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शुक्रवार, 11 मई 2012

दसदस के नोट

बैंड क़ी धुन पर बरती जम कर नाच रहे थे शायद मदिरा में मस्त अपने यार क़ी शादी पर कस कर झूम रहे थे कुछ नव धनाड्य गड्डियों से दसदस के नोट खीच खीच कर हवा में उछाल रहे थे बेशक सात या आठ साल का दीपू अपने सर पर रोशनी का गमला लिए बारात के साथ चल रहा था उन उड़ते नोटों को बड़े ही हसरत से देख रहा था सर पर बोझ होने के कारण बेबस और लाचार मन मसोस कर रह जा रहा था अचानक एक दस का नोट उसके पाव तले आ गया उसने किसी तरह झुक कर उसे उठा लिया सोच रहा था उसका टूटा चप्पल जो काफी दिनों से उसे बेहद दर्द दे रहा था उसमे से गिट्टक फाड़कर पैर में रह रह कर चुभ जा रहा था किसी तरह काश एक और दस का नोट अगर लह जाता उसका यह चप्पल एक नए चप्पल से बदल जाता मजदूरी का पैसा तो सूदखोर की रोजही में ही चला जाता है फिर भी दो साल पहले बापू की बीमारी पर सूद पर लिया गया पैसा भरने का नाम ही नहीं लेता तभी अचानक एक दस का नोट उसके तरफ लहराता हुआ आने लगा वह उसे छोड़ने का लोभ सवरण नहीं कर पाया उसे पाने के प्रयास में दुर्भाग्य से फिसला और रोशनी का गमला लिए नीचे गिर पड़ा ठीकेदार दौड़ा चिल्लाते हुए गमले को उसने उठाया दीपू को खीचकर एक झन्नाटेदार थप्पड़ लगाते हुए ठीकेदार पुनः गरजा भाग साले इसका दाड तो तुम्हारे इस सीजन की मजदूरी से वसूल ही लूँगा तुम्हारे बाप ने अगर कुछ कहा तो उसे भी जम कर तोडूंगा गमला गिर कर चकना चूर हो चुका था बारातियों को किसकी फिकर बारात आगे बढ़ चुका था दीपू कभी उसे कभी अपने गाल को सहला रहा था दस के नोट को मुट्ठी में कस कर छिपाते हुए एक अज्ञात और आनेवाले भय और संकट के बारे में सोच रो रहा था

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Garebi bahut buri chhej hai
http://blondmedia.blogspot.in/