फ़ॉलोअर

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

तेरहवी का भोज

एक एक कौर के साथ
मृदुभाषी मितलू भैया का चेहरा
सामने नजर आ रहा था
मैं उनकी तेरहवी के भोज में
मुखियाजी के साथ शामिल था
क्रूर कैंसर ने एक बार पुनः
निगल लिया असमय ही एक जिंदगी
कितने अरमानो से रख रहे थे
एक एक ईट अपने भविष्य की
बड़े मनोयोग से घर बनवा रहे थे
शीघ्र ही बहू को लाने के ख्वाब संजो रहे थे
पर नियति को कुछ और ही मंजूर था
वर्ना उनकी उम्र ही क्या थी
गृहस्थी भी अभी एकदम कच्ची थी
इस कठिन परिस्थिति में
डाक्टर के लाख रुपये के निवेश कि बात
तिस पर भी उनके जीवन की
तनिक भी नहीं आस
हालिया जवान हुए मगर बेबस
अबोध बच्चे कोई निर्णय नहीं ले पा रहे थे
अपने आप को अत्यंत ही बेबस
और भयभीत पा रहे थे
अंत में किंकर्तव्य विमूढ़ हो
पापा को पल पल मौत के करीब जाते हुए
देखने का अनचाहा असीमित
दुःख पा रहे थे
असमय ही अपने सर पर एक
मजबूत साये का अभाव पा रहे थे
चाह कर भी कुछ सकारात्मक
न कर पाने का दंश झेलते हुए
मजबूर हो भाग्य के हाथों की
कठपुतली बने नियति के अधीन
जीवन और मृत्यु का
जीवंत दृश्य झेल रहे थे
साथ ही एक अंतहीन त्रासदी हेतु
अपने आप को मानसिक रूप से
तैयार भी कर रहे थे
जिसकी न चाहते हुए भी हम
प्रतीक्षा कर रहे थे
अंत में वही हुआ और दुर्भाग्य से
आज उनके निमित्त आयोजित
तेरहवी कि भोज में सिरकत करना पड़ा
साहब ऐसे भोज का क्या औचित्य है
क्या इसका नैमित्य
चिंतनशील मुखियाजी के इस
एकाएक बौद्धिकता युक्त आक्रमण से
मैं अचकचा गया
शुन्य में मित्लू भैया को निहारते हुए
धरातल पर आ गया
उन्हें हमेशा से लगता था कि
मेरे पास उनके हर अनसुलझे
प्रश्नों का जवाब होता है
पर मेरे लिए उनके प्रश्नों का उत्तर देना
बस एक प्रयास ही होता है
मैंने कहा मुखियाजी बेशक हम
भाग्य के होठों मजबूर
पर करना पड़ता है हमें यहाँ
सामाजिक मर्यादाओं के तहत
कर्मयोग भी भरपूर
अब तो बस यही मानिये कि
कम से कम इस भोज से तृप्त अत्मानों की
दुआओं से मित्लू भैया को मिलेगी
अगले जनम के लिए शुभ कामनाएं
हा शायद इन्ही सब कर्म कंडों में फसकर
व्यक्ति को अपने प्रिय जनों कि यादों से
दूर करने की भी हमारे पूर्वजों की
रही हो कामनाएं
मैंने उनकी संतुष्टि हेतु बेशक
एक जवाब दे डाला
पर अपने ही तर्कों कि कसौटी पर
स्वयं को असंतुष्ट पाया
मौत को करीब देख मित्लू भैया की
निरीह आँखों में ललक
रह रह कर जीने की
पोते को गोद में लेकर
आगन में टहलने की
उनकी अदम्य इक्षा ने
हमें पुनः व्यथित कर डाला

2 टिप्‍पणियां:

Dr.Dayaram Aalok ने कहा…

मृत्युभोज पर सटीक रचना। आभार!

Dr.Dayaram Aalok ने कहा…

मृत्युभोज पर सटीक रचना। आभार!