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शनिवार, 25 सितंबर 2010

माँ की गोद

एक दिन माँ की गोद में

रख कर सर

मैं सो रहा था बाखबर

नीद के आगोश में

हो गया था तन
कल से ही था बेचन ये मन

माँ गुनगुना रही थी प्यारी लोरियां

मेरे सर पे घुमाती अपनी बहिया

एकाएक माँ के लोरियों में से

दर्द की आवाज आई

मैंने कहा क्या हुआ माई

उसने कहा कुछ नहीं बेटा

शायद किसी का है तोता

तभी मने देखा गोद दस निचे से

रक्त की धर

मई हो गया bajar

सोचा वह रे माँ

कैसी है तुम्हारी दुनिया

पर आज के बेटे क्या समझेगे

की क्या होती है पुरनिया

3 टिप्‍पणियां:

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

पर आज के बेटे क्या समझेगे

की क्या होती है पुरनिया

...भावपूर्ण कविता...बधाई.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

माँ की तो बात ही निराली...सुन्दर कविता..बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में- डाटर्स- डे पर इक ड्राइंग !

Amit Kumar Yadav ने कहा…

अच्छा प्रयास है...बधाइयाँ.