फ़ॉलोअर

सोमवार, 8 अगस्त 2011

फिर कहाँ मिलेंगे...

चली गयीं कोटला साहब...

मौत जिंदगी का वक्फा है

यानी आगे चलेंगे दम लेकर।

आज सुबह के वक्त हमारा पूरा परिवार जब सेहरी की तैयारी में था कि अचानक सालों से बीमार हमारी नानी जाहिरून निशा इस फानी दुनियां से भोर के तीन बजकर पांच मिनट पर कभी ना खत्म होने वाली दुनियां में चली गयीं। मौत जोकि शश्वत सत्य है। इस पर किसी का जोर नहींए क्या राजा क्या रंक सब एक समान। नानी कैंसर से पिछले दस सालों से बीमार थी मगर उसने कभी तकलीफ को जाहिर नहीं किया।

मैं अक्सर उसे कोटला साहब कहके पुकारता था वो खुश हो जाती। पूछने पर की ऐनी प्राब्लम तो कहती नो प्राब्लम। जिंदगी की तमाम तल्खियें से गुजरने के बाद भी नानी ने कभी दुख का इजहार तक नहीं किया। आज हम उन्हे सुपुर्दे खाक कर आयें। सुपुर्दे खाक किया अपने अरमानों को, अपनी खुशियों को। मैं अभी सोच रहा हूं अब कहां मिलेंगी कोटला साहब। किससे कहूंगा कि आज मुझे कुत्ते ने सींग मार दिया। किससे पूछूंगा कि खजूरिया साहब कहां है। आज दिल रो दिया कोटला साहब को याद कर के। आखिर मौत ही सच है बाकी सब झूठ। अब तो यादें ही बाकी हैं कोटला साहब की। कोटला सहब माफ करीयेगा अगर मुझे कुछ खता हुई होगी।

अल्लाह हाफिज कोटला साहब।

शायद अब कभी ना मिल सकुं की पूछुं जर्मन साहब कैसे हैं?

खुदा आपको जन्नत में जगह दे।

मुठठीयों में खाक लेकर दोस्त आए वक्त-ए-दफन

जिन्दगी भर की मुहब्बत का सिला देने लगे।

2 टिप्‍पणियां:

SAJAN.AAWARA ने कहा…

Bhaijan ek na ek din to sab ko khuda ke darbar me hajiri deni hi padti hai.......... Ye hi duniya ka ekmatra satya hai isko swikar karne ke shiva hmare opas or koi chara bhi to nahi hai...........
Khuda unhe jannat me jagha de......
Jai hind jai bharat

S R Bharti ने कहा…

दुखदाई..