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मंगलवार, 23 जुलाई 2013

मौज

हाथो  में बड़ी बड़ी 
गत्ते की  ताख्तिया  लिए 
जिस  पर मन को  पसीजते 
नारे   लिखे
 क्षेत्रीय राहतकर्मियों का नेत्रित्व 
मोहल्ले के मुन्ना पहलवान 
चिल्ला चिल्ला कर 
कर  रहे थे 
लोगो से अनाज के साथ साथ 
पैसे  ईकठा करते 
मेरे भी रस्ते में वे पड़े 
जोर जोर से तकरीबन 
रोते  हुए बोले 
भैया बड़ा जुलुम होई गवा 
हुवन उत्तराखंड मा 
प्रलय आ गवा 
बहुतन मरिन गए 
बहुतन अबही हुवन फसे है 
उन्हींन का बचावे औ  सहायता  वदे 
हम सब निकल पड़े है 
आपो पुण्य कमाई 
कछु सहयोग करी 

मै  भी  भावनाओ के आवेग में 
तुरन्त  ताव  खा  गया 
पांच सौ का एक नोट 
उनके दान पात्र में डाल दिया 
एक बहुत ही बड़ा नेक कार्य 
सम्पादित करने का सुख 
सहसा ही पा गया 

शाम को लौटती बस से 
घरवापसी के लिए जैसे ही 
बस अड्डे उतरा 
पास के मधुशाला के निकट 
मुन्ना पहलवान को 
जमीन पर लेटे देखा 
मुझे लगा हे  भगवान 
ये क्या हो गया 
कही उत्तरा खन्दियन  की
सेवा करते करते 
ई शहीद तो नहीं हो गया 

पास जाने पर उसके 
मुंह से एक और जहाँ 
देशी  शराब की बदबू  आयी  
वही पास में उसके और साथियों की 
नशे में टुन्न देह पायी 

मुझे अब कुछ कुछ 
समझ में आ रहा था 
अपने ठगे जाने का अहसास 
अनायास हो रहा था 
उनमे से एक को कुछ 
होश में देख मैंने पूछा 

अरे भैया ई का होइ रहा 
लड़खड़ाते जुबान में वह बोला 
साहिब ई सब त लगा रहित है 
हमअन के भी राहत क 
जरूरत है 
हुवन उत्तराखंड में तो 
बहुत लोग रहत पहुचावत है 
हमअन  त  भी भूख  अऊ गरीबी 
मा मरत  हई 
पर हमका के पूछत है 
हमसब सोचा की चलेव 
ई बहती गंगा मा हमअन  भी 
हाथ धोई लेव 
बहुतै दिनन बाद 
दारू पिया अऊ मछली खावा है 
कल के वादे भी कछु  बचावा  है 

मैंने पूछा 
परसों का क्या होगा 
बोल साहेब 
इतना बढ़िया पैसा उतर आवा है 
कि कल परसों तो दूर 
नरसो  तरसो के बाद का भी 
जुगाड़ होई गवा है 
ओकरे बाद देखा जायेगा 
सबकुछ ठीकठाक  रहा 
प्रकृति पर हमअन क अत्याचार 
ऐसे ही जारी रहा 
त अऊर जगह भी जल्दिये 
बाढ औ प्रलय आयी 
संग अपने हमअन क भी 
मौज साथ लाई 

निर्मेश 

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