लैमर एवं बाहुबल की। इसके बावजूद आंकड़ों पर सरसरी नजर डाली जाए तो इस नवनिर्वाचित लोकसभा में 150 ऐसे प्रत्याशियों ने चुनाव जीता है जिन पर कई अपराधिक मामले लंबित हैं। इनमें 73 प्रत्याशियों पर कुल 412 संगीन मामले चल रहे हैं, जिसमें अकेले 213 गंभीर प्रकृति के हैं। पिछले 2004 के लोक सभा चुनाव में 128 सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि के थे। उन पर 302 संगीन गंभीर प्रकृति के मामले चल रहे थे। इस प्रकार इस बार अपराधी छवि वाले सांसदों में 30।9 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। संतोष की बात यह है कि संगीन अपराध वाले बाहुबलियों की संसद में संख्या इस बार घटी है। फिलहाल यह गम्भीर विषय है कि नवनिर्वाचित लोकसभा में हर तीसरा सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि वाला है।

नवनिर्वाचित 15वीं लोकसभा में करोड़पतियों की भी कोई कमी नहीं दिखती। हर दूसरा सांसद करोड़पति और तीसरा आपराधिक पृष्ठभूमि वाला है। 300 सौ सांसदों की संपत्ति करोड़ों में हैं। जहाँ आपराधिक पृष्ठभूमि में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है वहीं करोड़पतियों की फेहरिस्त में भी उत्तर प्रदेश के ही प्रत्याशी छाये हुए हैं।

तो ये हैं नई संसद की तस्वीर। जिस संसद से हम देश को प्रतिष्ठा एवं सामाजिक न्याय दिलाने की आशा करते हैं, दुर्भाग्यवश वही संसद अपने निर्वाचित सदस्यो ंके चलते कटघरे में खड़ी होती नजर आती है। धनबल-बाहुबल के बीच जनता की इच्छााओं का कितना सम्मान होगा, यह तो वक्त ही बतायेगा। फिलहाल हम तो प्रधानमंत्री जी से इतनी अपेक्षा अवश्य कर सकते हैं कि मंत्रिपरिषद से दागियों को बाहर रखकर एक नजीर प्रस्तुत करें।
राम शिव मूर्ति यादव

सोमवार, 18 मई 2009

1 सेकेंड में 20 करोड़ फोटो

कभी आपने सोचा है कि कोई कैमरा एक सेकेंड में 20 करोड़ फोटो कैद कर सकता है। यदि नही ंतो सोच लीजिए और इसे देखना चाहें तो आई0आई0टी0 कानपुर तक आपको तशरीफ लाना होगा। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से आई0आई0टी0 कानपुर के मेकेनिकल विभाग की प्रयोगशाला में शोध की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु स्थापित इस अद्भुत हाईस्पीड कैमरे की कीमत लगभग दो करोड़ रूपये है। वैसे यह कैमरा एक समय में 16 फोटोग्राफ लेता है, परन्तु उसकी गति इतनी तेज है कि वह 20 करोड़ फ्रेम्स प्रति सेकेंड्स की दर से रिकार्ड करता है। कैमरा पूरी तरह से डिजिटल और कंम्प्यूटराइज्ड है जिससे उतारे फोटो्रग्राफ धीमी गति में फिल्म की तरह से देख सकते हैं। लंदन से आयातित इस कैमरे के बारे में सबसे रोचक तथ्य यह है कि यह विश्व का सबसे तेज गति से रिकार्डिंग करने वाले भारत का पहला एवं एशिया का तीसरा कैमरा है।

गौरतलब है कि अभी तक इस प्रौद्योगिकी संस्थान में 500 फोटो प्रति सेकेंड कैद करने वाला कैमरा उपलब्ध था। वाहन निर्माण कंपनियों में वाहनों जैसे कारों, बसों व हवाई जहाज की डिजाइनिंग के परीक्षण के लिए वाहन को तेज गति से किसी ठोस वस्तु से टकराया जाता है। इस टकराव को द्रुतगति वाले कैमरे ही कैद कर पाते हैं। टकराहट से वाहन की धातु में हुई क्रैक्स का अध्ययन कर उसकी प्रक्रिया को समझा जाता है। तेज गति से हवा को चीर कर चलने वाले वाहनों के डिजाइन माॅडल को अधिक मजबूत, गुणवत्तापूर्ण एवं विशिष्ट बनाने के लिए परीक्षण में यह हाई स्पीड कैमरा महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। वैसे आई0आई0टी0 कानपुर ने स्वयं इससे पूर्व 1990-91 में एक हाई स्पीड कैमरा बनाया था, जो एक सेकेंड में दो लाख चित्र कैद कर सकता है।

कृष्ण कुमार यादवhttp://www.kkyadav.blogspot.com/

रविवार, 17 मई 2009

एक सबक है लोकसभा का यह जनादेश

लोकसभा के चुनाव खत्म हो चुके हैं। सारी कयासों को धता बताते हुए जनता ने एक बार पुनः सिद्ध कर दिया कि उसका मत किसको जाता है और क्यों जाता है, इसका विश्लेषण इतना आसान नहीं है। यही कारण है कि भाजपा के पी0एम0 इन वेटिंग, वेटिंग लाइन में ही लगे रहे और कांग्रेस को छोड़कर लगभग हर राष्ट्रीय दल एवं तमाम क्षेत्रीय दल अपने में ही सिमट कर रह गया। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य जहां मुलायम सिंह और लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस को कमतर आंका था वहाँ इनकी ही जमीन खिसकती नजर आई। वस्तुतः तमाम क्षेत्रीय दलों का उदभव किसी न किसी रूप में जाति आधारित राजनीति से हुआ। दुर्भाग्यवश इन राजनैतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व ने यह मान लिया कि जिस जाति के समर्थन से ये सत्ता में आती हैं, वो उन्हें छोड़कर नहीं जा सकती हैं। पर जनता भी एक ही पगहे से बंधकर नहीं रह पाती। पिछड़ो-दलितों में जो राजनैतिक चेतना आई उसको भुनाने के नाम पर तमाम राजनैतिक दल कुकुरमुत्तों की तरह उगे और उनको ढाल बनाकर सत्ता की मलाई खाने लगे। आंतरिक लोकतंत्र को धता बताकर इन्होंने भाई-भतीजावाद को बढ़ावा दिया एवं सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर अपने परम्परागत जाति वोट बैंक पर सवर्ण जातियों को तरजीह दी। उत्तर प्रदेश में सपा में अमर सिंह तो बसपा में सतीश चन्द्र मिश्र इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। जमीनी सच्चाईयों से कटकर ग्लैमर की गोद में बैठकर अपने को महान समझ बैठे इन राजनेताओं के लिए वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव का जनादेश एक सबक है। यदि इसके बाद भी यह नहीं समझे तो इनकी राजनीति की नैया डूबना तय है।

राम शिव मूर्ति यादव

http://www.yadukul.blogspot.com/

शुक्रवार, 15 मई 2009

एक स्वस्थ जनमत की आस में...

लोकसभा चुनावों की मतगणना आरम्भ होने में अब बामुश्किल 24 घण्टे भी नहीं बचे हैं। इसी के साथ नई सरकार का भविष्य भी तय होगा। दुर्भाग्यवश हमारे जो राजनेता एक दूसरे के विरूद्ध चुनावों के दौरान जहर उगल रहे थे, वही अब एक दूसरे से गलबहियां करते नजर आ रहे हैं। तमाम राजनैतिक दलों के घोषणा पत्रों में निहित मुद्दों का अब कोई अर्थ नहीं रहा, येन-केन-प्रकरेण दिल्ली की कुर्सी पर कब्जा करना एकमात्र उद्देश्य रह गया है।

चुनावों से पहले हर राजनैतिक दल अपराध मुक्त समाज एवं शुचिता की दुहाई देता है, पर राजनैतिक अखाड़े में उतरते समय ये सब बाते गर्त में ढकेल दी जाती हैं। किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत मिलना तो अब दूर रहा, ऐसे में जोड़तोड़ कर गठबन्धन बनाने और सरकार गठन के लिए सभी दल माफियाओं, ब्लैकमनी और हार्स ट्रेडिंग का सहारा लेते हैं। बैलेट (मतपत्र) और बुलेट (बन्दूक की गोली) का नापाक गठबन्धन तमाम विकासशील देशों सहित भारतीय लोकतंत्र की भी अजीब नियति बन चुका है।

बैलेट (मतपत्र) और बुलेट (बन्दूक की गोली)-ये दोनों शब्द भले ही विरोधाभासी हों पर इन दोनों शब्दों की उत्पत्ति अंग्रेजी के एक ही शब्द ’बाल’ (गंेद) से हुई है। ग्रीकवासियों को जब किसी प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करना होता था, तो वे उसके खाते में सफेद बाल छोड़ते थे, और विपक्ष में होने पर काली गेंद। ’ब्लैकबाल्ड’ टर्म की उत्पत्ति भी इसी से हुई है। सफेद गेंद यानी ’बैलेट’ और काली गेंद यानी ’बुलेट’, है न यह है हैरान करने वाली अनोखी बात!

‘कैंडिडेट्‘ (प्रत्याशी) शब्द की उत्पत्ति भी अजूबा उत्पन्न करती है। इसकी उत्पत्ति लैटिन के शब्द ‘कैडीडेट्स‘ से हुई है। कैंडीडेट्स का मतलब होता है सफेद पोशाक या सफेद पहनावा। कालांतर में यह सफेद पोशाक ही नेताओं की पहचान बन गई। यह पहचान कैंडीडेट को चिन्हित करने के लिए था, जो बाद में नेताओं की पोशाक बना। विशेषकर भारतीय नेताओं ने तो इसे हूबहू अपना लिया। पहले खादी का सफेद कुर्ता-पायजाना चलन में था, लेकिन अब सफेद पैंट-शर्ट भी नई पीढ़ी के नेताओं द्वारा इस्तेमाल में लाया जा रहा है।

फिलहाल ‘कैडीडेट्स‘ का ई0वी0एम0 और बैलेट (मतपत्र) में कैद भाग्य कल 16 मई 2009 को खुलेगा। आशा की जानी चाहिए कि भारतीय लोकतंत्र एक स्वस्थ जनमत की ओर अग्रसर होगा एवं तद्नुसार निर्मित सरकार संकीर्ण हितों की बजाय राष्ट्र के विकास एवं उन्नति की ओर अग्रसर होगी और एक राष्ट्र के रूप में भारत मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अशिक्षा इत्यादि समस्याओं से दूर एक समृद्विशाली राष्ट्र के रूप में नई ऊँचाइयों को छुए।

राम शिव मूर्ति यादव
http://www.yadukul.blogspot.com/

मंगलवार, 12 मई 2009

फूलों की सुन्दरता को महसूस तो करें !!

जिस समय हम फूल को देखते है उस समय हमारे अंदर एक बाग खिल रहा होता है । फूल संसार में हर आदमी को सुंदर नही लगते , इस संसार मंे हर आदमी फूलो को देखता भी नही है । फूलो को वही निहारता है जो स्वयं अंदर से कोमल हो । क्रोधी और जिद्धी इंसान को फूल कभी प्रभावित नही करते। फूलो की सुंदरता आप के भीतर पहले से माजूद होनी चाहिये । फूलो को देखने का नियम है कि इन्हे आंख से नही मन से देखा जाता है । आंख का कोई मन नही होता लेकिन मन की अपनी आंख होती है । जो व्यक्ति अंदर से सूखा है उसे नदी का प्रवाह कभी गीला नही करता। अर्थ शास्त्र का छात्र फूल को तोड़ता है, दर्शन शास्त्र का छात्र उसे दूर से निहारता है । कुछ लोग एैसे होते है जिन्हे राह चलते किसी घर की मुंड़ेर पर खिला फूल दिखाई दे देता है और कुछ लोग एैसे होते है जिन्हे बाग में भी फूल दिखाई नही देता । बगीचे मंे उन्हे कीचड़ दिखाई देता है ,टूटी हुई बेंच दिखाई देती है ,फैला हुआ कचरा दिखाई देता है,फल्ली वाला दिखाई देता है , फुग्गे वाला दिखाई देता है, अंधेरे में बैठा जोड़ा तक दिखाई दे देता है लेकिन फूल जो वहां सबसे ज्यादा मात्रा में है वे दिखाई नही देते । यह देखने का संकट सम्पूर्ण विश्व मंे तेज़ी से पैर पसार रहा है । दरअसल वास्तव मंे यह विचारधारा का संकट है । विचार हीन व्यक्ति बाग मंे भी फूलो की सुंदरता को नही देख पाता है जबकि विचारवान व्यक्ति केे अंदर ही एक बाग मौजूद रहता है जिसमें सोच के फूल खिले रहते है ।

खिला हुआ फूल प्रकाशित कविता है जिसके रचियता भगवान है,यह एैसी रचना है जिसकी समीक्षा तो की जा सकती है लेकिन आलोचना नही । बनावट ,आकार , रंग , सुगंध इन सब का मि़श्रण फूल में इतना ज़बरदस्त होता है कि कला प्रेमियो को चाहिये कि वे सामूहिक रूप से पौधो के सामने खड़े होकर भगवान के सम्मान में ताली बजाये । फूल कुदरत के कारखाने का अदभुद प्रोड़क्ट है, लेकिन बाज़ार का आयटम नही । इसे मन के गमले मंे उगाया जाता है पैसे देकर खरीदा नही जाता । उगाया गया फूल प्रेमिका है और खरीदा गया फूल वैश्या । बनावट ,आकार,रंग और सुगंध के आगे भी फूल की और बहुत से विशेषताए है जो उसके फूलपन को बरकरार रखती है । फूल पाठशाला है, जहां सुगंध फैलाने का पाठ पढ़ाया जाता है । फूल को देखने का सुख , सब सुखो में श्रेष्ठतम सुख है । जिस समय हम फूल को देखते है उस समय हम भगवान का ध्यान कर रहे होते है । जब हम कोई अच्छी फिल्म देख रहे होते है तब हमारे ज़हन में उसके निर्देशक का विचार भी आता रहता है । कविता पढ़ते समय उससे कवि को अलग नही किया जा सकता । फूल को देखना एक सुंदर अहसास है और फूल को देखते हुए आदमी को देखना सुंदरतम । फूल लघु पत्रिका है ,कला फिल्म है । ज़ाकिर हुर्सन का तबला है ,बिसमिल्ला खां की शहनाई है फूल । समय के जिस क्षण में हम फूल को देख रहे होते है वह क्षण जीवन के तमाम क्षणो में सबसे महत्वपूर्ण और कीमती क्षण होता है क्योकि उस क्षण हम ज़रा रूमानी हो जाते है ,लचीले हो जाते है ,भावुक हो जाते है,उस समय हमारा दंभ मर चुका होता है हमारी लालच मिट चुकी होती है,आंखो से गुस्सा गुम हो चुका होता है और हाठो पर मुस्कान विराज चुकी होती है । यही तो वो भाव है जो हमारे इंसान होने को सार्थक करते है । बगीचे में टाईम पास करने के लिये आते है वे आदमी है लेकिन उन में से फूल से जुड़ जाते है वे इंसान है । हम पैदा भले आदमी के रूप में हो पर मरना इंसान बन कर चाहिये ।

उपर चांद और नीचे फूल । भगवान की ये दो अनुपम कृति आस्था के संेसेक्स में ज़बरदस्त उछाल दर्ज कराती है। अरबो खरबो की लागत से भी एैसा कारखाना स्थापित नही किया जा सकता जिसमें फूलो का उत्पादन हो सकता हो । फूल हमंे आस्तिक बनाते है उससे बड़ी बात ये है कि फूल हमें बेहतर इंसान बनाते है । फूल प्रेम को जगाते है ,प्रेम का अहसास कराते है ,दो हृदय को जोड़ते है ं। रिश्तो की नदी पर पुल बन जाते है फूल । फूल खिल खिल कर कह रहे है - कोमल बनिये , सुगंध बिखेरिये । फूलो की इस अपील पर गंभीरता पूर्वक विचार किया जाना चाहिये, उनके आव्हान पर चल पड़ना चाहिये । कोमलता फूल की वाणी है,सुगंध उसकी भाषा । फूलो की भाषा सीखना होगा क्योकि इसमें रस है । मंच पर किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का सम्मान उसे फूल देकर किया जाता है । गांव की लड़की सज संवर कर एक फूल अपने बालो मे लगा लेती है ये फूल का सम्मान है । फूल की व्याख्या उतनी आसान नही है जितनी उसकी उपलब्धता है ं। फूलो की अपनी दुनियाॅ है ,अपना इतिहास है,अपना अनुशासन है,अपना संविधान है । फूलो की संसद कभी प्रस्ताव पारित कर खुश्बू के संविधान में संशोधन नही करती । ये फूलो का चरित्र ही है जिसने गुलशन को शोहरत दिलाई है । नफ़रत के अनेको कारणो का जवाब है फूल। फूल लयात्मक गीत है, तुकान्त कविता है, मौसम के पन्ने पर लिखा नवगीत है । गुलशन के दफ्तर में फूल की नियुक्ति ने सुगंध को अंतराष्ट्र्ीय पहचान दिलाई है । अगर आपने कभी फूल को फूल के अंदाज़ में नही देखा होगा तो आज ही यह सौभाग्य प्राप्त करिये,समय का कोई भरोसा नही । इससे पहले की लोग आप पर फूल ड़ाले आप फूल पर न्योछावर हो जाईये । उठिये और बिना समय गंवाए नज़दीक के बाग में जाईये,और अनेको बार देखे हुए उन फूलो को मेरी नज़र से देखिये आपको फूल मंगल गीत गाते हुए दिखाई देगे । फूल बोलते हुए , झूमते हुए ,नाचते हुए दिखाई देगे । उस समय आपको सब बदला बदला दिखाई देगा । दरअसल यह परिवर्तन उस समय आपके अंदर हो रहा होगा । कुछ ही क्षण में आपको एैसा लगेगा कि आप स्वयं एक फूल हो गये है।

जिस समय आप फूल को देख रहे होते है उस समय आप वो नही रहते है जो आप है, बल्कि उस समय आप जो नही है वो हो जाते हो । नही होने का हो जाना ही क्रंाति है और ये क्रांति एक क्षण मंे हो जाती है । एकाएक आपको पूरी दुनियाॅ सुंदर महसूस होने लगती है ,सब से प्रेम करने का मन करने लगता है । लालच आस पास भी नही फटकती । भाषा एक दम शालीन हो जाती है । बच्चो और नौकरो पर चीखने वाला व्यक्ति गाने लगता है । जीवन के चित्र में फूल रंग भर देते है । फूलो में सिर्फ शिल्प ही नही है उनका कथ्य भी है । फूल जीवन की सार्थकता समझा जाते है । आप महसूस करिये ये समूचा विश्व एक बगीचा है इसमें रंग रंग के फूल खिले है और आप इसके माली है । आप उन पौधो को सीचो जिसमें फूल खिलते है,एक दिन आप महसूस करोगे कि आपके अंदर एक उपवन आकार ले रहा है । आपकी सोच बदल जायेगी ,आपके शब्द नये अर्थ देने लगेगे , आप जहां भी जाओगे वातावरण को सुगंधित कर दोगे । आप एैसे मुकाम पर पहुच जाओेगे जहा फूलो की भाषा समझ में आने लगेगी । तब आप आंख बंद किये बैठे रहोगे और फूल आपको संबोधित करेगे । फूलो का व्याख्यान आपको एैसा इंसान बना देगा जिसकी दुनियाॅ को बहुत जरूरत है । आप अपना सब कुछ औरो को दे दो और उसके बदले कोई कामना मत करो, आप देखोगे कि देने के बाद भी आपका खज़ाना भरा का भरा रहेगा , ये मानव के लिये फूलो का पैग़ाम है । ये मात्र उपदेश नही बल्कि फूलो का भोगा हुआ यथार्थ है । फूलो का तो बस यही काम है कि जहां रहो उस जगह को महका दो । फूलो की कोई पार्टी नही होती ,कोई घोषणा पत्र नही होता ,कोई प्रशिक्षण शिविर नही होता । इन्हे सिर्फ देना आता है,इनके पास जो भी होता है वह उसे औरो पर उंड़ेल देते है और खाली होते ही पुनः भर जाते है । वही भरायेगा जो खाली है । खाली होकर भर जाने का यह फार्मूला हर क्षेत्र मं लागू होता है ।

फूलो की सफलता उनके स्वभाव में छिपी है । फूलो के स्वभाव में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इनमंे नरमी बहुत सख्ती के साथ शामिल है । अपने इस स्वभाव को फूल कभी नही छोड़ते चाहे जो हो जाये और दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सिर्फ देना जानते है ,औरो के काम आना जानते है उसके बदले में ये कोई आशा नही करते । ड़ाल पर खिला फूल सिर्फ फूल नही है बल्कि वह मंच पर बैठा संत है जो प्रवचन दे रहा है । हमें उससे लौ लगानी होगी ,उसको आत्मसात करना होगा, उसकी खुश्बू में सराबोर हो जाना होगा,उसके रंग में रंग जाना होगा, खुद को उसके स्वभाव में ढ़ालना होगा, दूसरे के काम आने के लिये अपनी ड़ाल से बिछड़ जाना होगा । साथियो स्वयं कों फूलमय कर दो , ज़िन्दगी के बाग़ में अच्छाई के फूल बन कर खिल जाओ , दुनिया को प्रेम के रंग में रंग दो ,सहयोग और त्याग की सुगंध बनकर समूची पृथ्वी में फैल जाओ । तुम अपने को टटोलो तुम्हारे अंदर अनंत संभावनाये है । तुम क्या नही कर सकते ? तुम सब कुछ कर सकते हो क्योकि तुम भगवान की अनुपम कृति हो । चित्रकार ,कथाकार ,संगीतकार , फिल्मकार सबको अपनी कृति प्रिय होती है तो क्या भगवान को अपनी इस कृति से प्रेम नही होगा ? ज़रा सोचिये जिसे भगवान प्रेम करे उसकी जिम्मेदारी कितनी बढ़ जाती है ? दोस्तो बहुत देर हो चुकी है अब और बैठना ठीक नही, फूलो की दिखाई राह पर चल पड़ो । तुम दुनियाॅ में नही - तुम में दुनिया होनी चाहिये । तुम्हारे अंदर मानवीय स्वभाव है इस स्वभाव को छोड़ना नही । इसी के दम पर तुम्हे साबित करना होगा कि ज़िंदगी के बाग़ में तुम्ही गंेदा हो ,चमेली हो , गुलाब हो ।

अख्तर अली फ़ज़ली अपार्टमेन्ट, आमानाका कुकुरबेड़ा,रायपुर (छ॰ग॰)मो॰ 9826126781 / akhterspritwala@yahoo.co.in

रविवार, 10 मई 2009

माँ तुझे सलाम !!


माँ...कितना अद्भुत और सम्पूर्ण शब्द है ..जिसकी कोई तुलना ही नहीं है..!सभी भाषाओँ में ये शब्द सबसे लोकप्रिय है..!जब भी कोई व्यक्ति दुखी होता है तो उसके. मुंह से यही शब्द निकलता है..!माँ होती भी ऐसी है..तभी तो बच्चा माँ की उपस्थिति मात्र से चुप हो जाता है..!उसके आँचल और सानिध्य में ही वह सुरक्षित महसूस करता है..!कहा भी गया है पूत ,कपूत हो सकता. है पर माता कभी कुमाता नहीं हो सकती..!वह स्वंय.. भूखी रह कर भी बच्चे को खिलाती है,स्वंय. गीले में सोकर भी उसे सूखे में सुलाती है..ऐसी होती है..माँ!कहते है की एक अकेली माता अपने सभी बच्चों को प्यार से पाल लेती है,लेकिन वही बच्चे सारे मिल कर भी एक माँ को नहीं पाल सकते..!माँ सभी के लिए ममता लुटाती है...उसे अपने सभी बच्चे समान .रूप से..प्रिय होते है..! बच्चे कोई भूल कर दे तो भी वह बच्चों को भूलती नहीं है.!.....पन्ना धय जैसी माँ ने जहाँ अपनी ममता की नई मिसाल पेश की वहीँ हँसते हँसते अपने बेटों को .युद्घ..भूमि में भेजने वाली भी एक माँ ही होती है...."मदर्स डे" पर मैं माँ को बारम्बार नमन....करता हूँ..!

शनिवार, 9 मई 2009

‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ का पद्मश्री गिरिराज किशोर ने किया लोकार्पण


लेखन के क्षेत्र में दिनों-ब-दिन चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं और इन चुनौतियों के बीच ही लेखक का व्यक्तित्व उभर कर सामने आता है। प्रशासनिक पद पर रहकर साहित्य साधना निश्चित ही दुरूह कार्य है पर इस दुरूह कार्य को भी सफलता पूर्वक कर दिखाया है भारतीय डाक सेवा के युवा प्रशासनिक अधिकारी कृष्ण कुमार यादव ने। श्री यादव की इस बात के लिए विशेष सराहना की जानी चाहिए कि जहाँ पद्य की तुलना में गद्य लिखना कहीं अधिक मुश्किल कार्य है, वहीं अब तक एक काव्य, दो निबंध-संग्रह और क्रांतियज्ञ जैसी पुस्तकें लिखकर श्री यादव अपनी सशक्त रचनाधिर्मिता का परिचय दे चुके हैं। उनका लेखन पाठकों के मन को छू जाता है और यही एक लेखक की वास्तविक सफलता होती है।

उक्त उदगार सुविख्यात साहित्यकार पद्मश्री अलंकृत गिरिराज किशोर जी ने युवा प्रशासक एवं साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर उमेश प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित एवं पं0 दुर्गा चरण मिश्र द्वारा सम्पादित ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ नामक पुस्तक के 9 मई 2009 को ब्रह्मानन्द डिग्री कालेज, कानपुर के प्रेक्षागार में आयोजित लोकार्पण समारोह को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये। श्री किशोर ने कहा कि अल्पायु में ही श्री कुष्ण कुमार यादव ने उच्च प्रशासनिक पद की तमाम व्यस्तताओं के बीच जिस तरह साहित्य की ऊँचाइयों को भी स्पर्श किया है वह समाज और विशेषकर युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। ऐसे युवा व्यक्तित्व पर इतनी कम उम्र में पुस्तक का प्रकाशन स्वागत योग्य है।

समारोह की अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रभाषा प्रचार समिति उ0प्र0 के संयोजक एवं मानस संगम के प्रणेता डा0 बद्री नारायण तिवारी ने अपने सम्बोधन में कृष्ण कुमार यादव की रचनाधर्मिता को सराहा और कहा कि ‘क्लब कल्चर‘ एवं अपसंस्कृति के इस दौर में जब अधिसंख्य प्रशासनिक अधिकारी बिना प्रभावित हुए नहीं रह पाते तो ऐसे में हिन्दी-साहित्य के प्रति अटूट निष्ठा व समर्पण शुभ एवं स्वागत योग्य है। उन्होंने कहा कि यह साहित्य जगत का सौभाग्य है कि उसे श्री यादव के रूप में एक और हीरा मिल गया है। उसे सहेज कर रखना और आगे बढ़ाना हमारी सबकी जिम्मेदारी है। डा0 तिवारी ने कहा कि जो लोग अच्छा कार्य कर रहे हैं उन्हें आगे बढ़ाना ही होगा यह चापसूसी नहीं बल्कि हम सबका दायित्व है।

समारोह में उपस्थिति लब्धप्रतिष्ठित विद्धतजनों ने कृष्ण कुमार यादव के कृतित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। डा0 सूर्य प्रसाद शुक्ल ने कहा कि श्री यादव भाव, विचार और संवेदना के कवि हैं। उनके भाव बोध में विभिन्न तन्तु परस्पर इस प्रकार संगुम्फित हैं कि इन्सानी जज्बातों की, जिन्दगी के सत्यों की पहचान हर पंक्ति-पंक्ति और शब्द-शब्द में अर्थ से भरी हुई अनुभूति की अभिव्यक्ति से अनुप्राणित हो उठी है। वरिष्ठ साहित्यकार डा0 यतीन्द्र तिवारी ने कहा कि आज के संक्रमणशील समाज में जब बाजार हमें नियमित कर रहा हो और वैश्विक बाजार हावी हो रहा हो ऐसे में कृष्ण कुमार जी की कहानियाँ प्रेम, संवेदना, मर्यादा का अहसास करा कर अपनी सांस्कृतिक चेतना के निकट ला देती है। अपने सम्बोधन में डा0 राम कृष्ण शर्मा ने कहा कि श्री यादव की सेवा आत्मज्ञापन के लिए नहीं बल्कि जन-जन के आत्मस्वरूप के सत्यापन के लिए है। इसी क्रम में भारतीय बाल कल्याण संस्थान के अध्यक्ष श्री रामनाथ महेन्द्र ने श्री यादव को बाल साहित्य का चितेरा बताया। प्रसिद्व बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु ने इस बात पर प्रसन्नता जाहिर की कि श्री यादव ने साहित्य के आदिस्रोत और प्राथमिक महत्व के बाल साहित्य के प्रति लेखन निष्ठा दिखाई है। उन्होंने कहा कि अब से 20-25 साल पहले पुस्तक पूर्ण कर लेना ही बड़ी बात होती थी तब विमोचन या लोकार्पण जैसे समारोह यदा-कदा ही होते थे, आज श्री यादव की पुस्तक का लोकार्पण समारोह इस बात का प्रतीक है कि टीवी व इण्टरनेट के युग में भी हिन्दी साहित्य को एक बार फिर से सम्मान और समाज की स्वीकार्यता मिल रही है। गाजीपुर से पधारे समाजसेवी श्री राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि कृष्ण कुमार यादव में जो असीम उत्साह, ऊर्जा, सक्रियता और आकर्षक व्यक्तित्व का चुम्बकत्व गुण है उसे देखकर मन उल्लसित हो उठता है। इतनी कम उम्र में उन्होंने जितनी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की हैं वो माँ सरस्वती एवं माँ शारदा की कृपा का ही प्रतिफल हैं। बी0एन0डी0 कालेज के प्राचार्य डा0 विवेक द्विवेदी ने श्री यादव के कृतित्व को अनुकरणीय बताते हुए युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत माना। पूर्व उपसूचना निदेशक शम्भू नाथ टण्डन ने एक युवा प्रशासक और साहित्यकार पर जारी इस पुस्तक में व्यक्त विचारों के प्रसार की बात कही। इस अवसर पर संस्कृत के उद्भट विद्वान पं0 पीयूष ने श्री यादव को उनकी साहित्यिक सफलता पर बधाई व आर्शीवचन देते हुए कहा कि जब किसी कृतिकार की कृति को विद्वानों का आशीर्वाद मिल जाए स्वीकृत मिल जाए तो समझो वो निःसंदेह सफल कृतिकार है। आज श्री यादव उसी कोटि में आ खड़ हुये हैं।

समारोह के अन्त में अपने कृतित्व पर जारी पुस्तक व लब्ध प्रतिष्ठित महानुभावों के आशीर्वचनों से अभिभूत कृष्ण कुमार यादव ने आज के दिन को अपने जीवन का स्वर्णिम दिन बताया। उन्होंने कहा कि साहित्य साधक की भूमिका इसलिए भी बढ़ जाती है कि संगीत, नृत्य, शिल्प, चित्रकला, स्थापत्य इत्यादि रचनात्मक व्यापारों का संयोजन भी साहित्य में उसे करना होता है। उन्होने कहा कि पद तो जीवन में आते जाते हैं, मनुष्य का व्यक्तित्व ही उसकी विराटता का परिचायक है।

समारोह के दौरान कृष्ण कुमार यादव की साहित्यिक सेवाओं का सम्मान करते हुए विभिन्न संस्थाओं द्वारा उनका अभिनंदन एवं सम्मान किया गया। इन संस्थाओं में भारतीय बाल कल्याण संस्थान, मानस संगम, साहित्य संगम, उत्कर्ष अकादमी, मानस मण्डल, वीरांगना, मेधाश्रम, सेवा स्तम्भ, पं0 प्रताप नारायण मिश्र स्मारक समिति एवं एकेडमिक रिसर्च सोसाइटी प्रमुख हैं।

समारोह का शुभारम्भ मुख्य अतिथिगणों द्वारा माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन से हुआ। तत्पश्चात पुस्तक के सम्पादक श्री दुर्गा चरण मिश्र द्वारा सभी का स्वागत किया गया। इस अवसर पर कृष्ण कुमार यादव की कविता ‘‘माँ‘‘ को संगीत में ढालकर प्रवीण सिंह द्वारा अनुपम प्रस्तुति की गई तो 6 सगी अनवरी बहनों द्वारा प्रस्तुत ‘वन्दे मातरम्‘ ने सद्भाव की मिसाल पेश की। कार्यक्रम का संचालन उत्कर्ष अकादमी के निदेशक डा0 प्रदीप दीक्षित द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अन्त में दुर्गा चरण मिश्र द्वारा उमेश प्रकाशन, इलाहाबाद की ओर से सभी को स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। कार्यक्रम में श्रीमती आकांक्षा यादव, डा0 गीता चैहान, डा0 प्रेम कुमारी, डा0 हरीतिमा कुमार, सत्यकाम पहारिया, कमलेश द्विवेदी, आजाद कानपुरी, डा0 ओमेन्द्र कुमार, सुरेन्द्र प्रताप सिंह, अनिल खेतान, श्री एस0एस0 त्रिपाठी, सहित तमाम साहित्यकार, बुद्विजीवी, पत्रकारगण एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

आलोक चतुर्वेदी,
संपादक-साहित्य संगम
उमेश प्रकाशन, 100-लूकरगंज, इलाहाबाद

बुधवार, 6 मई 2009

‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ का लोकार्पण - आमंत्रण

सुविख्यात साहित्यकार पद्मश्री गिरिराज किशोर के मुख्य आतिथ्य, वरिष्ठ समालोचक आचार्य सेवक वात्स्यायन की अध्यक्षता एवं राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, उ0प्र0 के संयोजक डाoबद्री नारायण तिवारी व प्रसिद्व बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु के विशिष्ट आतिथ्य में कृष्ण कुमार यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व को सहेजती पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव‘‘ का लोकार्पण पे्रक्षागार, ब्रह्मानन्द डिग्री कालेज, दि माल, कानपुर में शनिवार, 9 मई 2009 पूर्वान्ह 11 बजे किया जायेगा। प्रमुख वक्तागणों में श्री रामनाथ महेन्द्र, अध्यक्ष-भारतीय बाल कल्याण संस्थान, सबसे कम उम्र में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त डा0 गीता मिश्रा, प्राचार्या-बी0एन0एस0डी0 बालिका शिक्षा निकेतन, डा0 विवेक द्विवेदी, प्राचार्य-बी0एन0डी० कालेज, कानपुर, डा0 गायत्री सिंह, हिन्दी विभागाध्यक्ष, अर्मापुर पी0जी0 कालेज, कानपुर, डा0 यतीन्द्र तिवारी, डा0 सूर्य प्रसाद शुक्ल, डा0 रामकृष्ण शर्मा, रो0 शम्भू नाथ टण्डन इत्यादि कृष्ण कुमार यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे। इस अवसर पर विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा कृष्ण कुमार यादव का सम्मान एवं अभिनन्दन भी किया जायेगा।

इस कार्यक्रम में आप सादर आमंत्रित हैं।

निवेदक-
आलोक चतुर्वेदी,
संयोजक- साहित्य संगम एवं उमेश प्रकाशन,
100, लूकरगंज, इलाहाबाद

मंगलवार, 5 मई 2009

आई0ए0एस0 टॉपर्स में लड़कियाँ काबिज

समाज बदल रहा है, सोच बदल रही है और इसी के साथ महिलाओं का दायरा बढ़ रहा है। अभी तक लोग कहते थे कि राजनीति, प्रशासन और बिजनेस में महिलायें शीर्ष स्थानों पर मुकाम बना रही हैं। पर इस बार के आई0ए0एस0 रिजल्ट ने साबित कर दिया है कि महिलायें वाकई अब शीर्ष पर हैं। अब तक के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि आई0ए0एस0 के रिजल्ट ने प्रथम तीन स्थान पर लड़कियाँ ही काबिज हैं। इनके नाम क्रमशः शुभ्रा सक्सेना, शरणदीप कौर एवं किरन कौशल हैं। शादी के 6 वर्ष बाद सफलता पाने वाली 30 वर्षीया टाॅपर शुभ्रा सक्सेना आई0आई0टी0 रूड़की से बीटेक हैं और यह उनका दूसरा प्रयास था। मूलताः बरेली की रहने वाली शुभ्रा फिलहाल गाजियाबाद में इंदिरापुरम् के विन्डसर पार्क सोसाइटी में रहती हैं। कभी बी0पी0ओ0 में नौकरी करने वाली शुभ्रा ने मनोविज्ञान विषय से यह सफलता प्राप्त की है। दूसरी टाॅपर शरणदीप कौर पंजाब विश्वविद्यालय से एम0ए0 हैं। गौरतलब है कि कुल घोषित 791 स्थान में टाॅप 25 में 10 लड़कियों ने स्थान बनाया है। शीर्ष 25 सफल उम्मीदवारों में से दो ने हिन्दी और एक ने पंजाबी माध्यम से परीक्षा देकर सफलता प्राप्त की। इनमें 12 उम्मीदवार सोशल साइंस, कामर्स एवं मैनेजमेण्ट से तो 9 इंजीनियर व 4 मेडिकल फील्ड से हैं। पुरूषों में प्रथम स्थान एवं मेरिट में चतुर्थ स्थान प्राप्त वीरेन्द्र कुमार शर्मा शारीरिक रूप से विकलांग हैं। निश्चिततः उनकी सफलता भी युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत का कार्य करेगी। हमारी तरफ से इस सभी होनहारों को ढेरों बधाई और यह विश्वास कि ये समाज को नई ऊचाइयों तक ले जायेंगे।
आकांक्षा

सोमवार, 4 मई 2009

युवा धडकनों के लिए अब ‘किस फोन‘

मोबाइल फोन ने लोगों के बीच संचार एवं संवाद आसान कर दिया है। पर मोबाइल तकनीक के ऊपर सदैव यह आरोप लगाया जाता रहा है कि इसने लोगों की संवेदनाओं को खत्म कर दिया है। ऐसे में लोग एक दूसरे से सिर्फ मोबाइल के जरिए ही काल, एस0एम0एस0 और कभी-कभी तो मिस्ड काल करके ही छुट्टी पा लेते हैं। टेक्नालोजी के रहनुमाओं को अब यह बात समझ में आने लगी है कि भावनाओं को भी तकनीक से जोड़ा जाना चाहिए। ऐसे में लोगों के लिए एक दिलचस्प आइडिया है-‘किस फोन‘। जल्द ही प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे को ‘किस फोन‘ के जरिए अपना प्यार या ‘लव बाइट‘ भेज सकेंगे। इस फोन का डिजाइन ‘फ्रीलांस निर्माता‘ जाॅर्ज कोसोरोस ने तैयार किया है। हाल ही में उन्होंने ‘किसफोन‘ का प्रोटोटाइप जारी किया। इस कलरफुल मोबाइल में बड़े आकार के होंठ बने हैं, जिन पर किस करने से लाइन के दूसरी तरफ बैठे व्यक्ति तक वही ‘लव बाइट‘ पहुंचेगी।

इस फोन में प्रेमी अपने मुँह के दबाव से ‘लव बाइट‘ देता है, तो वह दूसरी तरफ वाले व्यक्ति के पास ट्रांसमिट हो जाती है। हालांकि इसके लिए दोनों व्यक्तियों के पास यह ‘किस फोन‘ होना चाहिए। यह फोन ऐसे लोगों के लिए ‘लव गिट‘ से कम नहीं है, जो एक-दूसरे से दूर रहते हैं और जिन्हें अपने साथी को आलिंगन करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। ‘किस फोन‘ के फायदे तो हैं पर उस स्थिति की भी सोचिए जब यह रांग नंबर पर लग जाए। फिलहाल इंतजार कीजिए इस फोन के बाजार में उतरने का.........।

रविवार, 3 मई 2009

खुशबू बिखेरती बेटियाँ

घर भर को जन्नत बनाती है बेटियाँ
अपनी तब्बुसम से इसे सजाती है बेटियाँ
पिघलती है अश्क बनके,माँ के दर्द से
रोते हुए भी बाबुल को हंसाती है बेटियाँ
सुबह की अजान सी प्यारी लगे
मन्दिर के दिए की बाती है बेटियाँ
सहती है दुनिया के सारे ग़म
फ़िर भी सभी रिश्ते निभाती है बेटियाँ
बेटे देते है माँ बाप को आंसू
उन आंसुओं को सह्जेती है बेटियाँ
फूल सी बिखेरती है चारों और खुशबू
फ़िर भी न जाने क्यूँ जलाई जाती है बेटियाँ !!

शनिवार, 2 मई 2009

बेलगाम नेता जी...

सभी कहते है की ये चुनाव कुछ अलग है..!जी हाँ मैं भी कहता हूँ की ये अलग है,कई मायनो में अलग है..!एक दूसरे पर कीचड उछलने वाले नेता वही है..पर इस बार उनकी भाषा अलग है..!हो सकता है तेज़ गर्मी इसकी वजह हो पर बात कुछ अलग है..!इस तरह की बेकार भाष,शब्दावली मैंने पहले कभी नहीं सुनी,ये चीज़ अलग है..!सभी परशन के नेता जिस प्रकार की छिछोली भाषा पर उतर आए है वो हैरान करता है..!सुबह कुछ कह कर शाम को मुकर जन आम सी बात हो गई है..!लालू ,राबडी के बोलने पर इसे गाँव की भाषा कह कर नजरंदाज़ किया जाता था...पर अब अनुभवी और शिक्षित नेताओं के क्या हो गया?वे क्यों इस तरह से बोलने लगे..?और बोले तो भी जनता क्यूँ सुने ये ?आज भी हमारे देश में व्यक्ति पूजा हावी है..हम बहुत जल्दी ही किसी को अपना आदर्श मानने लग .जाते है..!जब ये आदर्श ही .असभ्यता पर...उतर आए तो फ़िर आम जनता क्या करे?.चाहे नेता हो या अभिनेता या खिलाड़ी हम उनका अनुशरन्न क्यूँ करें?हमारे बच्चे क्या सीखेंगे उनसे?यदि .हम उनकी बकवास नहीं सुनेंगे तो वो भी संभल कर बोलेंगे...इस तरह से वे अभद्रता नहीं कर पाएंगे...!अश्लील श्रेंणी की पिक्चर को "अ'सर्टिफिकेट दिया जाता है ताकि नाबालिग़ उसे ना देखे फ़िर इन नेताओं को क्यों सुने...!असभ्य भाषा बोलने वाले नेताओं को भी "अ" सर्टिफिकेट दिया जाना चाहिए..!पुन..गलती करने पर भाषण देने पर रोक भी लगाई जा सकती है....

शुक्रवार, 1 मई 2009

मताधिकार

लोकतंत्र की इस चकरघिन्नी में
पिसता जाता है आम आदमी
सुबह से शाम तक
भरी धूप में कतार लगाये
वह बाट जोहता है
अपने मताधिकार का
वह जानता भी नहीं
अपने इस अधिकार का मतलब
बस एक औपचारिकता है
जिसे वह पूरी कर आता है
और इस औपचारिकता के बदले
दे देता है अधिकार
चंद लोगों को
अपने ऊपर
राज करने का
जो अपने हिसाब से
इस मताधिकार का अर्थ निकालते हैं
और फिर छोड़ देते हैं
आम आदमी को
इंतजार करने के लिए
अगले मताधिकार का !!!

कृष्ण कुमार यादव
भारत सरकार की सिविल सेवा में अधिकारी होने के साथ-साथ हिंदी साहित्य में भी जबरदस्त दखलंदाजी रखने वाले बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी कृष्ण कुमार यादव का जन्म १० अगस्त १९७७ को तहबरपुर आज़मगढ़ (उ. प्र.) में हुआ. जवाहर नवोदय विद्यालय जीयनपुर-आज़मगढ़ एवं तत्पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय से १९९९ में आप राजनीति-शास्त्र में परास्नातक उपाधि प्राप्त हैं. समकालीन हिंदी साहित्य में नया ज्ञानोदय, कादम्बिनी, सरिता, नवनीत, आजकल, वर्तमान साहित्य, उत्तर प्रदेश, अकार, लोकायत, गोलकोण्डा दर्पण, उन्नयन, दैनिक जागरण, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, आज, द सण्डे इण्डियन, इण्डिया न्यूज, अक्षर पर्व, युग तेवर इत्यादि सहित 200 से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं व सृजनगाथा, अनुभूति, अभिव्यक्ति, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, रचनाकार, लिटरेचर इंडिया, हिंदीनेस्ट, कलायन इत्यादि वेब-पत्रिकाओं में विभिन्न विधाओं में रचनाओं का प्रकाशन. अब तक एक काव्य-संकलन "अभिलाषा" सहित दो निबंध-संकलन "अभिव्यक्तियों के बहाने" तथा "अनुभूतियाँ और विमर्श" एवं एक संपादित कृति "क्रांति-यज्ञ" का प्रकाशन. बाल कविताओं एवं कहानियों के संकलन प्रकाशन हेतु प्रेस में. व्यक्तित्व-कृतित्व पर "बाल साहित्य समीक्षा" व "गुफ्तगू" पत्रिकाओं द्वारा विशेषांक जारी. शोधार्थियों हेतु आपके व्यक्तित्व-कृतित्व पर एक पुस्तक "बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव" शीघ्र प्रकाश्य. आकाशवाणी पर कविताओं के प्रसारण के साथ दो दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित काव्य-संकलनों में कवितायेँ प्रकाशित. विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित. अभिरुचियों में रचनात्मक लेखन-अध्ययन-चिंतन के साथ-साथ फिलाटेली, पर्यटन व नेट-सर्फिंग भी शामिल. बकौल साहित्य मर्मज्ञ एवं पद्मभूषण गोपाल दास 'नीरज'- " कृष्ण कुमार यादव यद्यपि एक उच्चपदस्थ सरकारी अधिकारी हैं, किन्तु फिर भी उनके भीतर जो एक सहज कवि है वह उन्हें एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए निरंतर बेचैन रहता है. उनमें बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व संतुलन है. वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ साहित्यकार हैं जो वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों, षड्यंत्रों और पाखंडों का बड़ी मार्मिकता के साथ उदघाटन करते हैं."
सम्प्रति/सम्पर्क: कृष्ण कुमार यादव, भारतीय डाक सेवा, वरिष्ठ डाक अधीक्षक, कानपुर मण्डल, कानपुर
ई-मेल: kkyadav.y@rediffmail.com ब्लॉग: http://www.kkyadav.blogspot.com/