अअरे रामकुमर
देख ऊ आवत आ
जवन कलिहा तोहे अस तोरान तोड़े रहा
तबियत से तोहे पीटे रहा
चल ओके बतावा जाये
तब न ओके समझ में आइये
कि तोडाय पर कैसा दर्द होइए
नाही त ऊ हम गाँव वालन के
बौचट समझिये
सुन ठिठक गए मेरे कदम
टूटने वाला ही था मेरा भरम
देखा तो बगल कि गली में
कुछ बच्चे कंचे खेलने में मस्त थे
तन्मयता से अपने खेल में
तबियत से व्यस्त थे
उसी में वह लड़का भी था
जिसे कल मैंने मुखियाजी के
बारात में पीटा था
वस्तुतः वह थोडा ज्यादा ही चंचल था
बालसुलभ चंचलता में मस्त था
अपनी ही धुन में पस्त
वह तेजी से मुखियाजी के दरवाजे पर
पहुँच चुकी बारात के मध्य
हमें चीरते हुए भागा
उसी चक्कर में पूरा दही
मेरे ऊपर गिर गया अभागा
क्रोध से लाल मैं कभी अपने
नए सूट को कभी उस लडके को देखता
क्रोध को शांत करने के एवज में
पकड़ उस लडके को रहा पीटता
कुछ लोगो ने उसे हमसे छुड़ाया
डांट कर उसे भगाया
खैर बात आयी गयी
सुबह जब हो रही थी
बारात कि विदाई
समय से ऑफिस पहुचने के लिए
मैं और मेरे एक साथी
गाँव से धीरे से निकले
तभी उक्त आवाज सुन कर सिहरे
मुझे देख रामकुमार मेरे करीब आया
बोला बाबू आप जिन घबराया
आप आराम से जाही
आप जो काल किये रहा
ऊ कौनों गलत नाही रहा
गलती त हमरे रहा
तोहरे जगह अगर हमऊ रहित
त ऊहे करित जौन तू किये रहा
अरे समुआ पिअरवा और धनुआ रुके रहा
केहू जिन आगे बढ़ा
तू सबै के मालूम होए के चाही
कि इ मुखियाजी क मेहमान हउवन
यानि सारे गाँव क मेहमान भइलन
दद्दा हमरे कहत रहिन कि
मेहमान त भगवान सामान होलें
इनके नाराज भइलें पर राम नाराज होलें
इनका हमें सम्मान करे का चाही
आयी चली बाबू हम तोहका
छोड़ देई पाही
मौन
मुझे तो मानो काठ मर गया
शिक्षित होने का गरूर झुझला कर
हमें शर्मशार कर गया
उस गवई बालक को जहाँ अभी तक मैं
अनाड़ी संस्कारहीन और
दुष्ट समझ रहा था
वह मुझे अच्छी तरह नैतिकता
और अपनी संस्कृति का पाठ
सरोतर पढ़ा गया था
गुरुवार, 12 मई 2011
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3 टिप्पणियां:
JO HOTA NAI WO DIKHTA HAI, JO DIKHTA NAHI WO HOTA HAI. . . . . . . JAI HIND JAI BHARAT
दिल में सीधे उतर जाने वाली रचना की प्रस्तुति...सादुवाद!
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व्यंग्य उस पर्दे को हटाता है जिसके पीछे भ्रष्टाचार आराम फरमा रहा होता है।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
सटीक भावों को समेटे सुन्दर कविता..निर्मेश को बधाई.
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