ख़ुदकुशी की असफल
कोशिश के बाद अस्पताल के
विस्तर पर मै पड़ा था
बगल में ही एक और मरीज
गंभीर रोग से पीड़ित था
असाध्य रोग से ग्रस्त
पर देखा उसके अन्दर
जीने की प्रबल लालसा
एक मै था की स्वस्थ होकर भी
स्वयं को काल के गाल में
भेजने को उद्यत था
एक खिडकी थी
ठीक उसके पीछे
रोज उसके पास बैठता था
वो आंखे मीचे
मै अक्सर कई बार उससे
बिस्तर बदलने को कहता
करके नए बहाने
वो हर बार टाल जाता
मै उदास उससे ही
बाहर के हाल चाल पूछता
वो हर बार मुझे
कुछ सुन्दर बताता
मेरे अन्दर जीने की
एक नई इच्छा भरता
प्रकृति के तमाम
सौंदर्य का दे हवाला
मेरी इक्षाशक्ति बढाकर उसने
मेरी मृत्यु को लगभग टाला
मुझे ठीक होते देख उसकी
खुशियों का नहीं था पारावार
जबकि उसकी तबियत
बिगड़ रही थी लगातार
एक दिन सुबह उठकर मैंने
आवाज सुनी नहीं उसकी
मेरे नीचे से जमीन सरकी
जिग्यासवास धीरे से उठकर
गया जब उसके बिस्तर
पर उसे मौन पाया
उसके खिड़की के पीछे
बस एक सख्त दीवाल पाया
हतप्रभ मैं कभी उसे
कभी उस दीवाल को देखता
सोचता
बेशक वो जीवन की जंग
भले ही हार गया
पर जाते जाते
अनजाने में ही सही
मुझे नया जीवन
वो दे गया
शनिवार, 11 दिसंबर 2010
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8 टिप्पणियां:
जीवन जीने का नाम,
जीते रहो सुबह शाम।
हतप्रभ मैं कभी उसे
कभी उस दीवाल को देखता
सोचता
बेशक वो जीवन की जंग
भले ही हार गया
पर जाते जाते
अनजाने में ही सही
मुझे नया जीवन
वो दे गया
ऐसी सकारात्मक सोच ही हर दिन जीने का नया उत्साह जगाती है.....
एक कहानी पर बुनी अच्छी कविता ...
भाई अमित कुमार जी एक बार फिर से आप को पढ़ने का अवसर मिला है| 'प्राण त्याग' को ले कर सिक्के के दोनो पहलुओं को अच्छी तरह विवेचित किया है आपने| बधाई|
बेशक वो जीवन की जंग
भले ही हार गया
पर जाते जाते
अनजाने में ही सही
मुझे नया जीवन
वो दे गया ...बहुत खूबसूरती से लिखा बधाई .
जिजीविषा रहे... जीवन चलता रहेगा!
सुन्दर रचना!
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति। फिर आऊंगा। मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है।
bhavuk karti rachna,is or bhi aakarshit karti ki jindi bahut amuly hai .iski kadr karna seekhna chahiye .mere blog ''shikhakaushik666.blogspot.com ''par bhi aaye .
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