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गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

राजा बेटा



पापा आज शाम तक मुझे

मेरा विडिओ गेम मिलेगा

बन्दा तभी कल स्कूल के लिए हिलेगा

बिंदास कहते मै

बैग लेकर

स्कूल के लिए चला गया

पापा के लिए एक नई चिंता छोड़ गया



एकलौता होने से

जिद मेरे नाक पर रहती थी

प्राइवेट फर्म में कार्यरत

पापा के कम आय की

मुझे कोई फिकर नहीं थी



हर मांग पूरी होने से

एक नई मांग

पुनः पैदा हो जाती

पापा कैसे

पूरे परिवार के खर्च के साथ

उसे पूरा करते थे

इसकी मुझे उस समय तक

तनिक भी खबर नहीं होती



शाम को पापा के हाथ में

एक पाया

ख़ुशी से छीन कर उसे

मै चिल्लाया

लेकर बाहर दोस्तों को

दिखाने भगा

दोस्तों को न पाकर

मायूस मै घर लौट आया



बैठक में मम्मी को

पापा से कहते सुना

आप दिन रात इतना मेहनत करते है

जान देकर ओवरटाइम करते है

तब जाकर किसी तरह

सबके पेट भरते है

आपके पास बस

दो शर्ट और दो जोड़ी जुराबे धरी है

ऊपर से सब फटे पड़ी है

व्यर्थ ही पप्पू की जिद

पूरा करने में परेशान रहते है

जो की समाप्त होने की जगह

नित नए बढ़ते है



पापा चेहरे पर एक मायूस फीकी

हंसी लाते हुए बोले

भाग्यवान बच्चा है

चलो कभी तो समझेगा

बचपन उसके जीवन में

दुबारा क्या पनपेगा

मेरा क्या सर्दी का सफ़र है

जुराबे जूते के और

शर्ट स्वेटर के अन्दर है

फिर कभी बन जायेगा

पर पप्पू का बचपन

दोबारा कहाँ से आयेगा



मम्मी पापा की इस

मर्मश्पर्शी वार्ता ने

मुझे हिला कर रख दिया

एकाएक मेरे ज्ञानेन्द्रियों को

जगा कर रख दिया

मै दौड़ कर पापा के

सीने से लग गया

सुबकते हुए कहा

पापा इसे अभी जाकर

वापस कर आओ

अपने लिए पहले एक जोड़ी

जुराबे और एक शर्ट लाओ

कहते कहते मै

फूट फूट कर रो पड़ा

तभी पापा का स्नेह्सिंचित हाथ

मेरे सर पर पड़ा



बोले नहीं बेटा

दोषी तो मै हूँ

जो कि अपने बेटे की

एक छोटी सी मांग भी

पूरी करने में अक्षम हूँ

तुम्हारे प्रतिरूप में मैंने

अपने बचपन को देखा है

कोई कुछ भी कहे पर

तू तो मेरा

राजा बेटा है



निर्मेश



2 टिप्‍पणियां:

amrendra "amar" ने कहा…

Behad khubsurat abhivyakti. Aise hi likhte rahiye . Badhai .....

Arvind Mishra ने कहा…

भाव विह्वल करती रचना