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शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

कफ़न

रीतेश  
अपनी  फ्लाइट 
आज कैंसिल करा दो 
मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही 
हो सके तो कुछ और दिन 
साथ रह लो 
कहते खासते  खासते 
मिश्राजी की पसली चल रही थी 
बिजली नहीं होने से 
मिश्रीईन पास बैठी 
पंखा  हिला रही थी 

शुन्य   में काफी 
देर तक देखते 
अनायास कुछ सोचते 
हिम्मत जुटा कर रीतेश बोल 
पापा कैसे बताये 
कि  किस तरह हमने 
पत्नी और बच्चे के साथ 
पंद्रह दिन यहाँ बिताया 
पूरे इस प्रवास ने हमें 
कितना सताया 
कहा एक  ओर अमेरका का 
विलासित  जीवन 
कहाँ यह गाँव का 
वीरान मधुबन 
फिर भी किसी तरह मै 
यहाँ एडजस्ट कर रहा था 
आपकी सेवा कर अपना फर्ज 
पूरा कर रहा था 
मगर मेरे बॉस ने मेरी छुट्टी 
आगे मंजूर नहीं की है 
हमें तुरंत वापस आने की 
वार्निग दी है 
अतः मुझे आज ही 
जाना पड़ेगा 
अपने  भविष्य  हेतु 
यह कदम उठाना ही प होगा 

बाहर पूरा परिवार 
ऑटो में बैठ चूका था 
वह भी चलने को लगभग तैयार था 
माँ यह लो कुछ  रुपये रख लेना 
पापा यदि नहि  रहे तो 
तिख्ती और कफ़न का 
इंतजाम कर लेना 
कहते चौकी पर जैसे पैसा रखा 
उसे रोकते हुए मिश्राजी ने कहा 
बचवा ई बनारस है 
यहाँ लावारिसो को भी 
कफ़न मिल जाता है
दिन हिनो का भी लाश 
शान से 
जल जाता है 
अमेरका नहीं कि  जहाँ 
व्यक्ति तुम्हारी तरह इतना 
प्रोफेशनल हो जाता है 
कि अपने बाप की चिता को 
आग नहीं दे पाता है 
नजदीकी रिश्ते को भी 
पैसे से तौलता है 
मानवीय रिश्ते भी जहाँ 
इस कदर बिकते है 
कि रक्त पानी से सस्ते 
लगते है 

लो इस पैसे को 
अपने पास रख लेना 
मेरी चिंता छोड़  बेटा 
अपने लिए एडवांस में 
एक कफ़न खरीद लेना 
तुमने तो कम से कम इतना 
मेरे बारे में सोचा 
तुम्हारे  बेटे बेशक 
इसे खरीदने में करेंगे लोचा 
तुन्हारे लिए उन्हें कफ़न 
खरीदने की भी फुरसत 
नहीं होगी 
आखिर तो तुम्हारा बाप हू 
हमसे ज्यादा  बेटा 
तुम्हारी चिंता 
किसे होगी 

निर्मेश 

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