सभी हजरात को एम अफसर खान सागर का आदाब और सलाम,
बड़े भाई और हमारे अग्रज कृष्ण कुमार यादव जी की जानिब से युवा मन ब्लॉग से जुड़ कर अपनी भावना और विचार रखने का एक सशक्त जगह मिला, इसके लिए हम शुक्रगुजार हैं। आज मौका बेहतर है इसलिए मैं युवा मन में शुरुवात कवि और साहित्यकार जनाब विजय कुमार मिश्र बुद्धिहीन जी की दो रचना से कर रहा हूँ।
आप सभी के दुआओं का हमेशा तलबगार....
एम अफसर खान सागर
http://afsarpathan.blogspot.com
बड़े भाई और हमारे अग्रज कृष्ण कुमार यादव जी की जानिब से युवा मन ब्लॉग से जुड़ कर अपनी भावना और विचार रखने का एक सशक्त जगह मिला, इसके लिए हम शुक्रगुजार हैं। आज मौका बेहतर है इसलिए मैं युवा मन में शुरुवात कवि और साहित्यकार जनाब विजय कुमार मिश्र बुद्धिहीन जी की दो रचना से कर रहा हूँ।
आप सभी के दुआओं का हमेशा तलबगार....
एम अफसर खान सागर
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मन की बातें
चलो प्रिये करें मन की बातें
कटते दिन नहीं कटती रातें
द्वार खड़े उसपार नदी के
खड़े-ख्रड़े क्यों हमें बंलाते।
चलो प्रिये...
बरसों पहले जहां मिले हम
सपने ढ़ेर सजाए
सपनों में खोए अब हमतुम
करें वहीं फिर से मुलाकातें।
चलो प्रिये...
हवा में झोंकों से बल खाते
नदी के लहरों पर लहराते
नाव सरीखे क्यों बहती हो
पल्लू को अपने पाल बनाके
आओ प्रिये तुम मेरे तट पर
जहां चांद हंसे तारे मुस्काते।
चलो प्रिये....
नदी की बहती कल-कल धारा
आंखों से कर रही इशारे।
चुप बैठो ऐ, पवन निगोड़े
प्रियतम हमको पास बुलाते
आओ प्रिये करें मन की बातें।।
इबादत
मंदिरों की घंटियां या
मस्जिदे सुबहो अजान
है इबादत एक ही
हिन्दू करें या मुसलमान।
फर्क क्या पड़ता है ऐ, रब
मैं करूं या वो करें
मैं पूजूं पूनम का चंदा
वो निहारे दूज के चांद।
है कहां मतभेद जब
सूरज और चंदा एक है
है कहां तकरार जब
आबो हवा सब एक है।
क्यों घिरे खौफ ये बादल
जब इरादा नेक है
आब गंगा से जुड़ा है
और जुड़ा काबे से पानी।
है नहीं खैरात की यह जिन्दगानी
सांस चलती है खुदा की मेहरबानी।
सिंध हो या हिन्द हो या पाके सरजमीं
सब खुदा के एक बन्दे हिन्दुस्तान-पाकिस्तानी
राम और रहमान में ना फर्क है
धर्म और ईमान में क्या तर्क है।।
विजय बुद्धिहीन
पेशे से अधिशासी इंजीनियर, रेलवे मुगलसराय, दिल से उच्चकोटि के मंचीय कवि। दो काव्य संग्रह ‘दर्द की है गीत सीता’ और ‘भावांजलि’ शीघ्र ही आने वाली है ।
9 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर कविता।
नदी की बहती कल-कल धारा
आंखों से कल रही इशारे।
बुधिहीन साहेब को पहली बात पढ़ा है यह मेरी गलती है कृपया कल को कर लीजिये | सुन्दर रचना , बधाई
नदी की बहती कल-कल धारा
आंखों से कर रही इशारे।
चुप बैठो ऐ, पवन निगोड़े
प्रियतम हमको पास बुलाते
आओ प्रिये करें मन की बातें।।
....खूबसूरत अहसास...हृदयस्पर्शी कविता..बधाई !!
विजय अंकल ने तो प्यारी सी कविता लिखी है...बधाई.
सिंध हो या हिन्द हो या पाके सरजमीं
सब खुदा के एक बन्दे हिन्दुस्तान-पाकिस्तानी
राम और रहमान में ना फर्क है
धर्म और ईमान में क्या तर्क है।।..Well said.
सिंध हो या हिन्द हो या पाके सरजमीं
सब खुदा के एक बन्दे हिन्दुस्तान-पाकिस्तानी
राम और रहमान में ना फर्क है
धर्म और ईमान में क्या तर्क है।।..Well said.
सागर जी, आपने इस ब्लॉग पर सुन्दर आगाज़ किया..बधाई.
विजय जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ, पर बेहतरीन.
Rachanayen bahut achchhi lagi sachchi bhi . prem aur ibadat isse behtar nahi ho sakta..behad khubsurat...aabhar
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