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बुधवार, 4 मई 2011

अपनो कि विश्वास

शरद जरा
फ़ैल कर लेट रहो और
डब्बू तू भी ऊपर वाली बर्थ पर
जाकर फ़ैल रहो
हियन हम नीचे लेटा है
पता नहीं कहाँ कहाँ से
बिना रिजेर्वेशन के
सब चले आते है
थोड़ी सी जगह देखी नहीं कि
घुसक आते है
एक आधुनिक सी दिखनेवाली
महिला कि कर्कश आवाज दिल में
पिघलते शीशे कि तरह समाते है

दोपहर के दो बज रहे थे
कम्पार्टमेंट में भीड़ बहुत था
में अपने घर कानपुर
मम्मी को देखने जा रहा था
अचानक उनकी तबियत ख़राब होने से
नन्नू का बुलावा आया था

मै वही खड़े खड़े सब
तमाशा देख रहा था
पर्याप्त जगह होने के उपरांत भी
में खड़ा था
ऑफिस से सीधे स्टेशन के
लिए भागा था
लाइन में लग कर
किसी तरह टिकट पाया था
इस प्रक्रिया में
थक कर चूर हो गया था
इधर कुछ दिनों से ब्लड यूरिया
बढे होने से पैर भी सूज गया था
खड़े होने में अक्षम होने के कारण
वहीँ जमीन पर बैठ गया था
सामने कि बर्थ पर
उन तीनो को अकारण ही
दिन में लेटे हुए देख रहा था
कोई खाए बिना मरे कोई
खाय खाय कर मरे के
बारे में सोच रहा था
किसी तरह दोपहर के बाद
शाम भी ढलने लगी थी
ट्रेन भी काफी लेट हो चुकी थी
अब थकन के कारण कमर
सीधी करने कि इक्षा हो रही थी

मुझे जमीन पर ही लेटने दे
उक्त आशय का मैंने
उस महिला से अनुरोध किया
मगर उसने बिना किसी लाग लपेट के
सीधे मना कर दिया
बोली रिजेर्वेशन करवाया है
कोई हराम का बर्थ नहीं मिला है
तुम्हारे जैसे लोगो को मै
खूब पहचानती हूँ
हाथ पकड़ कर पंहुचा पकड़ने के
बारे में भी जानती हूँ
मै निराश एक हाथ में चादर
और एक हाथ में बैग लिए
दरवाजे की ओर बढ़ा
तभी एक वृद्ध व्यक्ति का
आवाज कानो में पड़ा
बेटा हिएन आ जाओ
अहिजे लेट जाओ
इस उमर में वैसे भी
नीद कहाँ आवत है
लेटे लेटे भी दिन कहाँ कटत है
काफी देर से हम तुमका देख रहे
तुम्हरी तबियत ठीक ना लगत है
तुम हमरी बर्थ पर हिएन लेट जाओ
हम किनारे पर बैठा है

कृतज्ञता से मै उस
वृद्ध को देख रहा था
अपने पिता की छबि
उसमे पा रहा था
पास बैठने पर उस वृद्ध ने कहा
बेटा क्या करोगे
तुम्हरी पीढ़ी की ही यह देन है
कोई किसी पर विश्वास नहीं करता
किसी कि मुसीबत में
कोई साथ नहीं देता
वह महिला भी कही से नहीं गलत है
आये दिने तो हम अख़बार में पढ़त है
बाकी हमार अनुभव से हम जानत है
सही और गलत को पहिचानत है

उस वृद्ध कि सुन बाते
मन हो गया उदास
मैंने भी ली एक गहरी साँस
सोच रहा था कि क्या हम
इसी को इक्कीसवी सदी कह रहे है
इस कदर विकसित और आधुनिक हो रहे है
कि अपनों का ही विश्वास खो रहे है
ऐसे विकास का क्या है दावा
वस्तुतः यह तो स्वयं को
देना है एक छलावा
ऐसा विकास तो सिर्फ
अब लगता है एक दिखावा

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विकास की अट्टालिकाओं के नीचे विश्वास दफन हो दया है।

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

वस्तुतः यह तो स्वयं को
देना है एक छलावा
ऐसा विकास तो सिर्फ
अब लगता है एक दिखावा ...satik bat kahi kavita ke madhyam se..badhai.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

वस्तुतः यह तो स्वयं को
देना है एक छलावा
ऐसा विकास तो सिर्फ
अब लगता है एक दिखावा ...satik bat kahi kavita ke madhyam se..badhai.