सोमवार, 17 अक्तूबर 2011
दुधमुहाँ
पांचो ब्रह्मण
समवेत स्वर में सस्वर
मधुर महामृतुन्जय मंत्र का
विधिवत जाप कर रहे थे
नब्बे वर्षीया ठाकुर साहेब
निकट बिस्तर पर पड़े थे
अपनी सलामती और लम्बी उम्र
के लिए मन भर दूध से
भगवान शिव का रुद्राभिषेक
करवा रहे थे
श्यामा जिसका पति
एक माह पूर्व ही टी बी से ग्रस्त
होकर पैसे के अभाव में
दुनिया से असमय अपने परिवार को
बिलखता छोड़ कूच कर गया था
पीछे पत्नी श्यामा हाथ में
दो छोटे बच्चे और
गोद में दुधमुंहा की जिम्मेदारी को
अपनी युवा पत्नी पर
छोड़ गया था
तत्काल में पेट भरने का कोई
vikalp नहीं पाकर वह
talab के किनारे दुधमुंहा को
आंचल में छिपाए
भीख मांग रही थी
पर लोगो कि नजर थी कि
रह रह कर भीख देने के बजे
उसके यौवन पर ही जा रही थी
कुछ चवन्नियां उसके विछाये चादर पर
बेशक पड़ी थी
पर वह इस डायन महगाई के
ज़माने में बच्चे के दूध और
भोजन के लिए कही से भी
पर्याप्त नहीं थी
बसंत एक और जहा
भूख से परेशान बिलख रहा था
मुन्ना दूसरी ऑर बेदम लेटा था
वही दुधमुहाँ माँ के छाती में
सर छुपाये दूध के अभाव में
बुक्का फाड़ फाड़ कर
रोये जा रहा था
उधर मन्त्रों की आवाज क्रमशः
तेज होती जा रही थी
खाटी दूध शिवलिंग से होकर
बनाये पनारे के रस्ते गंदगी को समेटे
तालाब में जा रही थी
इधर दुधमुहाँ कीआवाज क्रमशः
कमोजोर होती जा रही थी
जब कोई रास्ता सूझा नहीं उसे तो
बच्चे को ले उस पनारे पर
गयी झट से
जैसे ही पनारे पर अपने
बर्तन को दूध के लिए लगाया
यजमान दूर से भागता हुआ आया
हट साली ये क्या कर रही है
अपने गंदे हाथो से दूध को
क्यों गन्दा कर रही है
हम बाबूजी की लम्बी उम्र के लिए
रुद्राभिषेक करवा रहे है
और तू व्यर्थ में यमराज बन रही है
अचानक श्यामा ने अपने दुधमुहे को
बेजान होते देखा
उसके सर को एक और लुढकते देखा
चिल्लाकर रोना चाही पर
इसमें भी अपने को असफल पाया
हताश जिगर को अपने पत्थर बनाया
थोड़ी देर सिसकने के बाद
अपने यौवन रूपी धन को एक बार
जी भर के देखा
शेष बच्चों की परवरिश कैसे हो
यह सोच कलेजे को कड़ा किया
नितांत एक निजी मगर
एक कठोर निर्णय लिया
तत्काल में इस भद्र समाज को
उसका असली चेहरा दिखने का
फैसला कर लिया
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3 टिप्पणियां:
uf nitna marmik varnan, dil dukhi ho jata hai.
jai hind jai bharat
Nice Poem..!!
सामाजिक सत्य का भयावह चेहरा.
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