सुधी पाठकों इधर कई दिनों की छुट्टियाँ होने को हैं ऐसे में आपसे मुलाकात चार पाँच दिनों बाद ही हो पायेगी ऐसे में मेरी यह रचना रक्षाबंधन और १५ अगस्त को ध्यान में रख कर आपको समर्पित है आशा है आप सबका स्नेह पहले की तरह प्राप्त होगा एक बार पुनः आप सब को रक्षाबंधन और स्वतंत्रता की ढेर सारी बधाई के साथ आपका निर्मेश
ए मेरे देश के लोगो
क्यों रक्त हो चुका ठंडा
क्यों पड़ता नहीं असर है
चाहे खा ले कितने ही डंडा
पिछले दिनों की घटनाये
जिसमे क्या क्या न हुआ था
शर्मशार भई मर्यादा
खोना अब कुछ शेष न था
चलते जो तीर शब्दों के
भावों को भेद नहीं पाते है
अब अर्थ खो चुके अपने
नाहक संसद को सताते है
अच्छो को श्रेय ले बढ़ाते है
गलतियाँ दूसरे पर मढ़ते है
आदत है पड़ चुकी इनकी
पानी में आग लगाते है
आज़ाद परिंदे हम बेशक
है कभी हुआ करते थे
अब पंख तोड़ कर मेरे
उड़ने को हमसे कहते है
भौतिक दस्ता से मुक्त हुए
वर्षों हमको है बीत गए
मानसिक दंश गुलामी का
पर आज भी हम है झेल रहे
अन्ना लेकर आयें जब
तीव्र सत्यता की आधीं
प्रयास कर लिए जीभर कर
पर बन न पाए वो गाँधी
संतोष एक ही है हमको
हम आजाद हो चुके है
पीर कहे पर किससे अपनी
बस लाज ढो रहे रहे है
है साहस बचा है कितनो में
सच का साथ देने की
झुनझुना थमा कर हाथों में
कहतें है बात निभाने की
हो स्वतंत्र अपने ही देश में
दासता का जीवन जी ही रहे
पाते है जख्म रोज ही हम
दुखड़ा अपना कहने से रहे
पा चुके बेशक स्वराज है
पाना सुराज बाकी है अभी
इस बार चूक गए जो हम
मिले न वांछित लक्ष्य कभी
बना रहे पंद्रह अगस्त ही
बेशक पर्याय अपने स्वराज का
सोलह अगस्त को पड़ जाये
मजबूत नीव सच्चे सुराज का
आ मिले अन्ना से हाथ हम
रक्षा बांध शंखनाद करते है
दूसरी स्वतंत्रता की रणभेरी
हम आज ही से बजाते है
क्यों रक्त हो चुका ठंडा
क्यों पड़ता नहीं असर है
चाहे खा ले कितने ही डंडा
पिछले दिनों की घटनाये
जिसमे क्या क्या न हुआ था
शर्मशार भई मर्यादा
खोना अब कुछ शेष न था
चलते जो तीर शब्दों के
भावों को भेद नहीं पाते है
अब अर्थ खो चुके अपने
नाहक संसद को सताते है
अच्छो को श्रेय ले बढ़ाते है
गलतियाँ दूसरे पर मढ़ते है
आदत है पड़ चुकी इनकी
पानी में आग लगाते है
आज़ाद परिंदे हम बेशक
है कभी हुआ करते थे
अब पंख तोड़ कर मेरे
उड़ने को हमसे कहते है
भौतिक दस्ता से मुक्त हुए
वर्षों हमको है बीत गए
मानसिक दंश गुलामी का
पर आज भी हम है झेल रहे
अन्ना लेकर आयें जब
तीव्र सत्यता की आधीं
प्रयास कर लिए जीभर कर
पर बन न पाए वो गाँधी
संतोष एक ही है हमको
हम आजाद हो चुके है
पीर कहे पर किससे अपनी
बस लाज ढो रहे रहे है
है साहस बचा है कितनो में
सच का साथ देने की
झुनझुना थमा कर हाथों में
कहतें है बात निभाने की
हो स्वतंत्र अपने ही देश में
दासता का जीवन जी ही रहे
पाते है जख्म रोज ही हम
दुखड़ा अपना कहने से रहे
पा चुके बेशक स्वराज है
पाना सुराज बाकी है अभी
इस बार चूक गए जो हम
मिले न वांछित लक्ष्य कभी
बना रहे पंद्रह अगस्त ही
बेशक पर्याय अपने स्वराज का
सोलह अगस्त को पड़ जाये
मजबूत नीव सच्चे सुराज का
आ मिले अन्ना से हाथ हम
रक्षा बांध शंखनाद करते है
दूसरी स्वतंत्रता की रणभेरी
हम आज ही से बजाते है
2 टिप्पणियां:
बना रहे पंद्रह अगस्त ही
बेशक पर्याय अपने स्वराज का
सोलह अगस्त को पड़ जाये
मजबूत नीव सच्चे सुराज का
आ मिले अन्ना से हाथ हम
रक्षा बांध शंखनाद करते है
दूसरी स्वतंत्रता की रणभेरी
हम आज ही से बजाते है
सुराज के लिए संघर्ष जरुरी बन गया है..
..बहुत बढ़िया जनजागरण करती प्रस्तुति के लिए आभार!
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें
निर्मेश जी सुन्दर सन्देश युक्त प्यारी रचना
स्वतंत्रता दिवस और राखी की हार्दिक शुभ कामनाएं
भ्रमर ५
बना रहे पंद्रह अगस्त ही
बेशक पर्याय अपने स्वराज का
सोलह अगस्त को पड़ जाये
मजबूत नीव सच्चे सुराज का
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