आप कालू को जानते हैं। ...अब आप कहेंगे कि वही कालू (कलुआ) जो ढाबे पर या अन्य किसी जगह बालश्रम की चक्की में पिस रहा है। आपका उत्तर गलत नहीं है, हम आज ऐसे ही एक कालू की बात करेंगे। कहते हैं प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती। कमल कीचड़ में ही खिलता है। बिहार में मधेपुरा के मूढ़ो गाँव का कालू इसी तर्ज पर अब समाजसेवियों का अगुवा बन गया है। जर्मनी की संख्या ‘ब्रेड फार द वर्ल्ड‘ ने अपने 50वें स्थापना दिवस समारोह में कालू को न्यौता देकर बुलाया है। वहां मौजूद रहने वाले 50 देशों के समाजसेवियों से वह बालश्रम उन्मूलन के लिए सहयोग मांगेगा। कालू 4 जुलाई 2009 की रात नई दिल्ली से जर्मनी के लिए रवाना हो गया। ग्यारह साल पहले बचपन बचाओ आन्दोलन के अध्यक्ष कैलाश सत्यार्थी ने उसे वाराणसी के कालीन उद्योग से मुक्त कराया था। तभी से वह एक एक्टिविस्ट के रूप में बच्चों के लिए काम कर रहा है। अपनी दूसरी विदेश यात्रा पर जर्मनी गया कालू वहाँ भारत में बाल श्रम मिटाने के लिए सहयोग मागेगा। फिलहाल इस कार्यक्रम में भाग लेने वाला कालू भारत का इकलौता एक्टिविस्ट है। गौरतलब है कि कालू पांच साल पहले अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से भी मिल चुका है !!
शुक्रवार, 10 जुलाई 2009
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5 टिप्पणियां:
Pahle to maine ise majak samjha..par kalu ke bahane apne samaj ka achha chehara rakha.
bahut badhiya abhivyaktipoorn alekh .badhai.
ग्यारह साल पहले बचपन बचाओ आन्दोलन के अध्यक्ष कैलाश सत्यार्थी ने उसे वाराणसी के कालीन उद्योग से मुक्त कराया था। तभी से वह एक एक्टिविस्ट के रूप में बच्चों के लिए काम कर रहा है।.....nek kadam.
...yahan kalu ko pratik rup men apne achha prayog kiya hai.
Kalu the Great.
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