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रविवार, 14 फ़रवरी 2010

कुँवारी किरणें (वेलेंटाइन दिवस पर विशेष)

कुँवारी किरणें
सद्यःस्नात सी लगती हैं
हर रोज सूरज की किरणें।
खिड़कियों के झरोखों से
चुपके से अन्दर आकर
छा जाती हैं पूरे शरीर पर
अठखेलियाँ करते हुये।
आगोश में भर शरीर को
दिखाती हैं अपनी अल्हड़ता के जलवे
और मजबूर कर देती हैं
अंगड़ाईयाँ लेने के लिए
मानो सज धज कर
तैयार बैठी हों
अपना कौमार्यपन लुटाने के लिए।

कृष्ण कुमार यादव

7 टिप्‍पणियां:

Akanksha Yadav ने कहा…

वेलेंटाइन-डे पर बेहतरीन प्रस्तुति...वेलेंटाइन-डे की शुभकामनायें !!
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"शब्द-शिखर" पर सेलुलर जेल के यातना दृश्य....और वेलेंटाइन-डे पर "पहला प्यार" !

Amit Kumar Yadav ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्तियाँ..प्यार के इस अल्हड़ मौसम में आप यूँ ही प्रेम का गीत गुनगुनाते रहें.

Shahroz ने कहा…

बेहद निराले अंदाज में लिखी कविता. प्रेम-दिवस पर इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए के. के. यादव जी को बधाई.

Unknown ने कहा…

Beautiful Poem on Valentine Day...Congts.

मनोज कुमार ने कहा…

बेहतरीन। लाजवाब।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बढ़िया है..

S R Bharti ने कहा…

भावनाओं का सुन्दर संगमन व प्यार का अद्भुत अहसास परिलक्षित होता है इस कविता में.