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गुरुवार, 30 जुलाई 2009

लेखन से पिरोती साहित्य की माला: आकांक्षा यादव

(आज आकांक्षा जी का जन्मदिन है. वे न सिर्फ "युवा" ब्लॉग की सक्रिय सदस्य हैं बल्कि बहुविध व्यक्तित्व को अपने में समेटे एवं साहित्यिक सरोकारों से अटूट लगाव रखने वाली एक प्रतिभाशाली युवा कवयित्री व लेखिका हैं. स्वभाव से सहज, सौम्य, विनम्र व संस्कारों की लड़ी से सुवासित आकांक्षा यादव जी के जन्मदिन पर कानपुर से "सांस्कृतिक टाईम्स" की संपादिका निशा वर्मा जी ने यह लेख हमें भेजा है. निशा जी के प्रति हम आभार व्यक्त करते हैं. इस लेख को प्रकाशित करते हुए हम आकांक्षा जी के स्वस्थ, दीर्घायु, समृद्ध एवं यशस्वी जीवन की कामना करते हैं और जन्म-दिन की ढेरों शुभकामनायें देते हैं !!)
मुंशी प्रेमचन्द का कहना था कि-‘‘सुन्दरता को अलंकारों की जरूरत नहीं है, कोमलता अलंकारों का भार नहीं सह सकती।‘‘ विद्वान गेटे के अनुसार-‘‘सौन्दर्य का आदर्श सादगी और शान्ति है।‘‘ एक चीनी कहावत भी है कि-‘‘बिना सद्गुणों के सुन्दरता अभिशाप है।‘‘ सीरत की खुशबू व्यक्ति के व्यवहार और बौद्धिकता को सुरक्षित करती है। जिसके पास सूरत और सीरत दोनों हो, तो सोने पर सुहागा हो जाता है। भारतीय संस्कृति में तमाम ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहाँ शिक्षा एवं साहित्य के अद्भुत समन्वय द्वारा नये प्रतिमानों की स्थापना हुई है। शिक्षा व्यक्ति में ज्ञान उत्पन्न करती है तो साहित्य संवेदना की संपोषक है। इस परम्परा में तमाम ऐसे व्यक्तित्व देखे जा सकते हैं जो अपने विषय के विद्वान होने के साथ-साथ साहित्यिक गतिविधियों में भी उतने ही सक्रिय रहे हैं। इसी क्रम में बहुविध व्यक्तित्व को अपने में समेटे देववाणी संस्कृत की प्रवक्ता एवं साहित्यिक सरोकारों से अटूट लगाव रखने वाली आकांक्षा यादव का नाम भी शामिल है। स्वभाव से सहज, सौम्य, विनम्र व संस्कारों की लड़ी से सुवासित आकांक्षा यादव एक प्रतिभाशाली कवयित्री व लेखिका हैं। आपका जन्म 30 जुलाई 1982 को सैदपुर, गाजीपुर में हुआ। आपके पिता श्री राजेन्द्र प्रसाद एवं माता श्रीमती सावित्री देवी सैदपुर में नगरपालिका अध्यक्ष रहे एवं वर्तमान में समाज सेवा में रत हैं। उच्च शिक्षा से आपके परिवार का अभिन्न नाता रहा है। आपके बड़े भाई श्री पीयूष कुमार आई0आई0टी0 रूड़की से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में उप महाप्रबन्धक, मंझले भाई श्री समीर सौरभ लखनऊ विश्वविद्यालय से एल0एल0बी0 करने के बाद उत्तर प्रदेश में उप पुलिस अधीक्षक, एवं श्री अश्विनी कुमार आई0आई0टी0 कानपुर से शिक्षा पश्चात गुजरात कैडर के 1997 बैच के आई0 ए0 एस0 अधिकारी के रूप में जूनागढ़ के जिलाधिकारी पद पर कार्यरत हैं। ऐसे में आकांक्षा जी का साहित्य की ओर रूझान पहली नजर में चैंकाता है। आपने प्राथमिक शिक्षा दयानन्द बाल विद्या मन्दिर, सैदपुर से एवं हाईस्कूल व इण्टर की शिक्षा क्रमशः 1996 व 1998 में राजकीय बालिका इण्टर कालेज, सैदपुर से प्राप्त की। वर्ष 2001 में संस्कृत, हिन्दी और राजनीति शास्त्र विषयों के साथ आपने पं0 दीन दयाल उपाध्याय राजकीय महाविद्यालय, सैदपुर से स्नातक और वर्ष 2003 में स्नाकोत्तर महाविद्यालय, गाजीपुर से संस्कृत में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की। फिलहाल लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश से चयनित होकर आकांक्षा यादव राजकीय बालिका इण्टर काॅलेज, नरवल कानपुर में प्रवक्ता (संस्कृत) के पद पर कार्यरत हैं।

आकांक्षा यादव ने अपने लेखन की शुरूआत कविता से की और बाद में अन्य विधाओं से भी जुड़ीं। साहित्यिक विधाओं में कविता इस दृष्टि से विशिष्ट है कि इसमें आत्माभिव्यक्ति की अकुलाहट सबसे ज्यादा देखी जाती है। एक कवयित्री के रूप में आकांक्षा जी ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाधर्मिता का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। आपकी कविताओं में जहाँ जीवंतता है वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है। चरित्र कहानी की पहचान है और बिम्ब कविता की। कविता में प्रयुक्त शब्द का आशय शब्द की कैद से आजाद हो उठता है, तभी कविता को अतल गहराई और अनंत विस्तार मिलता है। उन्होंने कविता को परिभाषित करने का उपक्रम यूँ किया है- जज्बातों के गुंफन से/ रचती है कविता/जीवन की लय-ताल से/सँवरती है कविता (अनुभूति, मई 2008)। निश्चिततः ये पंक्तियाँ उनकी रचनात्मकता की भाव-भूमि का खुलासा करने में नितांत सक्षम हैं। इसी प्रकार ‘संपूर्ण बनूँ‘ कविता में वे लिखती हैं- तुम गीत कहो, मैं पंक्ति बनूँ/तुम कहो गजल, मैं शब्द बनूँ/बिन तेरे मेरा वजूद है क्या/हो शब्द तेरे, मैं भाव बनूँ (गोलकोण्डा दर्पण, मई 2008)। आकांक्षा युवा हैं और नारी हैं, सो इनके अन्तद्र्वन्दों से भलीभांति परिचित हैं। ‘कादम्बिनी’ (दिसम्बर 2005) में ‘युवा बेटी’ शीर्षक से आपकी प्रथम कविता प्रकाशित हुईं। यह आधुनिक सुशिक्षित आत्मनिर्भर नारी के विचारों का सटीक व सशक्त प्रतिनिधित्व करती है- ये इक्कीसवीं सदी की बेटी है/वह उतनी ही सचेत है/अपने अधिकारों को लेकर/जानती है/स्वयं अपनी राह बनाना (कादम्बिनी, दिसम्बर 2005)। इसी प्रकार ‘एक लड़की’ कविता में बेबसी की सहज भावात्मक अभिव्यक्ति है। जो लोग जीती-जागती लड़की को वस्तु की तरह ठांेक-बजाकर देखते है, उन पर तीक्ष्ण कटाक्ष किया गया है- कोई उसके रंग को निहारता/तो कोई लम्बाई मापता/पर कोई नहीं देखता/उसकी आँखों में/जहाँ प्यार है, अनुराग है/लज्जा है, विश्वास है (साहित्य अमृत, जुलाई 2007)। मासूम भावनाओं व सौंदर्य बोध का ‘अहसास‘ कराती कविताएं भी आपने रची हैं- लौकिकता की/सीमा से परे/अलौकिक है/अहसास तुम्हारा (गृहशोभा, जुलाई 2006)। मातृत्व की अनुभूति की नितान्त स्नेहिल अभिव्यक्ति को मर्मस्पर्शी भंगिमा के साथ सीधे-सीधे पाठक तक संप्रेषित करने का प्रयत्न ‘मातृत्व‘ में किया गया है- उसके आने के अहसास से/सिहर उठती हूँ/अपने अंश का/एक नए रूप में प्रादुर्भाव (साहित्य जनमंच, सितम्बर 2007)।

आकांक्षा यादव किसी तकनीक को सिर्फ उसके बाहरी रूप रंग और प्रभाव के आधार पर नहीं देखतीं, बल्कि उसके पीछे मानवीय भावनाओं की सिकुड़न को भी महसूस करती हैं- एस0 एम0 एस0 के साथ ही/शब्द छोटे होते गए/भावनाएँ सिमटती गईं/लघु होता गया सब कुछ/रिश्तों की कद्र का अहसास भी (पुनर्नवा, दैनिक जागरण, 29 सितम्बर 2006)। ‘सिमटता आदमी’ कविता में भी भूमण्डलीकरण के दौर में आदमी के सिमटते जाने की नियति का चित्रण है- देखता है दुनिया को/टी0 वी0 चैनल की निगाहों से/पर नहीं देखता/पास-पड़ोस का समाज (युगतेवर, मार्च-मई, 2007)। वर्तमान दौर की विद््रूपताओं पर भी आकांक्षा जी ने कलम चलायी- आपाधापी के इस दौर में/कोई नहीं जानता कि/देर शाम को वे/एक-दूसरे के पास/होंगे भी या नहीं (कलायन, दिसम्बर 2008)। आपकी कवितायें स्थूल वर्णन से हटकर अनुभूतिगत तरलता और सांद्रता के साथ व्यंजित हुई हैं और इसी कारण वे अधिक प्रभावशाली हो गयी हैं। इन रचनाओं में समाज के निचले वर्ग की वेदना और निराशा को भी वाणी मिली है- पर नहीं सुनता कोई उनकी/चैनलों पर लाइव कवरेज होता है/लोगों की गृहस्थियों के/श्मशान में बदलने का (प्रगतिशील आकल्प, अप्रैल-जून 2007)। आकांक्षा जी में अपने आस-पास की जिन्दगी को खुली आँखों से देखने की सामथ्र्य है और मानवीय रिश्तों के साथ जीवन के विविध आयामों का निदर्शन करने का सत्साहस भी। बढ़ते पर्यावरण असंतुलन से विकल हो रही पृथ्वी की वेदना को भी वे शब्द देती हंै- कंक्रीटों की इस दुनिया में/तपिश सहना भी हुआ मुश्किल/मानवता के अस्थि-पंजर टूटे/पृथ्वी नित् हो रही विकल (सीप, अक्टूबर-दिसम्बर 2008)। निश्चिततः उन्होंने अपने मनोभावों को जो शब्दाभिव्यक्ति दी है, वह विलक्षण है और अन्तर्मन से विशु़द्ध साहित्यिक है। समकालीन कवियों की कविताओं पर दुर्बोधता के कारण उनकी ग्रहणीयता या आस्वादकता पर जो प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है, वह आकांक्षा जी की कविताओं में नहीं है।

इसी प्रकार अनेक कविताएं हैं जो भिन्न-भिन्न रंगों में लिखी गई हैं। मन के सुुकुमार भावों के स्पंदन, कविता की किलकारियों के रूप में स्वतः ही गूँॅंज उठे हैं। कहीं कोई कृत्रिमता नहीं, कहीं कोई मलाल नहीं। जो कविता सहज रूप में अभिव्यक्त हो, वही जिन्दा रहती है। वह समाज की अन्तरात्मा को अन्दर तक छू जाती है। आकांक्षा जी की कविता पाठकों को ऐसे भाव लोक में ले जाती है, जहाँ कविता कवि की न होकर पाठकों की हो जाती है। रचना और संवेदना को विराट फलक पर यथार्थ से जोड़ने की सार्थक पहल में आकांक्षा यादव सफल हुई हंै। सबसे प्रसन्नता की बात तो यह है कि आपका आत्म बहुत सीमित नहीं है और उसमें निकटवर्ती परिवेश से लेकर दूर-दराज की दुनिया तक प्रतिबिंबित है। आपकी रचनाओं में बदलते हुए समय में बदलते हुए मनुष्य के हालात का अच्छा भाव बिम्ब देखने को मिलता है। इसी प्रकार आपकी कविताओं में विविधता के साथ एक सच्चाई है, जो अनेक बार हृदय पर सीधे चोट करती है।

अपनी सशक्त रचनाधर्मिता को लोगों तक पहुँचाने के लिए आकांक्षा यादव सिर्फ पत्र-पत्रिकाओं तक ही सीमित नहीं हैं। जहाँ सौ से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में आपकी कवितायें, लेख एवं लघु कथायें निरन्तर प्रकाशित हो रही हैं, वहीं आपकी कवितायें एक दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित काव्य-संकलनों में भी स्थान बना चुकी हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में आप अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं एवं सृजनगाथा, अनुभूति, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, शब्दकार, रचनाकार, हिन्दी नेस्ट, कलायन, युगमानस, स्वर्गविभा, कथाव्यथा इत्यादि वेब-पत्रिकाओं पर आपकी रचनाएं नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। शब्द शिखर शीर्षक से आप एक ब्लाॅग का भी संचालन करती हैं, जहाँ पर रचनाओं के साथ-साथ आपके विचार प्रतिबिम्बित होते रहते हैं। यही नहीं चोखेर बाली, युवा, नारी, नारी का कविता जैसे सामूहिक ब्लाॅगों पर भी आपकी अभिव्यक्तियाँ विस्तार पाती रहती हैं। सबसे सुखद बात तो यह है कि ब्लाॅग पर प्रकाशित आपकी रचनाओं व विचारों को प्रिन्ट मीडिया ने भी तरजीह दी है एवं हिन्दुस्तान, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा एवं आई नेक्स्ट जैसे प्रतिष्ठित अखबारों में उनकी सारगर्भित चर्चा हुई है।

व्यक्ति के उत्कृष्ट कार्यों से सिर्फ उसी का उन्नयन नहीं होता बल्कि समाज व राष्ट्र का भी उन्नयन होता है। ऐसी प्रतिभाओं का सम्मान जहाँ उनकी पहचान स्थापित करता है, वहीं यह समाज का नैतिक दायित्व भी है। आकांक्षा यादव का मानना है कि शिक्षा और साहित्य के बिना हम अपनी सामाजिक तथा सांस्कृतिक विरासत को सजोकर रखने में सक्षम नहीं हो सकेंगे। सहज-सरल-सहृदय आकांक्षा जी का मन पीड़ित व दुःखी व्यक्ति को देखकर पिघल उठता है। व्यक्ति अपनी सभ्यता, संस्कार, सौम्यता व व्यवहारिक कुशलता से पहचाना जाता है ओर ऐसे लोगों से लोग बार-बार मिलना चाहते हैं। संस्कृति संस्कार से बनती है ओर सभ्यता नागरिकता का रूप है। संस्कृत विषय की कुशल प्रवक्ता होने के साथ-साथ साहित्यिक सरोकारों से गहरे जुड़ाव, राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार, रचनाधर्मिता, सतत् साहित्य सृजनशीलता एवं सम्पूर्ण कृतित्व हेतु तमाम प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं ने आकांक्षा जी को विभिन्न सम्मानों से विभूषित किया है। इनमें राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती ज्योति‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मध्य प्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, आसरा समिति, मथुरा द्वारा ‘‘ब्रज शिरोमणि‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, अभिव्यंजना, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य कुमुद‘‘ सम्मान एवं भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘‘ सहित तमाम सम्मान शामिल हैं।

समाज में बिरले उदाहरण ही ऐसे मिलते हैं जहाँ पति और पत्नी दोनों ही साहित्य सेवा में रत हों। आकांक्षा जी के पति श्री कृष्ण कुमार यादव भारतीय डाक सेवा के अधिकारी होने के साथ-साथ अच्छे साहित्यकार भी हैं। आपने अपने पति के साथ मिलकर ‘‘क्रान्तियज्ञ: 1857-1947 की गाथा‘‘ नामक पुस्तक का सम्पादन भी किया है। इसका विमोचन भारत सरकार में मंत्रीद्वय श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया व श्री श्रीप्रकाश जायसवाल द्वारा किया गया। श्री कृष्ण कुमार यादव की अब तक पाँच पुस्तकें प्रकाशित हैं और आपके व्यक्तित्व-कृतित्व पर उमेश प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा एक पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘‘ का वर्ष 2009 में प्रकाशन किया गया। सुविख्यात समालोचक सेवक वात्स्यायन इस साहित्यकार दम्पत्ति को पारस्परिक सम्पूर्णता की उदाहृति प्रस्तुत करने वाला मानते हुए लिखते हैं-’’जैसे पंडितराज जगन्नाथ की जीवन-संगिनी अवन्ति-सुन्दरी के बारे में कहा जाता है कि वह पंडितराज से अधिक योग्यता रखने वाली थीं, उसी प्रकार श्रीमती आकांक्षा और श्री कृष्ण कुमार यादव का युग्म ऐसा है जिसमें अपने-अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व के कारण यह कहना कठिन होगा कि इन दोनों में कौन दूसरा एक से अधिक अग्रणी है।’’

आकांक्षा यादव की प्रतिभा स्वत: प्रस्फुटित होकर सामने आ रही है। आकांक्षा जी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर दहलीज, वुमेन ऑन टॉप, बाल साहित्य समीक्षा, गुफ्तगू, नेशनल एक्सप्रेस, दलित टुडे, सुदर्शन श्याम सन्देश, यादव ज्योति, यादव साम्राज्य, नवोदित स्वर जैसी तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने आलेख प्रकाशित किये हैं. दिल्ली से प्रकाशित नारी सरोकारों को समर्पित पत्रिका ‘‘वुमेन आॅन टाॅप‘‘ ने जून 2008 अंक में अपनी आवरण कथा ‘हम में है दम, सबसे पहले हम‘ में देश की तमाम प्रतिष्ठित नारियों में आपको स्थान दिया है, जिन्होंने अपनी बहुआयामी प्रतिभा की बदौलत समाज में नाम रोशन किया। इन नारियों में माधुरी दीक्षित, लता मंगेशकर, लारा दत्ता, तब्बू, हेमा मालिनी, उमा भारती, सुषमा स्वराज, वृंदा करात, पं0 रवि शंकर की बेटी नोरा जोन, सचिन पायलट की पत्नी सारा पायलट, फिल्म आलोचक व लेखिका अनुपमा चोपड़ा के साथ आपका नाम भी शामिल है। जीवन के लम्बे पड़ाव में ऐसे न जाने कितने स्वर्णिम पृष्ठ आपकी उपलब्धियों के भण्डार में जुड़ते जायेंगे और इसी के साथ आप का जीवन अपनी चरमता पर पहुँचता जायेगा। साहित्याकाश के दैदीप्यमान नक्षत्र के रूप में आपकी उत्तरोत्तर प्रगति हो, यही कामना हैै। आपका जीवन उत्तरोत्तर नये आयामों के साथ विकसित होता रहे, आप यशस्वी और दीर्घस्वी हों, यही ईश्वर से प्रार्थना है। कृतित्व एवं व्यक्तित्व में ऐसा समन्वय दैव योग से ही होता है।
निशा वर्मा,सम्पादक-सांस्कृतिक टाइम्स, 106/63-ए, गाँधी नगर, कानपुर-208012

26 टिप्‍पणियां:

Bhanwar Singh ने कहा…

Happy Birthday to Akanksha ji.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

आपका जीवन उत्तरोत्तर नये आयामों के साथ विकसित होता रहे, आप यशस्वी और दीर्घस्वी हों, यही ईश्वर से प्रार्थना है। कृतित्व एवं व्यक्तित्व में ऐसा समन्वय दैव योग से ही होता है...Congts. to Akanksha Yadav.Wishing u happy B.day.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

Apun wishing you a wonderful, super duper, zabardast, xtra bariya, xtra special ekdum mast n dhinchak bole to ekdum jhakaas,
JANAM DIN mubarak ho..

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

आकांक्षा जी आपको जन्मदिन पर बहुत बहुत बधाई!!!!!!आज ही आपके विराट वयकतितव के बारे में जानने का अवसर मिला..!आपने लेखन में जो मुकाम बनाया है वो सच में लेखन के प्रति आपकी प्रतिबधता दर्शाता है..!

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

यदुकुल की तरफ से आकांक्षा यादव को जन्म दिन की शुभकामनायें. आपके सम्बन्ध में "यदुकुल" पर भी लिखा है. अवलोकन करें.

मन-मयूर ने कहा…
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मन-मयूर ने कहा…

आकांक्षा जी , आपकी रचनाएँ अक्सर पढता रहता हूँ, आप एक विद्वान और यशस्वी रचनाकार है. प्रभु आपको ऊंचाई दे.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

आकांक्षा जी वाकई कम समय में ही हिंदी-साहित्य में जानी-पहचानी नाम हो चुकी हैं. उन पर यह लेख पढ़कर अच्छा लगा. आकांक्षा जीको जन्म दिन की ढेरों बधाइयाँ.

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें.

अर्चना तिवारी ने कहा…

आपने आकांशा जी के बारे में लेख तो बहुत प्रभावी लिखा...लेकिन मुझे लेख के अंतिम पैरा का शब्द 'अल्पायु' खटक रहा है...कृपया बदल दें.....आकांशा जी को शुभकामनाएँ

बेनामी ने कहा…

अभी तक आकांक्षा जी की रचनाओं पर कमेन्ट लिखते थे, इस बार उनके जन्म दिन पर बधाई देने का स्वर्णिम अवसर मिला है.यह दिन बार-बार आये. ईश्वर आपको सुखी, समृद्ध एवं दीर्घायु रखें.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

@ Archana Tiwari Ji !
...आपके कहे अनुसार परिवर्तन कर दिया...धन्यवाद.

शरद कुमार ने कहा…

आकांक्षा मैडम पर सारगर्भित पोस्ट...जन्म-दिन मुबारक हो.

शोभना चौरे ने कहा…

aakakshaji ko janm din par dhero bdhaiya aur aashirwad .
aapke bare me pdhar atynt harsh hua
itni kam umr me itni uplabdhiya .
punh bahut bahut badhai aur shubhkamnaye

Urmi ने कहा…

आकांक्षा जी जन्मदिन मुबारक हो और बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें! बहुत बढ़िया लगता है आपका हर एक पोस्ट! इसी तरह लिखते रहिये!

अनूप शुक्ल ने कहा…

जनमदिन की मुबारकबाद!

daanish ने कहा…

Aakanksha ko janam din
bahut-bahut mubarak ho....
aapko padhna hamesha ek sukhad anubhooti rehti hai.
---MUFLIS---

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

आकांक्षा जी आपको जन्मदिन पर ढेरों शुभकामनायें ...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

आकांक्षा जी आपको जन्मदिन पर ढेरों शुभकामनायें ...

Unknown ने कहा…

आकांक्षा जी को जन्म-दिन की कोटिश: बधाई. ईश्वर आपकी हर आकांक्षा पूरी करें.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Aakanksha ji ko janam din ki badhaai ho....

adwet ने कहा…

janam din ki bahut vadhai akanksha ji.

adwet ने कहा…

janam din ki bahut vadhai akanksha ji.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनायें !!

KK Yadav ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
KK Yadav ने कहा…

हम आकांक्षा जी के स्वस्थ, दीर्घायु, समृद्ध एवं यशस्वी जीवन की कामना करते हैं और जन्म-दिन की ढेरों शुभकामनायें देते हैं !!