नन्हे नन्हे हाथो से
अपनी ही धुन में मगन
कालोनी क़ी सख्त सड़को पर
झाड़ू लगाये जा रहा था
मुन्नी बदनाम हुई के गाने को
रेंग रेंग कर
गाये जा रहा था
उसके कदम भी आज
पता नहीं क्यों थके थके से
प्रतीत हो रहे थे
मुझे ऐसा लग रहा था कि
उस गाने क़ी एनेर्जी से ही
शायद उसके पाव
चल रहे थे.
पर आज उसके गाने में
पहले जैसी बात नहीं थी
वरना और दिनों में तो
जितना झूम कर
उसके हाथ चलते थे
उससे कही ज्यादा उसके
सुर और ताल चला करते थे
शायद उसी से वह स्वयं
के लिए उत्साह पाता था
तभी तो कालोनी के एक सड़क को
साफ करने के उपरांत
वह दूसरी सड़क पर
एक नयी उर्जा से तुरंत
लग जाता था
पिछले काफी दिनों से
जहरीले शराब कांड में उसके पापा क़ी
मृत्यु के बाद उसकी माँ
अपने साथ उसे काम पर ले आती
मैंने कई बार उससे
इस बात क़ी शिकायत भी क़ी
पढाई के बात पर
गरीबी का देकर हवाला
उसने मेरी बात को
हर बार ही टाला
कई बार मैंने पैसा देकर
टुनटुन को पढ़ाने के लिए
उससे कहता रहा
पर हर बार उसका एक नया
बहाना सहता रहा
इसी क्रम में टुनटुन
मेरे करीब होता गया
मै उस बच्चे कि तक़दीर पर
अफ़सोस जाहिर करते हुए
उसे अपनी बात समझाने के लिए
क्रमशः उसके और बड़े होने क़ी
प्रतीक्षा करता रहा
मैंने मंदिर से लौटते हुए पूछा
क्या बात है टुनटुन
पिछले तीन चार दिनों से
तुम्ही अकेले ही आ रहे हो
कैसे तुम पूरा काम कर पा रहे हो
टुनटुन ने झाड़ू किनारे रख
अपने मैले पैंट से हाथ साफ कर
मेरी और हमेशा क़ी तरह
हाथ बढ़ा दिया
मैंने भी प्रसाद के पड़े को
उसके हाथ में रख दिया
प्रसाद खाकर
करीब के सरकारी नाले में
पानी पीकर
टुनटुन बोला
माई के कई दिना से
बुखार आवत आ
मौलवी साहेब से झरवा के
पानी पिलवा रहा पर
बुखार उतरते नाही बा
माई कहीं कि
टुनटुन तुही चला जा
अकेल झाड़ू मार आ
नाही ता ठिकेदरवा नागा लगा देही
हमनी के जौन थोड़ बहुत
ओकरा कमीशन कटला के
बाद मिलत आ
उहौ जाना डूब जाई
यही वादे हम अकेल आवत आई
पर साहेब माई बिना
मन लागत नाही
ठीक से खानवो मिलत नाही
कहते कहते टुनटुन की
आंखे भर आई
मैंने काम के बाद उसे
अपने घर आने का इशारा किया
स्वयं की बेबसी पर
खीजते हुए
यह सोचते हुए
घर की और रूख किया
कि हम बनाकर हवाई किले
सतरंगी सपनो क़ी देते रहेंगे नजीर
राजनीति की बिसात पर
बिछा ले हमारे ये रहनुमा
चाहे कितने भी वजीर
आँखों में रंग रंग के सपने लिए
बूढ़े हो जायेंगे
खाक जी पाएंगे.
डा. रमेश कुमार निर्मेश
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें