हिंदी दिवस की
एक और उत्सव
पूछता पुनः एक बार अपना भावार्थ
विस्मृत युगबोध का यथार्थ
कल्पित
स्तित्वाहिनता का आभास
निरंतर प्रसरित पावन प्रकाश
लक्षित
एक पुनर्जागरण
याकि करना वैराग्य का वरण
जागृत
चेतना की शिखार्यात्रा
यदि हो विवेक की लाघुमात्र
अलाम्बित एक नूतन प्रभात
विलंबित
राग्यमिनी से गुजित
धवल आकाश
होगी रंगीन पुनः
सुरमई शाम
चमकेगा छितिज पर
आर्यावर्त का क्या नाम
याकि छिरेगी
एक और बहस
es यथार्थ पर
सत्य से दूर
मद से चूर
प्रारंभ होगी
एक और नई
यात्रा अंतहीन
pidit दिन और मलिन
मंगलवार, 28 सितंबर 2010
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2 टिप्पणियां:
सुन्दर भाव हिन्दी पर।
निर्मेश, आपके भाव अच्छे हैं, पर व्याकरणिक त्रुटियों की तरफ भी ध्यान दें.
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