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शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

लजीज व्यंजन के साथ पर्यावरण ज्ञान परोसता रेस्टोरेंट

क्या आपने कभी किसी ऐसे रेस्टोरेंट के बारे में सुना या पढ़ा है, जहां खाना तो लजीज मिलता ही है लेकिन इसके बाद एक अनूठी स्वीट डिश भी फ्री आफ कास्ट स्वयं होटल मालिक द्वारा परोसी जाती है। स्वीट डिश भी ऐसी कि इससे पेट नहीं ज्ञान की भूख शांत होती है। यह अनूठी स्वीट डिश है पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां, जिन्हें ग्रहण करना प्रत्येक कस्टमर के लिए आवश्यक है। उत्तराखंड केगोपेश्वर, चमोली में स्थित इस अनूठे रेस्टोरेंट का नाम है 4875-दि कैफे, जिसे खोलने का मकसद व्यवसाय नहीं, बल्कि लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना है।

मुंबई निवासी एक सेवानिवृत्त आर्मी अफसर ब्रिगेडियर एसके त्रिखा की 22 वर्षीया इकलौती बेटी निखिला त्रिखा इस अनूठे रेस्टोरेंट की मालिक भी है और वेटर भी। यहां आने वाले हर ग्राहक को लजीज व्यंजनों का लुत्फ उठाने के साथ-साथ अनिवार्य रूप से उसका लेक्चर भी सुनना पड़ता है। रेस्टोरेंट से हो रही कमाई को वह अपनी जरूरतों पर नहीं, बल्कि पर्यावरण को बचाने में खर्च कर रही है। आपदा प्रबंधन और पहाड़ों से युवाओं का पलायन रोकना भी उसके लेक्चर का हिस्सा रहते हैं।

दरअसल, कुछ वर्ष पूर्व निखिला उत्तराखंड भ्रमण पर आई थी, तो यहां पर्यावरण की बदहाल स्थित देख द्रवित हो उठीं। पहाड़ों से बड़े पैमाने पर हो रहे युवाओं के पलायन ने भी उसे झकझोर कर रख दिया। इसी बीच वह अपने एक स्कूलमेट पुष्पेंद्र सिंह रावत के संपर्क में आई और दोनों ने उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठाने का निर्णय लिया। उन्होंने वर्ष 2007 में 'पीस ट्रस्ट' नामक संस्था का गठन किया, जिसके तहत पुष्पेंद्र विभिन्न स्कूलों में कार्यक्रम प्रस्तुत कर छात्रों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक कर रहे हैं, जबकि घर-परिवार से दूर आकर निखिला ने जिला मुख्यालय गोपेश्वर से सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित घिंघराण गांव में '4875-दि कैफै' नाम का एक रेस्टोरेंट खोला। घिंघराण गांव में एक छोटे से माल्टा के बगीचे में उसने मात्र 16 हजार की लागत से यह रेस्टोरेंट खोला है, जिसमें सूखे पेड़ों की डाटें फर्नीचर के रूप व्यवस्थित हैं। यहां आने वाले ग्राहकों को निखिला आन डिमांड अपने हाथ से बनाए लजीज व्यंजन परोसती हैं, लेकिन बातों-बातों में वो उन्हें पर्यावरण संरक्षण का पाठ पढ़ाना नहीं भूलती। स्टाइल उनका ऐसा कि ग्राहकों की क्लास भी लग जाती है और उन्हें खलती भी नहीं। निखिला कहती हैं कि यदि हम हिमालय को सुरक्षित रखेंगे, तो ही हिमालय भी हमारी सुरक्षा करेगा।

इतना ही नहीं, उनका यह रेस्टोरेंट रोजगार के नाम पर पहाड़ों से पलायन कर रहे युवाओं के लिए भी नजीर है। दो वर्ष के दौरान निखिला और पुष्पेंद्र सारे गांव के आस-पास पांच हजार फूल और फल के पेड़ लगा चुके हैं। इसके अलावा, सिद्घपीठ तुंगनाथ के मार्ग पर भी वे दर्जनों डस्टबिन भी स्थापित कर चुके हैं।

6 टिप्‍पणियां:

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

बहुत खूब....सुन्दर प्रयास...साधुवाद.

S R Bharti ने कहा…

Adbhut !!

Amit Kumar Yadav ने कहा…

लाजवाब....सराहना योग्य प्रयास.

Akanksha Yadav ने कहा…

Wah-wah. Wonderful job.

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

बहुत खूब....सराहना योग्य प्रयास...

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

सराहनीय कार्य...बधाई.