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शनिवार, 4 दिसंबर 2010

पापा का प्यार

अपनी छोटी सी दुनिया में
खो गए थे हम
मन में लिए उच्च शिछा के सपने
दो बहन और एक भाई के साथ
बड़े हो रहे थे हम
पापा के सिमित आय में ही
मजे से चल रहा था गुजरा
एक दुसरे की तकलीफे
थी नहीं हमें गवारा
बड़ी होने के कारण मैं
माँ बापू की थी दुलारी
हर छोटे बड़े घरेलु निर्णयों में
मेरा होता था पलड़ा भारी
पापा चाहते थे
मुझे जान से भी ज्यादा
कितनी बार कहा था
तुमसे दूर होना हमें
तनिक भी नहीं भाता
अचानक पापा के हृदयाघात ने
हमें झकझोर दिया
मेरे सारे सपने को
तक़रीबन ही तोड़ दिया
हृदयाघात के उपरांत
स्वास्थ्यलाभ कर रहे पापा को
मम्मी समझा रही थी
मेरे विवाह की चिंता ही
उन्हें खा रही थी
मैंने अपने सारे सपने को
पापा की खातिर दे दी तिलांजलि
विवाह के लिए भर हामी
शायद भर दी थी उनकी अंजलि
विवाह के उपरांत भरे मन से
दे दी गयी मुझे विदाई
पापा मम्मी के साथ
भाई बहनों की आंखे भी
रो रो कर सूज आयी
देख सबका प्रेम इतना सारा
मेरा भी कलेजा मुह को आया
बरबस आसुओं के सैलाब के साथ
अपने को अनजान लोगो के बीच
ससुराल में पाया
रास्ते भर सोचती रही की
अब पापा का क्या होगा
सोच कर मन काप गया
की मेरे बिना उनका जीवन
कितना सूना होगा
समयचक्र के खेल ने मुझे
ससुराल में व्यस्त कर दिया था
बेशक मोबाइल ने दूरियों को
कम कर दिया था
फिर भी रह रह कर कलेजे में
हूक उठती रही
पापा से मिलने की इक्छा
बलवती होती रही
सोचती पता नहीं पापा कैसे होगे
कैसे उनके दिन और रात कटते होगे
चाय और डिनर पर पापा अब
किसका इंतजार करते होगे
पारवारिक फैसले पर अब
किसकी मुहर लगती होगी
और किससे अपने दिल की बात
शेयर करते होगे
सोचते सोचते मैं अतीत में
इतना खो जाती
तभी अतीत और वर्तमान के बीच
सेतु के रूप में सुमित को
अपने करीब पाती
एक सहचर के रूप में सुमित को पाकर
निश्चिन्त और निशब्द हो जाती
उसकी बाँहों में झूलकर
उनके सानिध्य में कमी कम
खलती थी अपनों की
अफसोस नहीं होता
अपने अपूर्ण सपनों की
संयोग
दीपावली पर भाई के टीका हेतु
सुमित के साथ पीहर पहुची
देख अपनों का व्यवहार
पैरो की जमीं खिसकी
किसी को मेरी परवाह नहीं
मेरे लिए सबके पास वो गर्मजोशी दिखी नहीं
लगा सबके लिए मैं एक अनचाही
वस्तु बन गयी
जब भी मैंने अपने पूर्वाधिकार के साथ
कोई बात कहनी चाही
अपने को उन लोगो से उपेक्षा और
अवहेलना का शिकार ही पाई
पापा ने भी हाल चाल और
बातचीत की खानापूरी ही की
कही भी वो गर्मजोशी नहीं दिखी
हमें तो लगा था की सब
हमें देखते ही हाथो हाथ उठा लेगे
मेरे तो पाव ही जमीं पर नहीं पड़ेगे
लगा लोगो को हो क्या गया
की सब हमसे कन्नी काट रहे
मेरी हर बात जान बूझ कर टाल रहे
मैं हूँ एक अवांछित वस्तु
इसका अहसास करा रहे
मन मेरा जार जार रोना चाहा
तभी बैठक में पापा को
मम्मी से बाते करते पाया
जल्दी से कुमकुम के बाद
गुडिया का कर विवाह
जल्दी से गंगा नहाने की
थी उन्हें चाह
बाद में बबलू की करेंगे
धूम धाम से शादी
करेंगे पूरे अरमान अपने बाकी
बहू को घर में लाने की बेताबी
उनकी बातो में प़ा रही थी
उनके शब्दों में एक
नई खनक प़ा रही थी
जहाँ अपने बिना पापा के निराधार
व शुन्य की थी कल्पना
अफसोस मेरे विछुडाना उनके लिए
बस हो गया था एक सपना
सत्य ही लगा
कर ले बेटी आज भी
त्याग चाहे जितना
बेटे का स्थान उसके लिए
है एक सपना
और आज भी है वो
एक पराये वस्तु जितना
मै जडवत सुनती रही
बातें उनकी सारी
लगा कहाँ गया पापा का
प्यार वो भारी
जिस घर के संस्कार पर था
हमें स्वाभिमान इतना
अपने जिस परिवार पर गुमान था इतना
तरस आयी देख उनकी सोच अदना
हृदय की उग्र पीड़ा ले आंसुओं का समुन्दर
पी लेना चाहा सारे दर्द को अन्दर ही अन्दर
मेरी सिसकियों ने छोड़ दिया
मेरी हिचकियो का साथ
तभी महसूस हुआ कंधे पर
कोई भारी हाथ
पलट कर देखा सुमित मुझे
पीछे से सहला रहे थे
भर बाँहों में मुझे जी भर समझा रहे थे
चलो जल्दी से टीका कर
आओ चले अपने घर
उनके समझाने के साथ ही साथ
मेरी सिसकियाँ बदती जा रही थी
अपने घर की परिभाषा
अब समझ में आ रही थी
जो बातें कभी माँ बापू के बाँहों में
हुआ करती थी
वो आज पती के बाँहों में प़ा रही थी
एक बार पुनः आंचल में दूध
और आखों में है पानी को
चरितार्थ होते देख प़ा रही थी
एक लड़की की व्यथा को
पुनः अपारभाषित प़ा रही थी
भर ले समाज चाहे
कितना भी दम
एक नए सूर्योदय की और
बढेगा बस बातो के सहारे ही
हमारा कदम

7 टिप्‍पणियां:

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

भर ले समाज चाहे
कितना भी दम
एक नए सूर्योदय की और
बढेगा बस बातो के सहारे ही
हमारा कदम ....Bahut khub likhte hain ap..badhai.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

पापा का प्यार...भावमयी कविता..बधाई.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

परिवार की समस्याओं का पूरा एक दृश्य उपस्थित कर दिया ..भावपूर्ण अभिव्यक्ति

Patali-The-Village ने कहा…

एक भाव पूर्ण कविता| धन्यवाद|

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भावात्मक अभिव्यक्ति।

S.M.Masoom ने कहा…

प्यार सराहनीय है लेकिन बहुत बड़ा प्यार हो गया है ...

प्रेम सरोवर ने कहा…

papa ka pyar sab ko hi nasib hota hai lekin kabh-kabhi hum is rishte ko ek alag nam se samvodhi karane lagate hain- yahi hum pitri prsadutta pyar ke liye taras jate hain.Nice post.Plz. visit my post.