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गुरुवार, 14 अगस्त 2014

निरा स्वप्न आजादी थी

निरा स्वप्न आजादी थी

निरा स्वप्न आजादी थी 
    साकार किया उसको जिसने 
उत्सर्ग प्राण को किया सहर्ष 
         आओ याद करे उनको 

कुछ तो ज्ञात शहीद हुए  है 
      अज्ञातों की फ़ौज विशाल 
नमन सभी को शत शत मेरा 
       काम कर गए वो कमाल 

सार्थक तब बलिदान है उनका 
  औचित्य त्याग का  सिद्ध करे जब 
हो शीर्ष विराजित आर्यावर्त 
        उनकी सोच के ऊपर जब  

आसान नामवर रिपु से लड़ना 
         बेनाम शत्रु सबसे भारी है 
पहचान एक का बहुत सरल है 
     भरी बेनामो से दुनिया सारी  है 

नमन आज उन माताओं को 
           हुई गोद है जिनकी सूनी 
रिपु से लड़ते जो हुए शहीद 
     कर गए जनको की साख वो दूनी 

अविरल चिंतन की अविरल धार 
        अविरल अतीत मेरा आधार 
परोपकार पनपे हिय अविरल 
      हो अविरलता जन जन साकार 

नमन नमन हे आर्यभूमि 
        नमन राष्ट्रध्वज को पावन 
नमन महापुरषों को मेरा 
          बरसे आशीष बने सावन 

      
         निर्मेष 


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