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गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

भ्रष्टाचार की विषबेल

एक बार पुनः
अतीत ने अपनी श्रेष्ठता
वर्तमान पर सिद्ध की
हम काफी दिनों से बात
कर रहे थे भ्रष्टाचार पर प्रहार की

एक दूसरे का मुंह देख रहे थे
कौन करे प्रारंभ बस यही सोच रहे थे
इसी बीच उम्र को चुनौती देते हुए
एक सत्तर साल के युवा ने
हमारे बेचैनी को देखा
एक बार पुनः अतीत की अगुआई
करते हुए वर्तमान को सीख
देने की मुद्रा में मोर्चा खोला

न केवल विजयश्री का
किया वरण
वरन भ्रष्टाचार भी मांगता
दिखा शरण

हाँ इस मुद्दे पर देशव्यापी
समर्थन युवाओं ने भरपूर दिया
ऊब चुके है इस व्यवस्था से
अपनी पुरजोर उपस्थिति से
यह सिद्ध किया

काश इसका आगाज
और पहले हो गया होता
तो देश इक्कीसवी सदी में
नए जोश और जज्बातों के साथ
कब का पहुँच गया होता
निसंदेह आज की तमाम
समस्याओं की जननी है
भ्रष्टाचार की यह विषबेल
निश्चित रूप से अब
समाप्त हो जानी चाहिए
यह नूरा कुश्तियों का खेल

पर सनद रहे
अन्ना हजारे से मिली उर्जा को
हमें संजो कर रखना होगा
इस लगी हुई आग को किसी
कीमत पर बुझने देना नहीं होगा
अन्ना के त्याग ने रखी है
जिस सत्य अहिंसा पर आधारित
लड़ाई की पुनः नीव
लगभग वर्तमान परिवेश में
विलुप्त हो चुके गाँधी की
प्रासंगिकता को किया है पुनः सजीव
तभी इस आन्दोलन की
सार्थकता फलित होगी
वर्ना इन भ्रष्टाचारियों की एक
नयी व्यवस्था के साथ
पुनः विषबेल बढेगी

कर ले हम चाहे
कितनी ही ऊँची बाते
करले कितने ही दौर की मुलाकाते
पर सच्चाई यही है कि
अतीत को बिसरा कर
बनती नहीं बातें
निकट अतीत कि घटना ने
इस बात के इतिहास को
पुनः दोहराया
कि सत्य परेशान भले ही हो
पर पराजित कभी हो नहीं पाया
बेशक यह कुछ लोगो के लिए
वही होता रहा है जो
उनको है नहीं भाया
पर देर से ही सही अन्ना ने
उनको भी जमीन पर लाया

संभव है आगे भविष्य में
ऐसे और मोर्चे अवश्य ही खोलने होगे
बेशक अन्ना हमारे साथ नहीं होगे
अतः हमें तैयार और जागरूक
इस निमित्त रहना होगा
एक नूतन शंखनाद के लिए
अन्ना से मिली उर्जा को
हमें सुरक्षित रखना होगा

2 टिप्‍पणियां:

Anant Alok ने कहा…

खूबसूरत विचार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विचारणीय आलेख।