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गुरुवार, 27 जनवरी 2011

बेशक हम स्वतंत्र हो गए

बेशक हम स्वतंत्र हो गए है
क्या आपको लगता नहीं की
स्वतंत्र होने के उपरांत हम
कुछ ज्यादा ही स्वछन्द हो गए है
तमाम वर्जनाओं के साथ साथ
अपनी मर्यादाओं की परिधि को
निरंतर तोड़ते जा रहे है
अपने पंखों को तोड़ हम
क्षितिज तक उड़ना चाह रहे है
हताश परिजनों की कर
उपेक्षा और अवहेलना
अपनी वल्दियत शान से
बताना चाहते है
अपने सिमित ज्ञान के आधार पर
वैश्विक स्तर पर अपनी
असीमित पहचान बनाना चाहते है
आधारहीन एक सुदृढा
आवास बनाना चाहते है

वस्तुतः हमारी देह
बन चुकी है लंका
जहा बज रहा है केवल
आततायी अल्पज्ञानी असुरों का डंका
बन चुके है हम स्वयंभू
जरा भी सहमते नहीं लूटने में
प्रसाद और निराला के
नायिकाओं की आबरू
इनमे शुद्ध आत्माओं का
हो चुका है प्रवेशनिशेध

आओं इस गणतंत्र दिवस पर
ले संकल्प बन हनुमान
सुक्ष्म रूप में करे लंका प्रवेश
करे पुनः सीता शोध
त्याग आपसी प्रतिशोध
यथार्थतः सीता है जहाँ शुचिता पवित्रता
भव्यता न्याय और भक्ति का पर्याय
किसी भी कीमत पर सहन
नहीं होना चाहिए अन्याय
इनके शोधन से बदती है
आत्मबल और आत्मशक्ति
जाग्रत होता अपने इष्ट के प्रति
समर्पण और भक्ति
जिससे होता है अन्याय का प्रतिकार
असुर करते चीत्कार

ज्ञात हो सेतुबंध है नहीं केवल
एक साधारण ऐतिहासिक घटना
है यह समाज को जोड़ने का
एक पावन उपक्रम
जिससे मात खाता है अन्याय
रुपी रावन का पराक्रम
सुग्रीव की मित्रता
त्यागती निजता
है एक ऐसी दोस्ती की पवित्रता
आज के परिवेश में है
जिसकी नितांत आवश्यकता
मानव और शाखामृगों की दोस्ती से
जब होसकता है त्रेतायुगी असुरों का नाश
तो मानव और मानव की दोस्ती के आगे
कलयुगी असुरों की क्या औकात
लिखा जा सकता है
एक नूतन इतिहास

बस सीता की शुचिता बनी रहे
यही है इस संकल्प दिवस पर
हमारी इक्षा
इसीलिए बार बार देनी पड़ती है
सीता को ही अग्निपरीक्षा
चलती है हर बार राम की ही इक्षा
नेपथ्य का यही सत्य है
इस संकल्प दिवस पर अपनी
सीता की शुचिता को नयी चुनौतियों
और नए आयामों के मध्य परखना चाहिए
लगातार नई कसौटियों पर कसना चाहिए
निडर काँटों के बीच से
सुगढ़ गुलाबों का चयन करना चाहिए
बिछाकर राहों में ओसासक्त दूब
और परागित पंखुड़िया
सजा द्वार पर तोरण बन्दनवार
और तिरंगी झंडियाँ
हमें एक नूतन प्रभात की
प्रतीक्षा करनी चाहिए

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

वह सुबह निश्चय ही आयेगी।

JAGDISH BALI ने कहा…

Fantastic and relevant poem. Congrats. I am following U now.

ManPreet Kaur ने कहा…

wo waqt jaldi aaye aisa sabhi chahte hain..
Pls Visit My Blog..

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