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मंगलवार, 31 मई 2011

तीसरा पुरस्कार

पा पा पापा
कहते राधिका ने
धीरे से ऑंखें खोला
रामसिंह ने उसका हाथ
अपने सीने से लगाते हुए
डॉक्टर से बोला
डॉक्टर बाबु बिटिया अब
हमारी होश में आ गयी
रेस में तो वह फर्स्ट
पहले ही आ गयी थी

पूरा स्कूल प्रिंसिपल के साथ
बाहरकर रहे है इसकी प्रतीक्षा
पूरी करने को इसकी इक्षा
बिटिया उठौ चलो
अपना प्रथम पुरस्कार
साइकिल लई लो
सबके संग फूटू खिचवा लेयो
यह सुन राधिका हो गयी उदास
बाहर प्रेसवाले भी
कर रहे थे उसका इन्तजार

मै भी बगल के बेड पर
अपने बीमार बच्चे के साथ था
जिसके स्वास्थ्य में क्रमशः
सुधार हो रहा था

मैंने पूछा बिटिया
तुम क्यों हो गयी हो उदास
बोली अंकल आओ हमरे पास
मै न तीसरे स्थान पर
आना चाहती थी
तीसरे स्थान के पुरस्कार
मिक्सी को मम्मी के लिए
पाना चाहती थी
इसीलिए बुखार होने के बाद भी
पूरे लगन से
इस रेस में दौड़ी थी
काफी दिनों से मम्मी
हाथ के दर्द से कराहती है
पापा कि आय देख कर
मजबूरी में उनसे
कुछ नहीं कहती है

हमारे द्वारा बड़ी पापड़ और अचार
बनाकर बाज़ार में बेचा जाता है
तब किसी तरह घर का खर्च
मेरी पढाई के साथ चल पाता है
सिल बट्टे पर अब
मम्मी के हाथ नहीं चलते है
ज्यादा मेहनत करने से
हाथो में छाले पड़ जाते है

पहली बार प्रथम आने पर
मैंने किसी को उदास पाया
प्रेमचंद के इदगाह का हामिद
बरबस याद आया
मन ही मन मैंने
यह सोच लिया था
अस्पताल से फुर्सत पाने के बाद
प्रथम के साथ तीसरे स्थान का
पुरस्कार भी राधिका को
देने को ठान लिया था

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

माँ का दुख बच्चों को कुछ कर गुजरने की ऊर्जा दे जाता है।

मनोज कुमार ने कहा…

भावुक कर देने वाली पोस्ट।