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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

अस्थिकलश

देखा बिना
यहाँ क चढ़ावा दिये
कुछौ ना करे देब
जेकर ई अस्थिकलश हौ
ओके तरे न देब
कहते दो बनारसी पण्डो ने
मणिकर्णिका घाट की सीढ़ियों पर
उस किशोर का रास्ता रोक लिया
विसर्जन से पहले लगभग
उसे छीन लिया था

मै यह सब देख
सकते में आ गया
एक करीबी की अंतिम यात्रा में
मै भी वहाँ गया था
चिता में आग लगने के उपरांत
बगल की सिंधिया घाट की
सीढ़ियों पर विश्रामित था

मैने  उत्सुकतावश
अपना कदम उसी दिशा में
बढ़ा दिया
उस किशोर ने असहाय नजरों से
मेरी ओर देखा
कृश काय थकी देह और
निस्तेज चेहरा
पैर में एक स्लीपर और
गले में गमछा लपेटा
किनारे लाकर
मैंने उससे पूछा
क्या हुआ

साहब सदर से आयल हई
बाबू त हमार जन्मते चला गइंन
माई हमका पाल पोस के
बड़ा कईंन
हमार  वियाह वदे
सोचत सोचत अइसन
बीमार  पड़ींन
अउर असमय ही चला गईंन
पर माई क बड़ी
इक्षा रही
कि ओनकर राख
कशी में गंगा के मणिकर्णिका घाट
पर देई
यही पाछे हियन हम घर से
दो सौ रुपया लेके आवा रहा
पर हियन त अकेलेवे ई
बेमतलब क हमका घेर के
पाँच सौ माँगत आ
गंगा त सबही क हई
ऐमे कोई कुछौ बहावे
इनकर का जात भई

वस्तुस्थिति से अवगत हो
मैंने मध्यस्थता का प्रयास किया
उस अवांछित जबरदस्ती ऒरोपित
रस्म के कारण
उन पंडो ने उसे
इस कदर परेशान किया
किसी तरह इक्यावन रुपये
पर बात बनी
दो मिनट में सब
कर्मकांड सामाप्त हुई

पर उस त्रस्त
अबोध किशोर के
तात्कालिक अनुभव ने
हमें निरुत्तर कर दिया
का हौ हियन पर
जौन माई यहाँ आपन
राख बहावे वदे परेशान रहल
ऎसे त अच्छा अपने गॉव क
पोखर अवर पनघटे रहल

निर्मेष

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