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शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

समलैंगिकता पर बाबा रामदेव से असहमति

फायर फिल्म के प्रदर्शन के उपरांत गे रिलेशन एक बार फ़िर चर्चा में हैं। उस समय अवधूत बाबा ठाकरे की शिवसेना ने इतन कोहराम मचाया था कि डर के मारे कई सिनेमा हाल के मालिको को इस फिल्म का प्रदर्शन बंद करना पड़ा था। फिल्म की निर्माता दीपा मेहता को ठाकरे महाराज से माफी मांगते हुए अपनी नायिकाओं के नाम राधा और सीता से बदलकर कुछ और करने पड़े थे।दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद भारतीय संस्कृति की रक्षा की कमान बाबा रामदेव और ज्योतिषी सुरेश कौशल ने सॅभाली है। बाबा रामदेव कुछ ज्यादा ही मुखर हैं। उनके वकील सुरेश शर्मा और गंधर्व मक्कर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा है कि दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले से भरतीय संस्कति और मूल्य खतरे में पड़ सकते हैं,अतः इस पर रोक की आवश्यकता है। बाल ठाकरे की तरह योग गुरु रामदेव ने भी इस विरोध का आधार सनातन ग्रंथों को बनाया है,जिसके तहत वेद पुराण और समृति ग्रंथ आते हैं।
आइये देखते हैं कि हमारे ये ग्रंथ सेक्स संबंधों को लेकर कितने पाक साफ हैं,उसके बाद हम बाबा रामदेव से चंद सवाल करेगें। सबसे पहले हम प्रजापिता ब्रह्मा की चर्चा करगें,क्योंकि वही वेदों के रचयिता और जनक माने जाते हैं। ऐतरेय ब्राह्मण में स्पष्ट उल्लेख है कि ब्रह्मा अपनी पृत्री के पास मृग का रुप धारण करके गये और उन्होंने अपनी पृत्री के साथ सहवास किया। एक बार वो अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूया के पास भी सहवास करने अत्रि का रुप धारण करके गये,किन्तु वो सफल नहीं हो सके। ब्रह्मा की इस दुराचारी प्रवृत्ति के कारण ही देव समाज ने उन्हें दण्डित किया और उनकी उपासना पर रोक लगा दी। इसीलिए आर्यावर्त में कहीं भी उनके मंदिर नहीं मिलते।वेदों में सेक्स संबंध इतने खुले थे कि वहाँ वर्जना का सर्वथ अभाव था। योग्य पुरुष किसी भी स्त्री के साथ रमण कर सकता था और यह स्त्री उसकी बहन,माँ,बुआ कोई भी हो सकती थी। ऋग्वेद में यमी अपने सगे भाई यम के साथ संभोग का प्रस्ताव रखती है। उर्वशी-पुरुरवा प्रसंग यह बताता है कि अप्सराएं एक साथ परिवार की कई पीढ़ियां के मनोरंजन का साधन थी। जिस सरस्वती का चित्र बनाने पर भगवाधारियों ने एम एफ हुसैन की प्रदर्शनी तोड़ डाली थी,वही सरस्वती पहले ब्रह्मा की पु़त्री थी और बाद में उनकी पत्नी बनी। यजुर्वेद के अनुसार ब्रह्मा की पत्नी होने के बावजूद उन्होंने अश्विनी कुमारों से गर्भ धारण किया था। महान दार्शनिक चार्वाक ने इसीलिए वेदों के रचयिता को ‘‘त्रयो वेदस्यकतौरः,भांड,घूर्त,निशाचरः’’ अर्थात भांड,धूर्त और निशाचर कहकर निंदा की थी। गौतम बुद्ध ने अपनी भिक्षुणियों के लिए 166 पश्चाताप निर्धारित किए थे। उनमें 49,50 में वेदों का पठन-पाठन उनकी अश्लीलता के कारण स्पष्ट रुप से वर्जित था।
टी एच ग्रीफिथ पहले अंग्रेज थे जिन्होंने वेदों का अंगे्रजी अनुवाद किया। ऋग्वेद के कुछ मंत्रों का अनुवाद उन्होंने यह कहकर छोड़ दिया कि वो इतने अश्लील हैं कि उनका अनुवाद करना न तो मेरे लिए संभव हैं और न ही उनके लिए अंगे्रजी में शब्द हैं।यज्ञ,जो वेदों की एक महत्वपूर्ण स्थापना है, दरअसल यौनाचार का ही एक रुपांतर है। वेदों में स्पष्ट उल्लेख है कि आचार्य किस प्रकार यज्ञस्थल पर ही अपने शिष्यों को समूह में यौन संपादन की शिक्षा देते थे। वेद के अतिरिक्त महाभारत और पुराण भी इस सेक्स वार्ता से अछूते नहीं हैं। महाभारत के आदिपर्व में वर्णित है कि ब्रह्मा के प्रथम पुत्र और पुत्री दक्ष और दक्षा जुड़वा भाई-बहन थे और वो कालांतर में पति-पत्नी बनकर रहे। ब्रह्मा के नाती कश्यप अपनी तेरह चचेरी बहनों के साथ समागम करते थे। ब्रह्मा के पुत्र धर्म के अपनी दस सगी भतीजियों के साथ संबंध थे। हरिवंशपुराण के दूसरे अध्याय के अनुसार वशिष्ठ प्रजापति की कन्या शतरुपा कालांतर में उनकी पत्नी बनी। जलप्रलय के पश्चात सृष्टि के आदि पुरुष मनु ने अपनी पुत्री इला को अपनी वासना का शिकार बनाया। जयशंकर प्रसाद की कामायनी का कथानक इसी पर आधरित है,जहाँ इला का नाम इड़ा दिया गया है।
बाबा रामदेव ने जिन वेदों और पुराणें के आधर पर गे रिलेशन पर उंगुली उठाई है,वह आधरहीन है। उनका अपना खुद का नजरिया भी आधरहीन है। वो मूलतः शारीरिक स्वास्थ्य के अध्येता और विशेषज्ञ हैं। ब्रह्चर्य से उन्होंने सीधे वानप्रस्थ में छलांग लगा दी। गृहस्थ का तपोवन उनके जीवन में अनुपस्थित है। अतः जीवन का समग्र दृष्टिकोण भी उनके जीवन से गायब है। उन्हें जानना और समझना होगा कि अश्लीलता वस्तु में नहीं बल्कि नजरिए में होती है। हमने आदिवासी समाजों में देखा है कि वहा स्त्री पुरुष प्रायः नंगे रहते हैं। अतः वहाॅ सेक्स को लेकर कुंठा नहीं है। न तो वहाॅ नवयुवक चोरी-छिपे ब्ल्यू फिल्में देखते है और न ही बलात्कार का घटनाएं होती हैं। सेक्स को लेकर कुंठित मनोरोगी भी वहाॅ नहीं मिलते। सह सब कुछ हमारे तथाकथित सभ्य समाज में ही होता है जहाॅ सभ्यता के नाम पर जीवन की अनिवार्यतायें भी गोपन के घेरे में हैं। इसीलिए सब जगह छेड़छाड़ है,बलात्कार है,कुंठित युवक हैं और मनोचिकित्सक हैं। यह सब बाबा बाबा टाइप गुरुओं का प्रताप है। कभी विक्टोरिया काल में ब्रिटेन में कुर्सी-मेजों के पैर ढॅककर रखे जाते थे,क्योंकि उनसे स्त्री की टांगों का आभस होता था। लेकिन ब्रिटेन जल्द ही इस दोगलेपन से बाहर निकला। आज बाबा रामदेव जैसे लोग उसी युग की वकालत करते हैं। दरअसल गे रिलेशन को सभ्यता,संस्कृति से न जोड़कर निजता से जोड़कर देखा जाए तो यह समस्या स्वतः समाप्त हो जायेगी। बाबा को भी यह नेक सलाह है कि अश्लीलता कैसे छुपे इसके बजाय अश्लीलता क्यों पैदा होती है,इस पर नजरें इनायत करें तो शायद ज्यादा बेहतर परिणाम हासिल होगें।
कौशलेन्द्र प्रताप यादव
लेखक परिचय
जन्म 4 जनवरी 1974। शिक्षा- इलाहाबाद विश्वविद्यालय। 1999 में पी.सी.एस. एलाइड में चयन। चयन से पूर्व मूलतः पत्रकार। सम्प्रति बिजनौर (उ.प्र.) जिले में तैनात। स्तम्भ लेखन एवं आकाशवाणी में वार्ताकार के रुप में सक्रिय। सामाजिक संस्था "ब्रेन वाश'' के माध्यम से सांप्रदायिकता और जातिगत संरचना पर चोट और उनका समाधान। हमेशा कट्टरपंथियों के निशाने पर। कहानी संग्रह ‘अछूत’ और ‘आल्हा-ऊदल और बुंदेलखण्ड की एक झलक’ शीघ्र प्रकाशित।संपर्कः आर.टी.ओ. चेक पोस्ट भागूवाला,बिजनौर,उ0प्र0।फोनः 09415167275./09452814256Mail: yadavkaushalendra@yahoo.in

13 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर विश्लेषण कौशलेन्द्र जी...आपकी लेखनी को बधाई.

बेनामी ने कहा…

रामदेव जी को तो आपने आइना ही दिखा दिया...क्रन्तिकारी विचार है आपके.

Shyama ने कहा…

उन्हें जानना और समझना होगा कि अश्लीलता वस्तु में नहीं बल्कि नजरिए में होती है। हमने आदिवासी समाजों में देखा है कि वहा स्त्री पुरुष प्रायः नंगे रहते हैं। अतः वहाॅ सेक्स को लेकर कुंठा नहीं है। न तो वहाॅ नवयुवक चोरी-छिपे ब्ल्यू फिल्में देखते है और न ही बलात्कार का घटनाएं होती हैं। सेक्स को लेकर कुंठित मनोरोगी भी वहाॅ नहीं मिलते। सह सब कुछ हमारे तथाकथित सभ्य समाज में ही होता है जहाॅ सभ्यता के नाम पर जीवन की अनिवार्यतायें भी गोपन के घेरे में हैं।
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Its very logical..nice one.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

समलैंगिकता समाज के लिए अच्छा है या बुरा ...पर आपने वेदों व धार्मिक ग्रंथों को सामने खडा कर सार्थक बहस को जन्म दिया है. साधुवाद स्वीकारें.

S R Bharti ने कहा…

Congts. to kaushlendra for this interesting article.

Shyama ने कहा…

मैं समलैंगिकता से सहमति नहीं रखता.

शरद कुमार ने कहा…

दरअसल गे रिलेशन को सभ्यता,संस्कृति से न जोड़कर निजता से जोड़कर देखा जाए तो यह समस्या स्वतः समाप्त हो जायेगी। बाबा को भी यह नेक सलाह है कि अश्लीलता कैसे छुपे इसके बजाय अश्लीलता क्यों पैदा होती है,इस पर नजरें इनायत करें तो शायद ज्यादा बेहतर परिणाम हासिल होगें।
...........Bat to apne wajib kahi.

SUNIL KUMAR SONU ने कहा…

homosex ko badhaba nahi dena chahiye varna aadmi pashuta se bhi niche chali jayegi

प्रशांत गुप्ता ने कहा…

आपने बहुत कुछ लिखा है , पर लिखते वक्त अपने शीर्षक को ही भूल गये , स्त्री ओर पुरुष मे सम्बन्ध ओर समलैगिकता शायद अलग अलग विषय है !!!आप ने पोरानिक चरित्रों पर तो काफी कुछ लिख दिया पर समलैगिकता को सही साबित करना भूल गये ( या केवल शीर्षक ही देना चाहते थे)

Hari Shanker Rarhi ने कहा…

वेदों में खुले यौनाचार पर काफी कुछ वर्णित है और यौन सम्बन्धों को पूरी आज़ादी दी गई है, इस पर आपका शोध प्रशंसनीय है। परंतु ,अगर उनमें कहीं समलैंगिकता पर भी कुछ सामग्री है तो आप प्रस्तुत करें अन्यथा आप मुद्दे से भटक रहे हैं। हरिशंकर राढी.

Akanksha Yadav ने कहा…

Ved-Puran to beete dinon ki bat ho gaye...aj ke parivesh ko bhi dekhen.

Sanjay Grover ने कहा…

भीड़ हटे तो हम भी देखें सच का बदन
भीड़ को तुमने पहना, मुश्किल है बाबा