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गुरुवार, 6 सितंबर 2012

आज का युधिष्ठर

आज का युधिष्ठर



घाट क़ी सीढियों पर

उदास बैठे राजू के सामने

सारा अतीत घूम रहा था

बापू क़ी मौत के बाद

या बापू के रहते हुए भी

मामा ने किस तरह

पूरे परिवार को संभाला था

उसके सभी बहनों का

विवाह करते करते

बापू तो चल बसे थे

राजू के लिए कुछ खास

नहीं छोड़ गए थे



दिन बीतते गए

राजू भी विवाह के योग्य हुआ

विवाह के पूर्व मामा ने

उसके टूटे फूटे घर को बनवाने का

फैसला लिया



सीमेंट लेन के लिए

हजार रूपये राजू को दिया

स्वयं ईट लेन के लिए

भत्ते का रुख किया

बीच में पुराने यारों ने हाथ पकड़

राजू को न चाहते हुए

फड पर बैठा लिया

महाभारत के युधिष्ठर के निति का

दुहाई दिया

उसकी लगभग छूट चुकी

जुए क़ी आदत ने भी जोर मारा

राजू फड पर बैठा

शीघ्र ही हार चुका था रुपया सारा

उसके पाव तले का जमीन खिसक गया था

जितने वाला रुपया लेकर

आगे चल दिया था

हताश राजू भी उसके

पीछे पीछे चल दिया था



बिना परिश्रम

अपने रुपये को बढ़ने के चाह ने

राजू को आज कितना

दीन और हीन बना दिया था

यहाँ तक क़ी उसे जुए क़ी फड तक

एक बार पुनः पंहुचा दिया था

कैसे करेगा वह देवता समान

अपने मामा का सामना

यह सोच वह एकदम से

घबरा गया था

मामा के विश्वास को

एक बार पुनः चोट पहुचाने का गम

उसे भीतर तक साल रहा था

सोच रहा था कि

किसी तरह यह पैसा इस बार

वापस आ गया कही

तो हे भगवन आपकी कसम

अब जुए कि ओर कभी

वह ताकेगा नहीं

चलते चलते आखिर मयखाने में

उससे मुलाकात हुई

राजी कि बाछें खिल गयी

राजू अपने पैसे कि वापसी कि उम्मेद्मे

उससे एक बार और खेलने कि

बार बार अपील कि

अबे खेल ले भैया खेल ले भैया

कि अनेक विनती कि

अंततः नशे में टुन्न होने पर

वह खेलने के लिए पुनः

तैयार हो गया था

शायद भाग्य को भी

राजू कि दशा पर तरस आ गया था

ईस बार

राजू के पत्ते पड़ने लगे थे

एक एक कर उसके रुपये

वापस आने लगे थे



पाँच सौ रूपये ऊपर से

और भी आ गे थे

धीरे धीरे लोग घर जाने लगे थे

उसमे से दो सौ राजू ने उसे और दिया

साथ ही वापस जाकर और

पीने का सलाह दिया

बाकी पैसे लेकर उसने स्वयं

बाजार का रुख किया



रास्ते में राजू

सोचता जा रहा था

कैसी मूर्खता और कैसी विडम्बना है कि

अपने पैसा जब अपने पास था

उसके वेलू और उसकी अस्मत का

उसे अहसास नहीं था

देखते ही देखते जब वह

दूसरे कि जेब में जाने लगा था

उसकी कीमत का

उसे भास हुआ था



जीता तो कई बार था वह

मगर इस जीत पर

आज का वह युधिष्ठर

बहुत ही इतरा रहा था

 
मूर्ख अपने ही पैसे क़ी वापसी पर

आज जश्न मना रहा था

सोच रहा था कि

कितनी मारकाट के बाद

महाभारत के युधिष्ठर का

सम्मान बचा रहा था

उसने तो अपने सम्मान को बस

चुटकियों में ही वापस

हासिल कर लिया था

तुलना करने पर वह अपने आप को

द्वापर के युधिष्ठर से श्रेष्ट पा रहा था

आज के बाद उसने फड पर

न बैठने कि कसम ली

हमेशा के लिए जुए को

जैरामजी की कही

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