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मंगलवार, 7 जून 2011

संवेदनाओ के सौदागर


मानवीय संवेदनाओं को
बेचने का अनवरत क्रम
बड़ी सिद्दत से फैला रहा
अपना उपक्रम
तमाम चैनलों के बीच मची है
टी आर पी की मारा मारी
जैसे ही दीखती है कोई अतीत की
सामाजिक विषमता हलकी या भारी
कूद पडतें है जैसे लकडहारा
पेड़ पर लिए टगारी
हालाँकि इन विषमताओं की चौड़ी खाई
वर्तमान में हो चुकी एकदम ही संकरी
पर पुनः मिर्च मसाला लगाकर
बनाते इसे ये दर्शकों के
गले की फंसरी

कोई समुचित समाधान होता नहीं
उनके पास अपने इस एजेंडे में
तुरंत लग जाते है ये इसको
किसी तरह बस भुनाने में
कर संवेदनाओं और आंसुओं का
अतीव सरोतर मिश्रण
टी आर पी से कर दर्शकों का परिक्षण
मानवीय भावनाओं का करते ये
जी भर कर शोषण
अपनी जेबें ये करते खूब भारी
समस्याएं रह जाती है
जस की तस सारी

सालों साल बालिका बधू बंदिनी जैसे
सीरियल देखने के बाद दर्शक
अपने को ठगा पाता है
मुद्दे की संजीदगी को
जब धूमिल पाता है
अंत में चैनेल बदल देता है
जहाँ दूसरे महोदय भी बैठे है
लगाये अपनी संवेदनाओ की दुकान
संतुष्टि की तलाश में प्रतिज्ञा की ओर
भागता दर्शक तलाशता
वहां अपना मुकाम
पर अफ़सोस वहां भी वह
महीनो ठगा जाता है
तब कुछ कुछ समझ पाता है

तब तक चैनेल ग्रामीण पृष्ठिभूमि पर
आधारित तमाम सीरियल और विलेज गर्ल
जैसे रियल्टी शो को नए
कलेवर के साथ लिए आते है
ग्रामीण पृष्ठिभूमि का भरपूर मजाक उड़ाते है
जब तक शो समाप्त होता है
गाँव अपनी संस्कृति को
लुटा देखता है

पुनः ये लेकर आते है
राखी का स्वयंवर
जहा खूब होती है नौटंकी जी भर कर
अतीत के दर्शन कि लिए इच्छा
दर्शक महीनो तक करता प्रतीक्षा
अपनी कोमल भावनाओ का
भरपूर शोषण कराता
पुनः अपने को निराश
खाली हाथ पाता

हद तो तब हो जाती है
जब तमाम सामाजिक स्टंट से घिरी
इटम नायिका को
इंसाफ की देवी बना दिया जाता है
तमाम रियल्टी शो के जरिये
मासूमो का मजाक उड़ाया जाता है
अपने क्षेत्र के फ्लाप हस्तियों को
जज बनाकर अवाम को छला जाता है

हा कामेडी पर आधारित कुछ
सीरियल दर्शको का भरपूर
मनोरंजन करने का प्रयास करते है
मगर इस प्रयास में ये भी
द्विअर्थी और फुअड संवादों से
मर्यादा की सीमा लांघते दीखते है
फिर भी आजकी व्यस्तमम जीवनशैली में
जहाँ एक व्यक्ति हंसी को
लगभग भूल चुका है
उन्हें ये सीरियल कुछ हद तक
सुकून देते है

पर जब कभी ये माँ बाप को
बदलने का मसौदा परोसते है
कभी बच्चे को बदलने का
असामाजिक प्रयोग ये करते है
सास और बहुओं को एक दूसरे को
तंग करने के नए नए हत्कंडे सिखाते
नाजायज संबंधो को जायज ठहराते है
स्वयं को हास्यास्पद बनाते है
धन का भरपूर दोहन करते हुए
अपने स्वार्थ के लिए
एक सीधे सादे दर्शको की
भावनाओं पर प्रहार करते हुए
सिर्फ और सिर्फ इमोसनल
अत्याचार ही तो करते है

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

खूबसूरत और सार्थक प्रस्तुति..बधाई.