जियावन की तेज आवाज से
सहसा निद्रा भंग हुई
सामने खिड़की से उदीयमान सूरज से
ऑंखें चार चौबंद हुई
बाहर वह धरमू पर
जोर जोर से चिल्ला रहा था
पानी पी पी कर गालियों की
बौछार किये जा रहा था
ऑंखें मलते हुए मैं बाहर आया
देख नजारा वहां का मैं घबराया
धरमू का जेनेरटर जियावन के
दरवाजे पर धंस गया था
बेटी का विवाह नजदीक था
दुआर ख़राब होने की जियावन
दुहाई दिए जा रहा था
किसी तरह मैंने बीच बचाव कर
घटना को दुर्घटना होने से बचाया
समझा बुझा कर
मामले को शांत कराया
आज जियावन की बेटी
उर्मिला का विवाह है
सहेलियों ने जीभर कर
उसका श्रृंगार किया है
सभी व्यस्त है
बारात की अगवानी में
जियावन का भरपूर प्रयास की
रहे न कोई कोर कसर
बारातियों की अगवानी में
रात्रि का दूसरा पहर
नाचते गाते बारात पहुच ही
रही थी दरवाजे पर
तभी एकाएक आंधी के साथ
पानी का भी हो गया प्रकोप
बिजली भी हो गयी
तबियत से गोल
किसी ने कहा अरे
पास ही में तो धरमू है
उससे कहो लगा दे जेनेरटर
किसी ने कहा कहाँ से लायेगा
वो इतनी रत में ओपेरटर
जियावन मुहँ लटकाए
हो गया था निराश
उसकी तो टूट चुकी थी पूरी आस
हताश वह सोचता हो बेचैन
अब कैसे वह
धरमू से मिलाये नैन
अभी दो दिन पहले ही तो
उसका जीना हराम कर दिया था
बिना बात का ही
तिल का ताड़ बना दिया था
उन गालियों से आहत
धरमू अपनी बखरी में लेटा था
उसे उस विवाह का
निमंत्रण नहीं था
दूर से धरमू ने
सुनी जब जिक्जिक
सोचने लगा वो
कैसी है ये किचकिच
निरापद वो जियावन के
दुआर पर तेज कदमो से गया
देख मामला तुरंत
ले दो लोगो को जेनरेटर ले आया
स्वयं ही बन ओपेरटर
पूरी रात उसने जेनेरटर चलाया
सुबह होने पर
बारात बिदा होने पर
जियावन और धरमू
एक दुसरे को देख अनदेखा करते रहे
अचानक दौड़ एक दुसरे की ओर
लग एक दुसरे के गले
अपनी सारी व्यथा
आँखों ही आँखों में कहते रहे
घंटो रोते रहे
उनके चहरे बिना कुछ कहे
बहुत कुछ कहते रहे
गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011
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2 टिप्पणियां:
वाह, सुन्दर कविता।
बहुत सुन्दर भाव...बधाई !!
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