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बुधवार, 16 मई 2012

रिश्ते कि सच्चाई

निशंक के असमय देहावसान के उपरांत आज श्रद्धा पहली बार मायके जाने के लिए तैयार हो रही थी बच्चो को स्कूल भेज कर रह रह कर रो रही थी अभी कितने ही दिन हुए थे उसे इस घर में आये पराये हो गए थे अपने अपनों को हुए पराये निशंक के अथाह प्रेम के सागर में पाँच वर्ष तक वह डूबती उतराई रही दो दो प्यारे बच्चो क़ी माँ बन स्वाभिमान से इतराई रही काल ने कब दबे पाव पता ही नहीं चला घर में प्रवेश किया एक वर्ष के भीतर ही सास और ससुर का उठ गया था साया किसी तरह निशंक के साथ अपनी गृहस्थी को सभाले वह अहिस्ता आगे बढ़ती रही तभी एक सड़क हादसे में निशंक भी चल बसा पता नहीं किस मनहूस क़ी नजर उसके खेलते खाते बगिया में आग लगा गया किसी तरह बच्चो को देख वह जीने का एक और हौसला पालने लगी थी वरना वक़्त ने उसको तोड़ने में कोई कसर ही नहीं छोड़ी थी याद था किस तरह भैया ने उसे सीने से लगाते हुए विह्वल हो उसे शीघ्र घर आने के लिए बोला था दिलासा देते हुए भाभी ने भी उसे पैर फिराने के लिए कहा था उसी रस्म को पूरा करने हेतु वह किसी तरह जैसे ही मायके पहुंची काल बेल दबाने के लिए जैसे ही उद्यत हुई घर के अन्दर से भाभी कि आवाज आई आज ही मुझे भी अपनी मम्मी को देखने घर जाना था तो इसी दिन इन महारानी को भी मायके आना था अपना तो सब कुछ लुटवा ही चुकी है भैया ने भी आगे जोड़ा कि अब पता नहीं हमारा क्या करने पर तुली है कितने दिनों से अपनी कार बदलना चाह रहे है पर सफल नहीं हो पा रहे है हम तो वैसे ही इस कदर तंगहाली में चल रहे है पता नहीं कुछ मांग बैठी तो हम क्या कहेगे इसके बाद श्रद्धा कुछ और सुनने का सहस नहीं कर पाई भ्रम में ही सही टूटते रिश्ते को बचाने हेतु अपने घर वापस चली आयी भरभराते आंसुओं को पलकों में ही रोका भैया को फोन कर बोला आपने कितने प्रेम से बुलाया था पर क्या करे मेरी भी तबियत अभी ठीक नहीं है सोनू भी बीमार चल रहा उसको भी कल से आंव पड़ रही है वैसे आपको परेशान होने क़ी जरूरत नहीं देखती हू जैसे ही समय मिलेगा मै दो मिनट के लिए ही सही आप सबकी मर्यादा हेतु घर आ जाउंगी उस दिन भाभी भी काफी दुखी थी उनसे भी कहियेगा मेरे लिए कदापि परेशान न हो इन रिश्ते कि सच्चाई के बीच जो भी हो इस जहर को मै ही पीउंगी अपने बच्चो कि खातिर मै तो जीऊँगी ही जीऊँगी

शुक्रवार, 11 मई 2012

दसदस के नोट

बैंड क़ी धुन पर बरती जम कर नाच रहे थे शायद मदिरा में मस्त अपने यार क़ी शादी पर कस कर झूम रहे थे कुछ नव धनाड्य गड्डियों से दसदस के नोट खीच खीच कर हवा में उछाल रहे थे बेशक सात या आठ साल का दीपू अपने सर पर रोशनी का गमला लिए बारात के साथ चल रहा था उन उड़ते नोटों को बड़े ही हसरत से देख रहा था सर पर बोझ होने के कारण बेबस और लाचार मन मसोस कर रह जा रहा था अचानक एक दस का नोट उसके पाव तले आ गया उसने किसी तरह झुक कर उसे उठा लिया सोच रहा था उसका टूटा चप्पल जो काफी दिनों से उसे बेहद दर्द दे रहा था उसमे से गिट्टक फाड़कर पैर में रह रह कर चुभ जा रहा था किसी तरह काश एक और दस का नोट अगर लह जाता उसका यह चप्पल एक नए चप्पल से बदल जाता मजदूरी का पैसा तो सूदखोर की रोजही में ही चला जाता है फिर भी दो साल पहले बापू की बीमारी पर सूद पर लिया गया पैसा भरने का नाम ही नहीं लेता तभी अचानक एक दस का नोट उसके तरफ लहराता हुआ आने लगा वह उसे छोड़ने का लोभ सवरण नहीं कर पाया उसे पाने के प्रयास में दुर्भाग्य से फिसला और रोशनी का गमला लिए नीचे गिर पड़ा ठीकेदार दौड़ा चिल्लाते हुए गमले को उसने उठाया दीपू को खीचकर एक झन्नाटेदार थप्पड़ लगाते हुए ठीकेदार पुनः गरजा भाग साले इसका दाड तो तुम्हारे इस सीजन की मजदूरी से वसूल ही लूँगा तुम्हारे बाप ने अगर कुछ कहा तो उसे भी जम कर तोडूंगा गमला गिर कर चकना चूर हो चुका था बारातियों को किसकी फिकर बारात आगे बढ़ चुका था दीपू कभी उसे कभी अपने गाल को सहला रहा था दस के नोट को मुट्ठी में कस कर छिपाते हुए एक अज्ञात और आनेवाले भय और संकट के बारे में सोच रो रहा था

मंगलवार, 8 मई 2012

'जंगल में क्रिकेट' और 'चाँद पर पानी' : कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव के बाल-गीत संग्रह लोकार्पित



युगल दंपत्ति एवं चर्चित साहित्यकार व ब्लागर कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव के बाल-गीत संग्रह 'जंगल में क्रिकेट' एवं 'चाँद पर पानी' का विमोचन पूर्व राज्यपाल डा. भीष्म नारायण सिंह और डा. रत्नाकर पाण्डेय (पूर्व सांसद) ने राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास एवं भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद्, नई दिल्ली द्वारा गाँधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में 27 अप्रैल, 2012 को किया. उद्योग नगर प्रकाशन, गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित इन दोनों बाल-गीत संग्रहों में कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव के 30 -30 बाल-गीत संगृहीत हैं.


इस अवसर पर दोनों संग्रहों का विमोचन करते हुए अपने उद्बोधन में पूर्व राज्यपाल डा. भीष्म नारायण सिंह ने युगल दम्पति की हिंदी साहित्य के प्रति समर्पण की सराहना की. उन्होंने कहा कि बाल-साहित्य बच्चों में स्वस्थ संस्कार रोपता है, अत: इसे बढ़ावा दिए जाने क़ी जरुरत है. पूर्व सांसद डा. रत्नाकर पाण्डेय ने युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति बढती अरुचि पर चिंता जताते हुए कहा कि, यह प्रसन्नता का विषय है कि भारतीय डाक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी होते हुए भी श्री यादव अपनी जड़ों को नहीं भूले हैं और यह बात उनकी कविताओं में भी झलकती है. युगल दम्पति के बाल-गीत संग्रह क़ी प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें आज का बचपन है और बीते कल का भी और यही बात इन संग्रह को महत्वपूर्ण बनाती है.


कार्यक्रम में राष्ट्रभाषा स्वाभिमान न्यास के संयोजक डा. उमाशंकर मिश्र ने कहा कि यदि युगल दंपत्ति आज यहाँ उपस्थित रहते तो कार्यक्रम कि रौनक और भी बढ़ जाती. गौरतलब है कि अपनी पूर्व व्यस्तताओं के चलते यादव दंपत्ति इस कार्यक्रम में शरीक न हो सके. आभार ज्ञापन उद्योग नगर प्रकाशन के विकास मिश्र द्वारा किया गया. इस कार्यक्रम में तमाम साहित्यकार, बुद्धिजीवी, पत्रकार इत्यादि उपस्थित थे.

- रत्नेश कुमार मौर्या
संयोजक- 'शब्द-साहित्य'
म्योराबाद, इलाहाबाद.
mauryark@indiatimes.com
http://shabdasahitya.blogspot.in/