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मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

अभागा



पापा पापा
आज दादा इतने उदास क्यों है
हमसे दूर दूर ही है
पास क्यों नहीं है
पापा ये आप किसके लिए
पैकिंग कर रहे है
क्या दादा के साथ
तीरथ करने जा रहे है

नहीं बेटा आज मेरे पापा
यानि तुम्हारे दादा का
वृद्धाश्रम में बड़े प्रयास और
सिफारिश के उपरांत
दाखिला हो गया है
कितने दिन से नम्बर लगाया था
आज हमारा भाग्योदय हो गया है

पर पापा दादा वहां
हम लोगो के बिना कैसे रहेंगे
इस उम्र में अब वो क्या पढेगे
और तो और अपने दमे की
बीमारी को कैसे सहेंगे

बेटा है नहीं वहां
पढ़ने का प्रावधान
बुड्ढों के रहने का है वहां
बहुत बढ़िया इंतजाम
खाने पिने के साथ दवा आदि की
व्यवस्था है आम
इनको वहां इनकी उम्र के
तमाम दोस्त मिल जायेगें
आपस में बैठ सब
अपने पुराने दिन गुन्गुनायेगे
आपस में सुख दुःख बाटेंगे
आनंद और आजादी से
इनके दिन कटेंगे

पापा तब तो ई
बड़ी अच्छी बात है
पर आसानी से दाखिला मिलने में
बड़ी मुश्किलात है
ऐसा करो पापा आप भी
अपना आवेदन वहां के लिए
अभी से कर दो
पता नहीं कल जगह न मिले तो

स्तब्ध शर्माजी बेटे चिंटू को
घूरती निगाहों से देख रहे थे
उनके आँखों से शोले बरस रहे थे
कोने में खड़े दादाजी
जो अभी तक मन ही मन में
मानस की चौपाई
सकल पदार्थ यही जग माहीं
करम हीन नर पावत नहीं
को दोहरा रहे थे
इस अकस्मात् बदलते
घटनाक्रम से मिली
आंशिक ख़ुशी से इतरा रहे थे

साथ ही अभी तक
इस आजादी की परिभाषा को
समझाने में अक्षम थे
संतोष से आह भरी यह देख की
अपनी जिम्मेदारी को
उनकी नई बेल कितनी तन्मयता से
पूरी करने में सक्षम है

विकास की सततशीलता पर
अपने अतीत से ये कितने आगे है
यह अलग बात है कि
सब कुछ रहते हुए भी
सच में हम कितने अभागे है
हमने जब अपने अतीत से खेला है
तो वो भी तो अपने अतीत से
निरन्तर खेल रहे है
विकास की प्रक्रिया
अवरुद्ध न हो
इस बात को सिद्ध कर रहे है

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

निर्मल अतीत और अनिश्चित भविष्य।

विवेक रस्तोगी ने कहा…

बिल्कुल सटीक