एक दिन माँ की गोद में
रख कर सर
मैं सो रहा था बाखबर
नीद के आगोश में
हो गया था तन
कल से ही था बेचन ये मन
माँ गुनगुना रही थी प्यारी लोरियां
मेरे सर पे घुमाती अपनी बहिया
एकाएक माँ के लोरियों में से
दर्द की आवाज आई
मैंने कहा क्या हुआ माई
उसने कहा कुछ नहीं बेटा
शायद किसी का है तोता
तभी मने देखा गोद दस निचे से
रक्त की धर
मई हो गया bajar
सोचा वह रे माँ
कैसी है तुम्हारी दुनिया
पर आज के बेटे क्या समझेगे
की क्या होती है पुरनिया
3 टिप्पणियां:
पर आज के बेटे क्या समझेगे
की क्या होती है पुरनिया
...भावपूर्ण कविता...बधाई.
माँ की तो बात ही निराली...सुन्दर कविता..बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में- डाटर्स- डे पर इक ड्राइंग !
अच्छा प्रयास है...बधाइयाँ.
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