फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

जीने का अभिनय

अनिमेष पाँच वर्ष पूर्व
सॉफ्टवेर इंजिनियर बन
दिल्ली आया
इन पाँच वर्षो में उसने
वह सब पाया
जो एक स्टेटस लाइफ को भाया
चैन और सुकून खोने की
कीमत पर आकर्षक वेतन पॅकेज
व लक्सेरी लाइफ
एक प्यारी सी मोडर्न wife

पर रात रात भर की शिफ्टो ने
असमय ही उसे थका
और सिमटा दिया था
जिंदगी की तेज दौड़ ने
जीवन को मुश्किल बना दिया था
सब कुछ पाने के उपरांत भी
अपने को वह खाली
हाथ पा रहा था

वह हैरान अक्सर सोचता
की जिंदगी जो वह जी रहा है
उसमे जीवन कहाँ है
इन तमाम सुविधाओं के बीच
चैन और संतुष्टि कहाँ है
शांति व सुकून कहाँ है
वह तो जी ही नहीं रहा है
बल्कि जीने का
अभिनय कर रहा है

धीरे धीरे जीवन को
निराशाओं और कुंठाओं ने
समेटना प्रारंभ किया
शरीर और चेहरे को
असमय बुदापे ने
घेरना आरंभ किया

बेशक जीवन बदल रहा है
दुनिया बदल रही है
तमाम झंझावातो के बीच
जिंदगी के मायने बदल रहे है
साथही नियति भी बन गयी है
इन बदलावों के बीच
स्वयं को ढालना
और परिवार को वर्तमान परिवेश में
बेहतर ढंग से पालना
पर यह भी सत्य है की
सच्चे अर्थों में यदि जीवन जीना है
तमाम उपार्जित सुविधाओं का
सुख और आनंद पाना है
तो पहले स्वयं को
स्वस्थ्य रखना है
जहाँ तक इसके विकल्प का प्रश्न है
मल्टी टास्किंग से दूर रहना
नूतन परिवेश में संतोष जैसे
मानव मूल्यों का प्रतिस्थापन
और प्रासंगिकता को समझना
बदलते वक़्त में इसकी उपयोगिता
और पुनर्निरीक्षण करना
इसका अर्थ अकर्मण्यता
कदापि नहीं समझना
अपना बेस्ट देने पर जो मिले
उसी पर संतोष करना

तभी हम इस
जटिलतम जीवन को
सुगमता से जीभर कर जी पायेगे
और जीवन संग्राम में
टिक पायेगे

2 टिप्‍पणियां:

Amit Kumar Yadav ने कहा…

कविता के माध्यम से आज के दौर में बड़ी प्रासंगिक बात कही...साधुवाद.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बीच बीच में जीवन पर बैठकर विचार कर लेना चाहिये।