शनिवार, 19 दिसंबर 2009
मगर ये जनता चुप है
भ्रष्ट हो गयी दिल्ली की सरकार
मगर ये जनता चुप है।
मजदूरों पर मँहगाई की मार
मगर ये जनता चुप है।
फटी हुई आँखों में कैसे
आयेगें रोटी के सपने,
सत्ता की सीढ़ी पर चढ़कर
भूल गये जनप्रतिनिधि अपने,
राजनीति अब केवल कारोबार
मगर ये जनता चुप है।
भ्रष्टाचार, घोटाले, रिश्वतखोरी,
और वसूली है,
ए0सी0 घर मैं बैठी संसद
जनता का दुःख भूली है,
गँाधी जी के सपने सब बेकार
मगर ये जनता चुप है।
खाद-बीज, पानी की किल्लत
खेतों में पसरा अकाल है,
पंचायत सरपंचों की है।
बिना दवा के अस्पताल है,
नुक्कड़-नुक्कड़ खुलते बीयरबार
मगर ये जनता चुप है।
अंग्रेजों ने जैसे बाँटा
वैसे ही बँटवारा करते,
संविधान की कसमें खाकर
हमको तिल-तिल मारा करते,
बाँट रहे हैं ये मेले-त्योहार
मगर ये जनता चुप है।
सत्ता तो सत्ता, विपक्ष भी
अपनी आँखे खोल रहा क्या?
कलम चलाने वाला कवि भी
दिनकर जैसा बोल रहा क्या?
बता रहे हैं सब कुछ ये अखबार
मगर ये जनता चुप है।
गाँवों का यह देश
मगर गाँवों में निर्धन,
स्विस बैंकों में भरा
दलालों का काला धन
लूट रहे हैं हमको बिग बाजार
मगर ये जनता चुप है।
-जयकृष्ण राय तुषार,63 जी/7, बेली कालोनी,
स्टेनली रोड, इलाहाबाद, मो0- 9415898913
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9 टिप्पणियां:
आज के दौर को नंगा करती सच्ची कविता...बधाई.
आज के दौर को नंगा करती सच्ची कविता...बधाई.
फटी हुई आँखों में कैसे
आयेगें रोटी के सपने,
सत्ता की सीढ़ी पर चढ़कर
भूल गये जनप्रतिनिधि अपने,
राजनीति अब केवल कारोबार
मगर ये जनता चुप है।
....Behatrin Bhav.
लो भाई साहब, सरकार के साथ-साथ जनता की असलियत भी खोल दी कि वो सब जानकर भी चुप रहती है...सो मैं भी चुप हूँ.
तुषार जी की कवितायेँ पढना...वाह भाई वाह.
जनता इस लिए चुप है क्योंकि उसकी मौन अभिव्यक्ति को सामने लाने वाला कोई नहीं है. अर्थात जनता का कोई मार्गदर्शक नेता नहीं है. ऐसा नेतृत्व युवाओं में से ही उठना संभव है. लेकिन अफ़सोस यही है कि वर्त्तमान युवा में ऐसा रुझान नहीं दिख रहा है.
गाँवों का यह देश
मगर गाँवों में निर्धन,
स्विस बैंकों में भरा
दलालों का काला धन
लूट रहे हैं हमको बिग बाजार
मगर ये जनता चुप है।
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तुषार जी की कलम में धार है...शुभकामनायें !!
बहुत अच्छा लिखा है आपने..मेरी शुभकामनायें
वाह कवि वाह! खोल के रख दिया। आपकी कविता को पढने से लगता है दिनकर पुनर्जीवित हो गये हैं।
धनंजय राय
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