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शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

आज कि सावित्री


अपने मित्र सुमित के
डेल्ही बेल्ली देखने के आमंत्रण पर
शहर के एक मल्टी प्लेक्स के
भूतल पर
हम टिकट के लिए लाइन में थे
भाई साहेब प्लीज
दो टिकट हमारी भी ले ले
संबोधन सुन मै अचकचा गया
पास में एक नौजवान को
ह्वील चेयर पर पाया
साथ में निर्विकार भाव से
चेयर को संभालते हुए
उसके बालों को सवारते एक
सभ्य सुगढ़ युवती दिखी
सहानुभूति वस मैंने
उनकी टिकट लेली
इसी बीच कई अज्ञात आंखे
हमें घूरती रही

औपचारिक धन्यवाद् प्राप्त कर
हम दोनों हाल की ओर चल दिए
चाह कर भी आगे उनकी
सहायता करने से बचते रहे
पुनः भाई साहेब की आवाज आयी
उसने एक बार और
सहायता कि गुहार लगाई
विचलित पुनः मन यह देख कि
वह दोनों पैर से पंगु था
स्वयं से उठ तक नहीं पा रहा था
किसी तरह हमने उक्त युवक को
सहारा दे उसे उसकी
सीट पर बिठाया

इसी बीच पिक्चर
प्रारंभ हो गया था
पर मेरा चिंतनशील और खोजी मन
रह रह कर उन्ही पर जा रहा था
उनके बीच पति पत्नी का सम्बन्ध
उनके आपसी वार्तालाप से
स्पष्ट हो गया था
बड़े ही जतन से एक दूसरे के हाथो को
अपने हाथ में लिए
वे पिक्चर देखते
बड़े प्रेम से आपस में
परिचर्चा करते
परदे पर दी जा रही तथाकथित
हर गालीयों पर अपनी
प्रतिक्रिया व्यक्त करते
बीच बीच में पत्नी उसे
कोल्डड्रिंक और स्नेक्स बड़े प्यार से
अपने हाथों से सर्व करती
रह रह कर उसके बालों में
उंगलिया फिराते हुए
बालों को बुहारती
कहीं से भी बनावटी नहीं
लग रही थी
साक्षात् सत्यवान की
आधुनिक सावित्री दिख रही थी

एकबारगी तो मुझे भी लगा
कि कहीं मै स्वप्न तो नहीं देख रहा
आज के परिवेश में ऐसे पति के साथ
ऐसा सामंजस्य एक कल्पना ही तो रहा

मै भावुक हो पिक्चर कम
उन्हें ज्यादा देख रहा था
शुन्य में ताकता निमग्न सोच रहा था
क्या ये आधुनिका कल्पित
भारतीय नारी है
विकलांग पति पर लुटा रही
खुशियाँ सारी है
आखिर यह इसे कौन सा भौतिक
या दैहिक सुख दे रहा होगा
इसे तो बस कष्ट ही कष्ट
हो रहा होगा
तभी लगा कि अगर यह
मेरे द्वारा कल्पित कष्ट पा रही होती
तो घर में ही सीडी पर पति को
वांछित पिक्चर दिखा दी होती
न कि इतने समर्पित ढंग से
पति के बड़े परदे पर
पिक्चर देखने कि इक्षा को
साकार कर रही होती

मेरे सामने सागर सा शांत
धीर निश्छल निस्वार्थ अप्नत्वा से भरा
सच्चा प्यार आकार लेने लगता है
जो इन सब से कहीं दूर
केवल मन की ही बात सुनता है
व स्थापित मानको और मापदंडो से
ऊपर का अहसास होता है
जो किसी किसी को ही
नसीब होता है

बेशक है इतिहास का सत्यवान तो
फिर भी सर्वांगसुंदर था
आधुनिक सत्यवान विकलांग
मगर भाग्यवान बन
मेरे सामने विराजित था
इस आधुनिक सावत्री का आचरण
इतिहास कि सावित्री पर भारी था
अभी तक तो मै वर्तमान परिवेश में
आधुनिकता के नाम पर
वैभव विलास और स्वार्थ में
आकंठ डूबे रिश्तों को जहाँ
तार तार होते देख रहा था
पर आज उन्ही रिश्तों के मध्य
तपती रेत के बीच
वारिस कि फुहारों कि मानिंद
प्रोफेश्न्लिस्म मानसिकता के ज़माने के मध्य
उस आधुनिक नारी के भावों को देख
श्रद्धा से नतमस्तक हो गया था

इतने पश्चिमी विप्लव के उपरांत भी
अपने अतीत की बची हुई
संस्कृति पर एक बार
पुनः मुझे गर्व हुआ था

3 टिप्‍पणियां:

SAJAN.AAWARA ने कहा…

Ye baat to apne india me hi dekhne ko mil sakti hai,salam india,
jai hind jai bharat

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

यह एक भारतीय नारी ही कर सकती है ... यदि यह हालत किसी पत्निके साथ होते तो शायद ऐसा अपनत्व देखने को नहीं मिलता

upendra shukla ने कहा…

bahut hi acchi prastuti