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शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

ढलते सूरज के साथ
पथरीले घाटों ने
हर हर महादेव का
उदघोष किया
जीवन्तता का अहनद
नाद दिया
आँचल में समेटे
अनेक छोटे दिनकरो को
एक नूतन श्रृष्टि का
आगाज किया

स्वप्निल
अद्भुत
अवर्णनिय
शब्दहीन वाणी
मौन मूर्तिवत आकांक्षाये
सुसज्जित देख
अर्धचन्द्राकार कंठ
भागीरथी का
प्रसंग देव दीपवाली का

धन्य हे भारत
धन्य तेरी अक्षुण
परम्परा और संस्कृति का
उपवन
हे आर्यभूमि
तुझको शत शत
नमन

निर्मेश

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