मैं अजन्मी
हूँ अंश तुम्हारा
फिर क्यों गैर बनाते हो
है मेरा क्या दोष
जो, ईश्वर की मर्जी झुठलाते हो
मै माँस-मज्जा का पिण्ड नहीं
दुर्गा, लक्ष्मी औ‘ भवानी हूँ
भावों के पुंज से रची
नित्य रचती सृजन कहानी हूँ
लड़की होना किसी पाप
की निशानी तो नहीं
फिर
मैं तो अभी अजन्मी हूँ
मत सहना मेरे लिए क्लेश
मत सहेजना मेरे लिए दहेज
मैं दिखा दूँगी
कि लड़कों से कमतर नहीं
माद्दा रखती हूँ
श्मशान घाट में भी अग्नि देने का
बस विनती मेरी है
मुझे दुनिया में आने तो दो!!
आकांक्षा यादव
शनिवार, 24 जनवरी 2009
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16 टिप्पणियां:
राष्ट्रीय बालिका दिवस पर आकांक्षा जी की इस भावपूर्ण कविता के लिए बधाई. कम शब्दों में आकांक्षा जी ने बहुत कुछ कह दिया .
समाज की मानसिकता पर चोट करती अद्भुत कविता.
मैं अजन्मी
हूँ अंश तुम्हारा
फिर क्यों गैर बनाते हो
है मेरा क्या दोष
जो, ईश्वर की मर्जी झुठलाते हो
....लाजवाब है राष्ट्रीय बालिका दिवस पर आकांक्षा जी की यह प्रस्तुति.
कम शब्दों में यह कविता उस सच को बयां करती है, जिसे जानते हुए भी तथाकथित सभ्य समाज नजरें चुराता है. आकांक्षा जी की लेखनी की धार नित तेज होती जा रही है...साधुवाद स्वीकारें !!
इस कविता को पढ़कर मैं इतना भाव-विव्हल हो गया हूँ कि शब्दों में बयां नहीं कर सकता.
'राष्ट्रीय बालिका दिवस' पर आकांक्षा जी की इस ''मैं अजन्मी'' कविता के मर्म को समझते हुए यदि कोई एक व्यक्ति भी वास्तव में आपने में परिवर्तन ला सका तो इसकी सार्थकता होगी.
मत सहना मेरे लिए क्लेश
मत सहेजना मेरे लिए दहेज
मैं दिखा दूँगी
कि लड़कों से कमतर नहीं
माद्दा रखती हूँ
श्मशान घाट में भी अग्नि देने का........
लड़की में तो माँ दुर्गा होती हैं,
उसको न आने देना,देवी के प्राप्य से
वंचित होना...........
बहुत आग है इस कविता में
सर्वप्रथम तो अपने इस ज्ञान में इजाफे के लिए आकांक्षा जी का आभार कि आज राष्ट्रीय बालिका दिवस है. अभी तक आपकी कई रचनाओं-विचारों से इस ब्लॉग पर रूबरू हुआ हूँ, पर आज प्रस्तुत आपकी यह कविता तो बेजोड़ है. इसमें कातरता है, बेचारगी है, उलाहना है, ललकार है, शिक्षा है....काश कि लड़कियों की भ्रूण-हत्या करने वाले दरिन्दे इस कविता को पढ़ते और कुछ सीख लेते.
मत सहना मेरे लिए क्लेश
मत सहेजना मेरे लिए दहेज
मैं दिखा दूँगी
कि लड़कों से कमतर नहीं
.....बहुत कुछ कह जाती हैं ये पंक्तियाँ. इनमें मारक क्षमता है.
...Ajanmi bachhi ke shabd sunkar bhala kiska dil na pighal jaye.
मैं अजन्मी
हूँ अंश तुम्हारा
फिर क्यों गैर बनाते हो
है मेरा क्या दोष
जो, ईश्वर की मर्जी झुठलाते हो
bahut achchhi kavita hai.
मुझे गर्व है कि मैं लखनऊ का रहने वाला हूँ, सबसे पहले जहाँ की लड़कियों ने भैंसा कुण्ड पर अपने पिता को मुखाग्नि दी थी. यहाँ की ही १४ साल की एक लड़की ने चेन खींच कर भाग रहे गुंडे की धुनाई भी की है . एक और घटना में गुंडे की पिटाई भी एक महिला के हाथों हुई.
मैं सोये पड़े पुरूष समाज को इन महिलाओं से प्रेरणा लेने को प्रोत्साहित करता हूँ.
आज विश्व बालिका दिवस क्यों नहीं है !!
प्रस्तुति के लिए आभार
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं सहित
सादर
द्विजेन्द्र द्विज
http:/www.dwijendradwij.blogspot.com/
मैं अजन्मी
हूँ अंश तुम्हारा
फिर क्यों गैर बनाते हो
है मेरा क्या दोष
जो, ईश्वर की मर्जी झुठलाते हो
भावपूर्ण कविता के लिए बधाई
मत सहना मेरे लिए क्लेश
मत सहेजना मेरे लिए दहेज
मैं दिखा दूँगी
कि लड़कों से कमतर नहीं
माद्दा रखती हूँ
श्मशान घाट में भी अग्नि देने का
यह सोच ही संस्कृति और समाज का पुनर्निर्माण करेगा.
बहुत सुंदर !!!!
A NICE POEM WELL EXPYESSED.
CONGRATS . KEEP IT UP
--- AJIT PAL SINGH DAIA
poetry-ajit.blogspot.com
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