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मंगलवार, 9 जुलाई 2013

बरसात

बरसात की  आहट  ने 
एक और जहा 
नवधनाड्यो को 
इठलाने  का मौका 
दे दिया है 
उनके  लान में 
काफी दिनों से सुनसान पड़े 
झूलो को पुनः इतराने का 
मौका दे दिया था 

वही भूरे  का दिल 
बादलों की घरघराहट से 
घबरा रहा था 
बिजलियों की अनवरत 
चमक तड़क से 
उसका दिल बैठा जा रहा था 
हे भगवन कैसे इस बार वह 
झेलेगा इस बरसात को 
याकि शांत करेगा वह 
पहले वह अपने पेट की आग को 

अट्टालिकाओ और 
बनगे के बाशिंदे जहाँ 
एक और रिमझिम बरसात 
के स्वागत हेतु 
तत्परता से इक्छुक हो रहे थे 
पनीर पकौड़े और ड्रिंक  के साथ 
बनकुएत  हालो  में 
या अपने किसी के लानो में 
रेन डांस की तयारी में लगे थे 

वही भूरे अपने झोपड़े में बैठा 
अपने छत को निहार रहा था 
सोचता पिछली बार तो 
जैसे तैसे निकल गया था 
कम बारिस से उसकी मुसीबत 
कुछ कम हो गयी थी 
इस बार के  आसार से 
आतंकित उसके पैरो के निचे की 
जमीं धसक रही थी 

पिछले साल पत्नी की बीमारी से 
उसक बजट बिगड़ गया था 
उसके पिछले साल 
बाबु के आवासन व उनके
तेरहवी के भोज में 
वह हिल गया था 
इस बार भी सोच रहा था की 
पप्पू का दाखिला
कान्वेंट में करा दिया जाय 
ताकि उ भी कुछ पढ़ लिख कर 
एक ओहदेदार बन जाय 
वरना मेरी तरह एक 
ऑटो ड्राईवर ही बना रहेगा 
जिंदगी को मेरी ही  
तरह  खीचेगा 

इसी उधेड़बुन में 
उसके आँखों की नीद उड़ हुकी थी 
वह लेता छत निहारता रह गया 
जब की कब की सुबह हो चुकी थी 

बहार कुछ शोरगुल सुनाई 
दे रहा था 
बहार आकर देखने पर 
पता चला था 
उत्तराखंड भीषण जलप्रवाह में 
बह रहा था 
हजारों मासूमो और निर्दोषों को 
वह प्रलय बन 
बहा ले गया था 
लाखों तीर्थयात्री आज भी 
वहां दुर्गम स्थानों पर फसे है 
हमारी सहायता का बाट  जोह रहे है 
लोग उनकी सहायता के लिए 
चन्दा उतर रहे है 
वह तुरंत अन्दर गया 
अपने गाढ़े समय के लिए 
बचा कर रखे गए पैसे को 
उन राहतकर्मियों के हाथ में रख दिया 
पुनः अपनी छत की ओर देख 
मुस्कराता रह गया 

निर्मेष 

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