अलसाई सुबह
चिड़ियों की चहचाहट से निद्रा हुई भंग
बीती रात के बुखार से
अभी भी टूट रहा था अंग
टोय्फोइड के कारण
माँ पिछले तिन दिनों से
अस्पताल की छटी मंजिल पर भर्ती थी
माँ की देखभाल हेतु
मैंने भी छुट्टी ले रखी थी
माँ के निकट भूमि पर
मैं था शयनित
बगल के बिस्तर पर
एक वृद्धा दंपत्ति था शराणित
वृद्ध का कल ही हुआ था ऑपरेशन
उसके लिए उसका पति ही
था संकटमोचन
कृशकाय और लिए झुकी कमर
अपनी पत्नी की सेवा को सदा तत्पर
दिनभर में न जाने कितनी बार
छ्मंजिली इमारत से
निचे ऊपर करता था
फिर भी कर्कश पत्नी के डांट
और ताने दिनभर सुनता था
फिर भी नहीं थकता था
सदा उसका ख्याल रखने में
रत रहता था
हर रात जब सभी सो जाते
पूरे वार्ड की अनावश्यक बत्तियों
और पंखों को बुझाता
दर्द और थकन से सो चुके लोगों पर
उनके चादर और कम्बल डालता
अंत में आकार पत्नी के पास
उसके सर पर तेल रख थपथपाता
बड़े प्रेम से उसका सर दबाता
लोरियों की तरह कुछ गुनगुनाता
अन्दर तक हिला गया वो
हमारे सुनहरे अतीत की
तस्वीर दिखा गया वो
संस्कार केवल शिक्षा से आती है
इसे झुटालाता दिखा वो
हर सुबह अपनी
भार्या के सिरहाने वो चैती
भजनों की धुन छेड़ता
नीद से उसे उठाता
उसे नित्य कर्म से निवृत कराकर
नाश्ता व दवा खिलाता
मेरी आँखों को भा गया वो
तक़रीबन नित्य ही मेरी निद्रा
उसकी भक्तिरस से सराबोर
चैती से खुलती
मेरी ऑंखें नहीं थकती
उस वृद्ध की तन्मयता को निहारती
उनके हर क्रिया कलाप को
करीब से महसूस और देखने का
लोभ संवरण मैं कर नहीं पाता
उसे निरे ग्रामीण में मैं लुप्त हो रहे
अपने आदर्श और संस्कारों के बीज तलाशता
बहुत कुछ खोजता
पर अंत में अपने को अनुततरित पाकर
पूछ बैठा एक दिन
दादा आखिर इतना दर्द क्यों लेते है आप
इस अस्पताल को भी घर समझते है आप
दादा घर मे और कोई नहीं है क्या
जो इतना परेशान होते है आप
वह मेरी आँखों में आंख
डाल कर बोला
जेब में तम्बाकू की डिबिया टटोला
बेटा पहले तो ये जानो की अगर
मुफ्त में मिला खाने को तो
खाकर नहीं मर जाने को
आज सब दुसरे को सुधारने में लगे रहते है
हम अपने को सुधारने की बात
क्यों पहले नहीं करते है
जो भी सुविधाएँ हमें मिलती हैं
कितनी आत्माएं उसके लिए तरसती हैं
तो क्यों न उसमे से कुछ बचा लिया जाये
क्या पाता उससे किसी का
जीवन बच जाये
बेशक तुम चिंतन भी करते होगे
मेरे और मेरी लुगाई के रिश्ते को लेकर
तुम भी तो कई दिनों से
अपनी माँ को लेकर
परेशान हो अकेले
ये सब केवल दुनिया के नहीं है
केवल झमेले
यह मानवीय रिश्तों और
सत्य संवेदनाओं की ताकत है
अतीत के तारों की गर्माहट है
बेशक कर्कशा है मेरी भार्या
पर जीवन का हर सुख दुःख है
मेरे साथ जिया
मैं जानता हूँ उसके प्यार की ताकत
अपने बुरे दिनों में महसूस की है
सिद्दत से उसकी जरूरत
बीमारी मैं तो सभी कर्कश हो जाते है
अपने हित और अहित को समझ नहीं पाते है
वो अनपढ़ है इसलिए मुझे
आइई लव यु कह नहीं सकती
पर बेटे सच तो ये है की
वह मुझे अपने जान से भी
ज्यादा प्यार है करती
आज की पीढ़ी के प्यार में
कहाँ है वो ताकत
प्यार तो पैसे में तब्दील हो गया है
समाप्त हो चुकी है रिश्तो की गर्माहट
विवाहेतर रिश्तो के पीछे की सच्चाई
कपड़ो की तरह बदलते लुगाई
माँ बाप समेत सभी सम्बन्ध
अपने मायने खो चुके है
गाँव पर भी शहर के प्रभाव पड़े है
इसीलिए आज हम उस दोराहे पर खड़े है
बच्चो को हमारी नहीं है फिकर
मैं अभी जिन्दा हूँ मगर
शहर और सभ्य लोगो से दूर हूँ
इसीलिए नहीं मजबूर हूँ
पाल सकता हूँ अगर
अपने चार बच्चो को
तो सक्षम हूँ पाल सकने में स्वयं को
ये जीवन और इसका दुःख दर्द
प्रभु की कृपा से संचालित है सर्वस
हम तो माध्यम है बस
देख उसके जीवन का फलसफा
उम्र के इस पड़ाव पर भी देख उसका हौसला
मैंने प्रणाम उसको किया
मैं बेजुबान हो गया
सोचता रहा हम इन कंक्रीट के जंगलो में
बेकार ही शिक्षित हो रहे
गाँव के मिटटी की सोढ़ी गंध
आज भी हमसे बेहतर प्रतीत हो रहे
बेबाक कह सकता हूँ की
शहर की संस्कृति के मध्य
मानवीय मूल्य कहीं तेजी से खो रहे
शनिवार, 8 जनवरी 2011
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4 टिप्पणियां:
पैसा प्यार की गहराई कम कर देता है।
बहुत सुन्दर कविता ...बधाई.
उम्दा प्रस्तुति...अच्छे भाव...बधाई.
बेहतरीन एवं प्रशंसनीय प्रस्तुति ।
हिन्दी को ऐसे ही सृजन की उम्मीद ।
धन्यवाद....
satguru-satykikhoj.blogspot.com
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