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मंगलवार, 22 मार्च 2011

दिवास्वप्न

आज धरमू
घर से सुबह सात बजे सुबह ही
काम के लिए निकल गया
तबियत थोड़ी नासाज थी
फिर भी मण्डी पहुच गया
कई दिनों की बीमारी ने उसे
कमजोर इस कदर कर दी थी
बची खुची जमा पूजी भी
दवा के नाम पर होम हो गयी थी

आज सुबह मुनिया के अनुनय ने
उसे व्यथित कर दिया था
न चाहते हुए भी काम पर जाने को
मजबूर कर दिया था
बापू हमके उ बंदूकवाला पिचकारी चाहिए
मोनू के पापा ओका कल्हे लइके दीन है
अउर अबकी हमके औ गुडिया वदे
फ़िराक वाला सुइट लई के दियो
ओमे हम बहुतै अच्छा लागब
उहे पहीन के तोहे अउर
माई के टीका कारब

सोचते सोचते पता ही नहीं चला की
वह मण्डी कब पहुच गया
जाकर मजदूरों की लाइन में
खड़ा हो गया
आज त्यौहार के कारण
वैसे भी मजदूरो की भीड़ बड़ी थी
पर मालिको की कमी भी
साफ दीख रही थी
कुछ आये भी तो उसे कमजोर देख
उसकी तरफ ताके तक नहीं
कुछ ने बातें तो की पर
वाजिब मजदूरी देने को तैयार नहीं
सोचते अउर बातें करते करते
दोपहर होने को आयी
बात कही बन नहीं पाई
अंत में एक ठीकेदार ने
उस पर तरस खाया
आधी मजदूरी पर तय कर
उसे अपनी साईट पर लाया
धरमू लग गया काम पर जी जान से
शाम की मजदूरी के प्लान में
सोच रहा था की आज की मजदूरी से
कुछ खाने के सामान के साथ
मुनिया की पिचकारी जरुर लायेंगे
उसेक चहरे की ख़ुशी को
तबियत से देखेंगे
अगर कल परसों भी काम लग गया
तब उसके अउर गुडिया के
फ्राक के लिए भी सोचेंगे

आगे भी काम पाने की लालसा में
बीमारी से उठे बदन से उसने
भरपूर मेहनत किया
ठीकेदार को खुश करने का
हरसंभव प्रयास किया
साथ में लाये रोटी और अचार को भी
बिसराय कर किनारे कर दिया
कमजोर बदन आखिर
ये कब तक सहता
धरमू साईट पर ही अचानक
बुखार की चपेट में पुनः आ गया
कापते पैरो ने उसका और चलना
मुश्किल कर दिया
एकाएक वह बांस से गिर गया
एक पटरे में फस उसका
पैर भी टूट गया

ठीकेदार चिल्लाया अरे साले
ये तुम्हे क्या हो गया
साले ने एक अटिया सेमेंट
ख़राब कर दिया
चल भाग साले यहाँ से
तुम लोगो पर दया करना बेकार है
थाम ये बीस रुपये
यही तुम्हारी अब तक की पगार है
धरमू बीस का नोट थामे
वही बैठ गया
कभी अपने टूटे पैर को
कभी उस नोट को देखता रहा
सोचता रहा की अब क्या होगा
इससे अब कौन सा
पूरा अरमान होगा
मुनिया और गुडिया के
सपनों का क्या होगा
उनके भाग्य में क्या दिवास्वप्न ही होगा
ईश्वर ने मुझे बचा ही क्यों लिया
मै मर क्यों नहीं गया
कम से कम इस संताप से
तो दूर रहता
परिवार के आंसूं देखने से
बच गया होता

पर वह शायद कैसे मरता
यदि मर जाता
तो दुःख पीड़ा और अवसाद के
नए प्रतिमान फिर
कौन बनता

3 टिप्‍पणियां:

Shyama ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

अच्छी कलम चला रहे हैं कविताओं पर आप...शुभकामनायें.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पीड़ा और अवसाद के प्रतिमान बनाने के लिये हम लोगों को भी भेजा है ईश्वर ने। प्रतियोगिता हो रही है।