हम किसे आवाज़ देते हैं?
और क्यूँ?
क्या हम में वो दम नहीं,
जो हवाओं के रुख बदल डाले,
सरफरोशी के जज्बातों को नए आयाम दे जाए,
जो -अन्याय की बढती आंधी को मिटा सके...........
अपने हौसले, अपने जज्बे को बाहर लाओ,
भगत सिंह, सुखदेव कहीं और नहीं
तुम सब के दिलों में हैं,
उन्हें बाहर लाओ...........
बम विस्फोट कोई गुफ्तगू नहीं,
दुश्मनों की सोची-समझी चाल है,
उसे निरस्त करो,
ख़ुद का आह्वान करो,
ख़ुद को पहचानो,
भारत की रक्षा करो !...........
रश्मि प्रभा
rasprabha@gmail.com
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12 टिप्पणियां:
बम विस्फोट कोई गुफ्तगू नहीं,
दुश्मनों की सोची-समझी चाल है,
उसे निरस्त करो,
ख़ुद का आह्वान करो,
ख़ुद को पहचानो,
भारत की रक्षा करो !..DIL KO CHHUNE WALI PANKTIYAN..BADHAI!!
तहे दिल से शुक्रिया ....
sach hai........hume khud ko hi pahchaanana hai....kab tak doosaron ke bharose jeete rahenge...
भगत सिंह, सुखदेव कहीं और नहीं
तुम सब के दिलों में हैं,
उन्हें बाहर लाओ...........
बम विस्फोट कोई गुफ्तगू नहीं,
दुश्मनों की सोची-समझी चाल है,
bahut hi saadagi se aahwahn hai. kuchh kar guzarane ka josh paida karati rachna.
badhai
ये आह्वान अवश्य ही युवाओं में शौर्य का संचार करेगा .बम विस्फोट कोई गुफ्तगू नही ..........................
बहुत सुंदर प्रयोग.
आत्म विश्वास संचारित करने के लिए ये कहना ज़रूरी था -------सब तुममें ही समाहित हैं ,अपने अन्दर झांकने की ज़रूरत है
प्रणाम
आपने बिलकुल सही लिखा है दी, भगत सिंह और सुखदेव कही और नहीं बल्कि हमारे दिलो में ही हैं, और आज़ादी की लड़ाई तो सिर्फ अंग्रेजो से लड़ कर पाई गयी थी लेकिन अब उस वक़्त से भी ज्यादा जरुरत महसूस की जा रही है देशभक्तों की, क्यों कि अब दुश्मन हमारे बीच से ही निकल कर आ रहा है उसे पहचानना भी कठिन हो गया है.. एक अच्छी रचना..!!
बहोत खूब दीदी .....
क्या है यह दुश्मन ? क्यों सोच समझ कर चाल चलते है ?
क्यों की हम अपने में दबे भगत सिंह, सुखदेव को देख ही नहीं पा रहे है ... वक़्त आ गया है इन्हें बहार निकालने का, और भारत माँ की रक्षा करने का ....
सामायिक बात कही है आपने सुन्दर शब्दों में...
पर आज व्यक्तिगत स्वार्थ से उपर उठकर एक समग्र चेतन एकजुटता की ज़रुरत है ...
पढ़कर दिल खुश हो गया.
Bahut khub Rashmi Prabha ji.
ख़ुद का आह्वान करो,
ख़ुद को पहचानो,
भारत की रक्षा करो !...........
वर्तमान परिवेश में बड़ी सार्थक पंक्तियाँ.
अनुपम भाव, खूबसूरत प्रस्तुति.
क्या केवल सीमाऒं की सुरक्षा को ही राष्ट्रीय सुरक्षा कहा जायेगा ? क्या राष्ट्रीय सुरक्षा का दायित्व केवल हमारी सेनाऒं का ही है ? यदि हम इन
दोनों प्रश्नों पर गहनता और गंभीरता से विचार करें तो पायेंगे कि मात्र सीमाऒं की सुरक्षा ही राष्ट्रीय सुरक्षा नहीं है, वरन् देश में उपस्थित समस्त ऐसी वस्तुऒं की सुरक्षा को राष्ट्रीय सुरक्षा के अन्तर्गत माना जाएगा, जो राष्ट्र के किसी भी पहलू से किसी भी स्तर से जुड़ी हो। देश में निवास करनेवाला प्रत्येक नागरिक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उत्तरदायी
है। खेतों में काम करनेवाला किसान, उद्योगों में काम करनेवाला श्रमिक, शासकीय और अशासकीय कार्यालयों में काम करनेवाला क्लर्क, सभी अपने-अपने स्थान पर सैनिक हैं । सीमा पर तैनात सैनिकों से अधिक उत्तरदायित्व देश के अन्दर काम करनेवाले इन लोगों का है । बहुत बड़ी सीमा तक राष्ट्रीय सुरक्षा का आधार- नागरिकों की शिक्षा विभिन्न बातों का उनका ज़ान, उनका
चरित्र, उनकी अनुशासन की भावना और सुरक्षा के कार्यों में कुशलता से भाग लेने की उनकी योग्यता है । इन लोगों के चरित्र से ही देश का भाग्य जुड़ा
होता है ।
भारत बहुजातीय एवं बहुधार्मिक लोगों की गौरवमयी स्थली है, लेकिन आज इसी धरती पर वोटों की राजनीति के नाम पर नित्य नए विभाजन की मांगें उठ रही है । इन्हें कभी धर्म के नाम पर सुरक्षित स्थल चाहिए तो कभी अल्पसंख्यकों के
वोटों के लिए संविधान में विशेष प्रावधान । आज इन्हीं जातीय एवं धार्मिक विद्वेष से उपर उठकर चिन्तन करने की आवश्यकता है ।
वर्तमान में भारत में आतंकवाद एवं विघटनकारी प्रवृतियों में जिस तीव्रता से वृद्धि हुयी है, उस पर प्रशासन भी लगाम लगाने में असफल रहा है । अतः, प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बनता है कि वह आतंकवादियों से मुकाबला करे । आज हमारे चारों ऒर कालाबाजारी, तस्करी, चोर-बाजारी, रिश्वत, भ्रष्टाचार आदि का बोलबाला है । हमें अपनी आँखें खोलकर इन्हें मिटाना होगा तभी राष्ट्र सुरक्षित रह सकता है ।
किसी भी देश की सुरक्षा का दायित्व वहाँ के युवा वर्ग का है । वे ही कलह, द्वेष, भ्रष्टाचार, क्षेत्रीयता एवं जातीयता से मुक्त समाज की स्थापना
कर, उसमें व्याप्त आतंकवाद, हत्या, अपहरण, अनाचार, दुराचार, कालाबाजारी, घूसखोरी, हड़ताल आदि असामाजिक तत्वों को जड़ से काट सकते हैं ।
हम स्वयं समझ सकते हैं कि व्यक्तिगत चरित्र के द्वारा हमारा देश किस प्रकार निरादर का पात्र बन जाता है । साधु-संतों, ऋषि-मुनियों का यह देश
चरित्रहीन और गद्दारों का देश बन गया है ।
राष्ट्रीय चरित्र के अभाव में न आज हमारा देश सुरक्षित है, न समाज । यहाँ तक कि हमारे नगर और परिवार भी सुरक्षित नहीं हैं । अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि देश को सुरक्षित
रखनेवाले विन्दुऒं पर हम स्वविवेक से चिन्तन और मनन करते हुए उसके सुरक्षा के प्रति सदैव तैयार रहें । हमें अपने राष्ट्रीय चरित्र को इस
स्तर तक उठाना होगा कि हमारा राष्ट्र विश्व में आदर्श रुप ग्रहण कर सके अन्यथा इतिहास अपने को दोहराएगा और मीरजाफर एवं जयचंद की परंपरा हमारी सुरक्षा एवं स्वतंत्रता के सामने बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा देगी ।
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